16 अक्टूबर 1956 के अनछुए पहलू: यूं बाबासाहब ने दी थी 3 लाख लोगों को दीक्षा

Story of 16 Oct 1956 : 3 lakh people received Dhamma Diksha
16 अक्टूबर 1956 के अनछुए पहलू: यूं बाबासाहब ने दी थी 3 लाख लोगों को दीक्षा
16 अक्टूबर 1956 के अनछुए पहलू: यूं बाबासाहब ने दी थी 3 लाख लोगों को दीक्षा
हाईलाइट
  • बाबासाहब आंबेडकर ने दिलाई थी धम्म दीक्षा
  • चंद्रपुर के दीक्षा भूमि पर आज से 62 साल पहले 3 लाख से अधिक लोगों ने धम्म दीक्षा प्राप्त की थी।

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। जंगल व झाड़ियों से घिरे चंद्रपुर के दीक्षा भूमि स्थल पर आज से ठीक 62 साल पहले दिन में हल्की बारिश हुई, जिसके चलते शाम ढलते-ढलते कीट-पतंगों का हमला बढ़ गया। बीमार अवस्था में चंद्रपुर पहुंचे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर 2 मंजिला ऊंचाई वाले मंच पर माईसाहब के कंधों का सहारा लेकर पहुंचे तो वहां रोशनी के लिए लगे ट्यूृबलाइट पर कीड़ों का हमला बढ़ गया। बाबासाहब को तकलीफ होने लगी। वे कुछ बोल पाते इसके पूर्व ही आयोजकों ने कुछ ट्यूबलाइट को बंद करने की कोशिश की। इस प्रयास में मंच का संपूर्ण बिजली सेट ही बंद हो गया। मंच के नीचे कंट्रोल यूनिट पर एक 100 वॉट का बल्ब प्रकाश दे रहा था। समता सैनिक दल के जवान चंदू श्रीसूले ने दौड़कर इस बल्ब को अपने हाथों में उठा लिया और सीधे मंच पर जाकर इसे थामे खड़ा रहा। उसने करंट लगने की परवाह भी नहीं की। तब जाकर बाबासाहब लाठी के सहारे कुर्सी से उठकर खड़े हो गए। एक अनुयायी ने माइक थामे रखा था। उस माइक पर बस चंद शब्द सुनाई दिए। उठा, उभे रहा, हाथ जोड़ा (उठ जाइए, खड़े रहिए, हाथ जोड़िए)  

नागपुर-जाम-चंद्रपुर की खस्ताहाल सड़क से आने पर गहरे गड्ढों से लगने वाले धक्कों से बाबासाहब का स्वास्थ्य बिगड़ सकता था। इसलिए उन्हें भिवापुर-नागभीड़ मार्ग से चंद्रपुर लाया जा रहा था। बावजूद उन्हें स्वास्थ्य की परेशानी होने लगी। तब आयोजकों ने उन्हें मूल के रेस्ट हाउस में कुछ देर के लिए रुकने व आराम करने का अनुरोध किया। जब वे रेस्ट हाउस पहुंचे तो परिसरवासियों का हुजूम उमड़ने लगा। इस बीच बाबासाहब ने भूख लगने की बात कही। भाकर (ज्वारी के आटा से बनी रोटी) तथा चटनी की मांग उन्होंने स्वयं की। विश्वरूपी शख्सीयत बन चुके बाबासाहब की यह सामान्य डिमांड पर सभी अनुयायी हैरत में पड़ गए। देवाजी बापू व लक्ष्मण जुल्मे ने पास के ही गोवर्धन नामक अनुयायी के घर पहुंचे। उसकी पत्नी से ज्वारी का आटा उपलब्ध होने संबंधित पूछताछ की। तत्काल ज्वारी की रोटी सेंकी गई और चटनी के साथ यह सामान्य भोजन बाबासाहब को परोसा गया। इस दौरान रेस्ट हाउस परिसर में बढ़ती भिड़ एवं चंद्रपुर 3 लाख से अधिक लोगों द्वारा बाबासाहब का इंतजार करने की स्थिति को देखते हुए आयोजक शाम 6 बजे मूल से चंद्रपुर निकल आए।

