डीएसपी , टीआई समेत 6 पुलिस कर्मियों के खिलाफ अपराध दर्ज कराने के आदेश

The district court has ordered to register the case against the TI  and others
डीएसपी , टीआई समेत 6 पुलिस कर्मियों के खिलाफ अपराध दर्ज कराने के आदेश
डीएसपी , टीआई समेत 6 पुलिस कर्मियों के खिलाफ अपराध दर्ज कराने के आदेश

डिजिटल डेस्क सतना। जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश अजीत सिंह की अदालत ने 10 साल पुराने एक मामले में एक बेकसूर को फर्जी मुकदमें में फंसाने पर कोलगवां थाने के तबके टीआई विमल श्रीवास्तव, तत्कालीन एसआई नीतू विश्वकर्मा,  एसआई महेन्द्र सिंह ठाकुर, एएसआई संतोष मिश्रा ,प्रधान आरक्षक शशिकांत पयासी और आरक्षक मोहनलाल के खिलाफ आईपीसी के सेक्सन 193,211,330 और 348 के तहत सीजीएम कोर्ट में अपराध दर्ज कराए जाने के आदेश दिए हैं।विशेष न्यायाधीश ने जिला दंडाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को भी निर्णय की प्रति  भेजते हुए आवश्यक कार्यवाही किए जाने के आदेश दिए हैं।

पति-पत्नी बने आरोपी
इन आरोपियों में से एक तबके कोलगवां टीआई विमल श्रीवास्तव जहां डीएसपी पद से रिटायर हो चुके हैं,वहीं नीतू विश्वकर्मा मौजूदा समय में कटंगी (बालाघाट) में डीएसपी  हैं। जबकि उनके आरोपी पति महेन्द्र सिंह ठाकुर बालाघाट में टीआई कोतवाली हैं।

 है मामला
पीडि़त के अधिवक्ता अरुण सिंह ने बताया कि अदालत में कोलगवां पुलिस की ओर से पेश की गई चार्जशीट में इस आशय का दावा किया गया था कि 8 अगस्त 2008 को मुखबिर की खबर पर मारुतिनगर में मुन्नालाल त्रिपाठी पिता रामचरण के घर पर छापामार कर मुन्नालाल को 11 किलो 400 ग्राम गांजा के साथ गिरफ्तार किया गया था। आरोपी को उसी दिन एनडीपीएस एक्ट की धारा 8, 20 के तहत कोर्ट में पेश करते हुए जेल भेजा दिया गया था। पुलिस का ये भी तर्क था कि  छापामारी के लिए समय कम होने के कारण वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना तो दी गई थी लेकिन वारंट नहीं लिया गया था।

7 दिन हवालात में
उधर, आरोपी मुन्नालाल ने  अदालत को बताया कि 1 अगस्त 2018 को जब वो   कीर्तन के कार्यक्रम से  लौट रहे थे तभी कोलगवां थाने की पुलिस टीम ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और नाजायज तरीके से न केवल 7 दिन तक थाने की हवालात में रखा गया बल्कि 8 अगस्त को फर्जी मुकदमा बना कर जेल भी भेज दिया। प्रकरण के विचारण पर विशेष न्यायाधीश अजीत सिंह की अदालत ने पाया कि  मुकदमा फर्जी है।  इस प्रकरण पर पुलिस की ओर से कुल 11 गवाह पेश किए गए थे मगर पुलिस गांजा की जब्ती तक सिद्ध नहीं कर पाई।
 

क्षमा के योग्य नहीं है कृत्य
अदालत ने टिप्पणी की है कि जिस व्यक्ति को विधि अनुसार दंड दिलाए जाने का अधिकार हो उनके द्वारा प्राधिकार का दुुरुपयोग कर निर्दोष व्यक्ति को अपराध में फंसाने का कृत्य क्षमा नहीं किया जा सकता। बल्कि उस व्यक्ति ने विचारण की मिथ्या पीड़ा झेली है। कोर्ट ने लिपिक रामलाल वर्मा को निदेॢशत किया है कि वो सीजीएम कोर्ट में आईपीसी  की धारा 193,211,330, 348 का परिवाद पेश करते हुए सभी आरोपी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध अपराध दर्ज कराएं।

 

Created On :   2 Nov 2018 8:09 AM GMT

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