वन कानून में प्रस्तावित बदलाव संस्थाओं को नहीं आ रहा रास, जताई आपत्ति

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वन कानून में प्रस्तावित बदलाव संस्थाओं को नहीं आ रहा रास, जताई आपत्ति
वन कानून में प्रस्तावित बदलाव संस्थाओं को नहीं आ रहा रास, जताई आपत्ति

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  राज्य में प्रस्तावित नए वन कानूनों पर नागरिकाें, स्वयंसेवी संस्थाओं और सिविल सोसाइटियों ने विरोध दर्ज कराया है। मुख्य रूप से तीन मामलों पर सबसे अधिक आपत्तियां दर्ज हुई हैं। उनमें प्रोटेक्ट क्षेत्र के निजीकरण, जनजाति अधिकार व बदलाव की पृष्ठभूमि शामिल है। देश भर में वन संबंधी कानूनों में समावेशी और व्यापक बदलावों पर स्वयंसेवी संस्थाओं पर सिविल सोसाइटीज से परामर्श के निर्देश के बाद अब तक केवल महाराष्ट्र में ही बैठक हुई है।

वन विभाग को अब तक 130 नागरिकों व संस्थाओं से सुझाव प्राप्त हुए हैं। बैठक के नोडल अधिकारी एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट संजीव गौर ने बताया कि बैठक में सामने आई आपत्तियों से केंद्र सरकार को अवगत कराया जाएगा। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र समेत देश सभी राज्यों में लागू 92 वर्ष पुराने वन कानून को सर्व समावेशी और व्यापक बनाने का फैसला लिया है। इसके लिए महाराष्ट्र सहित सभी राज्यों को बदलाव से संबंधी पहला ड्रॉफ्ट भेज दिया गया है। राज्य सरकारों को इस पर विभिन्न स्टेक होर्ल्डस जैसे स्वयंसेवी संस्थाओं और सिविल सोसाइटीज से परामर्श लेने का भी निर्देश दिया गया है। इसके तहत नागपुर में महाराष्ट्र वन विभाग के मुख्यालय वन भवन में बैठक हुई। बैठक में पीसीसीसीएफ हेड ऑफ फाॅरेस्ट फोर्स यूके अग्रवाल, प्रिंसिपल वन सचिव के प्रतिनिधि के तौर पर एपीसीसीएफ वीरेंद्र तिवारी,  मुख्यलाय के प्रमुख वरिष्ठ अधिकारी, नागरिक व स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए।

नोटिस जारी कर मंगवाए गए विचार
वन विभाग की ओर से कई अखबारों में नोटिस प्रकाशित करवा केंद्र सरकार की ओर से तैयार किए गए ड्राफ्ट पर लोगों, स्वयंसेवी संस्थाओं  और सिविल सोसाइटीज से विचार व संशोधन मंगवाया गया। कानून में कुल 26 मुद्दों पर बदलाव के प्रस्ताव हैं। सभी बदलावों का ब्योरा अखबार में प्रकाशित किया गया था। 

पुराना कानून
देश में लगभग सभी वनों में प्रबंधन 150 वर्ष पुराने कानून इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 के आधार पर किया जा रहा है। यह कानून 1878 में लागू किया गया था और 1927 में दुबारा लागू किया गया था। आजादी के बाद देश के अधिकतर राज्यों ने कुछ बदलावों के साथ इसे अपना लिए हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और जम्मू कश्मीर ने अपना कानून तैयार किया है, लेकिन उनमें भी अधिकतर भाग उसी कानून के अनुसार है। 

Created On :   20 July 2019 9:42 AM GMT

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