...वह इच्छा अधूरी रह गई 
16 अक्टूबर की शाम धम्म दीक्षा के बाद बाबासाहब की तबीयत और बिगड़ती चली गई। दूसरे दिन जब बैरिस्टर खोब्रागड़े का न्यौता मिला तो वे नहीं जा पाए। इस बीच दिन भर हजारों की संख्या में रेस्ट हाउस परिसर में जुटे लोगों एवं समता सैनिक दल के जवानों का हुजूम बाबासाहब की एक झलक पाने इंतजार कर रहा था। वे उनसे मिलने के लिए खुद को रोक नहीं पाए। गैलरी में आराम कुर्सी लगाने की बात कही और बाहर बैठकर लोगों से वे संवाद करने लगे। तब उन्होंने भद्रावती के ऐतिहासिक विहार की जानकारी दी व कहा कि जल्द उन्हें भद्रावती ले चलें। लेकिन खस्ताहाल सड़कें एवं उनकी तबीयत को देखते हुए बाबासाहब को भद्रावती जाने से रोका गया। तब उन्होंने कहा कि वे जब दोबारा आएंगे तो भद्रावती अवश्य जाएंगे, पर उनका दोबारा चंद्रपुर या भद्रावती में आगमन न हो सका।

स्मृति में ताजा हैं यादें
लेखक व इतिहासकार आचार्य डॉ. टी.टी. जुलमे बताते हैं,  बाबासाहब आंबेडकर के चंद्रपुर आगमन को लेकर हर पल की यादें स्मृति में ताजा हैं। भले ही मैं उस दौर में केवल 18 वर्ष का था, लेकिन जिस जुनून से लोग 62 वर्ष पूर्व दीक्षा भूमि पर पहुंचे थे, वह नजारा अद्भुत था। हर तरफ लोगों का हुजूम था। बाबासाहब के सम्मान में नारे लग रहे थे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर उम्र का व्यक्ति बाबासाहब की एक झलक पाने के लिए बेताब था। उनकी तबीयत यदि उस दौर में उत्तम होती तो शायद इससे अधिक गतिविधियां यादगार बन जाती। बावजूद चंद्रपुर के इतिहास में यह धम्म दीक्षा अविस्मर्णीय पल साबित हुई। आज भी लोग उस दिन को याद कर भाव-विभोर होते हैं। अनगिनत किस्से लोग सुनाते हैं। अनेक घटनाएं अब इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं।

इरई नदी पर नहीं था पुल

16 अक्टूबर की सुबह जब चांदा (चंद्रपुर का तत्कालीन नाम) के लिए बाबासाहब नागपुर निकले तो उन्हें लेकर आने वाले आयोजकों ने समझाया कि नागपुर-जाम-चंद्रपुर का मार्ग बेहद खस्ताहाल में है। चंद्रपुर के करीब स्थित इरई नदी पर पुल नहीं होने के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। उनके बिगड़े स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें भिवापुर-नागभीड़-मूल मार्ग से चंद्रपुर लाया गया।

ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस से रवाना
16 अक्टूबर 1956 की शाम धम्म दीक्षा के बाद बाबासाहब ने रेस्ट हाउस में ही रात बिताई। उनके साथ उनके निजी सेवक रत्तु व पत्नी माईसाहब मौजूद थे। 17 अक्टूबर को बैरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागड़े परिवार के न्योते पर बाबासाहब ने असमर्थता जाहिर कर माईसाहब को उनके निवास पर सम्मान स्वीकारने भेज दिया। 18 अक्टूबर की सुबह चंद्रपुर के रेलवे प्लेटफार्म पर बाबासाहब के आगमन की खबर से हजारों लोग वहां पहुंचे। तब स्टेशन मास्टर ने सीधे उस कार को प्लेटफार्म तक जाने दिया गया, जिसमें बाबासाहब सवार थे। पश्चात ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस से वे रवाना हो गए।   
भाषण नहीं, त्रिसरण व पंचशील से दी दीक्षा

उस पल के गवाह जीवित हैं

साहित्यकार प्रो. ईसादास भड़के बताते हैं, चंद्रपुर के दीक्षा भूमि पर बाबासाहब आंबेडकर के माध्यम से 3 लाख से अधिक लोगों ने धम्म दीक्षा प्राप्त की। इतिहासकारों ने इसका काफी अनुसंधान कर जानकारियां जुटाई हैं। 62 वर्ष पूर्व जो युवा थे, वे आज भी उन मंच पर घटित हुए संवाद व कार्यक्रम की जानकारी देते हें। अनेक लोगों की मृत्यु हो चुकी है, परंतु जीवित बुजुर्ग इस दिन को  गवाही देते हैं कि वह दिन चंद्रपुर के लिए कितना अहम दिन साबित हुआ।

Created On :   15 Oct 2018 6:27 PM GMT

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