नामचीन हॉस्पिटल्स और स्टेंट निर्माता कंपनियों के महंगे दामों का शिकार मरीज, स्टेंट के नाम पर लूट

The victims of renowned hospital and stent maker companies are being cheated by the name of the patient, stent
नामचीन हॉस्पिटल्स और स्टेंट निर्माता कंपनियों के महंगे दामों का शिकार मरीज, स्टेंट के नाम पर लूट
नामचीन हॉस्पिटल्स और स्टेंट निर्माता कंपनियों के महंगे दामों का शिकार मरीज, स्टेंट के नाम पर लूट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। हार्ट सर्जरी के लिए नागपुर मध्य भारत में अपनी अलग पहचान रखता है। बेहतर तकनीक और Specialist doctors की सुविधा को देखते हुए, विदर्भ के अलावा पड़ोसी राज्यों एमपी , छत्तीसगढ़ से भी मरीज यहां आते हैं। इन मरीजों को एंजियोप्लास्टी के लिए इस्तेमाल होने वाले स्टेंट के दामों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं होती है। इसके कारण नामचीन हॉस्पिटल्स और स्टेंट निर्माता कंपनियों के महंगे दामों का ये शिकार बन जाते हैं।

देश में निर्मित स्टेंट की मैन्यूफैक्चरिंग कास्ट करीब 10,000 रुपए तक आती है, वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से कई दौर के रिसर्च एन्ड डेवलपमेंट के चलते स्टेंट की लागत 50,000 से 60,000 के बीच होती है। हालांकि दोनों ही प्रकार की स्टेंट की लागत खर्च में अंतर के बाद भी, मरीजों को कोई रियायत नहीं मिलती है। मरीजों को दोनों ही प्रकार की स्टेंट के लिए 80,000 रुपए से लेकर 1.50 लाख रुपए तक दाम चुकाने पड़ते हैं। पिछले साल Central health ministry ने आवश्यक स्वास्थ्य सेवा और औषधि की समीक्षा की, जिसके बाद स्टेंट समेत कई अन्य औषधि को जीवनावश्यक सूची में डालकर, दाम कम कर दिए हैं। Central health ministry के नियमों के तहत स्टेंट को अब सभी करों समेत 31,689 रुपए में मरीज को मुहैया कराना है। इस प्रावधान में स्टेंट निर्माता, विक्रेता और हॉस्पिटल पर कड़ी निगरानी का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी मरीजों की लूट थमने का नाम नहीं ले रही है। मरीजों से मनमाने दामों को वसूल करने के लिए डॉक्टर्स एक की बजाय दो स्टेंट तक के इस्तेमाल करने में गुरेज नहीं कर रहे है। कई हॉस्पिटल देशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्टेंट की गुणवत्ता को बताने की बजाय, अपनी मर्जी से सस्ते और मुनाफा कमाने वाले स्टेंट डाल रहे हैं। हॉस्पिटल्स के मुनाफा कमाने की कारगुजारी के चलते, मरीज को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक बेहतर रिसर्च और डेवलपमेंट के साथ निर्मित स्टेंट को लगाने पर बेहतर परिणाम आने के साथ ही संभावित ब्लॉक के खतरे से बचा जा सकता है, जबकि डॉक्टर की मर्जी से डाले जाने वाले सस्ते स्टेंट से भविष्य में ब्लॉक के जानलेवा होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

कैसे होती है निगरानी

Government medical college और हॉस्पिटल्स के माध्यम से संचालित सुपरस्पेशालिटी समेत 22 निजी कैथलेब सुविधा वाले हॉस्पिटल्स में एंजियोप्लास्टी होती है। विदर्भ में गड़चिराेली और भंडारा जिले को छोड़कर अन्य जिलों में 13 हॉस्पिटल भी एंजियोप्लास्टी की सुविधा दे रहे हैं। अकेले शहर में प्रतिमाह 750 स्टेंट की खपत होती है, जबकि पूरे विदर्भ में यह आंकड़ा 900 स्टेंट प्रतिमाह पहुंच जाता है। देश में तीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों मेट्रानिक, एबर्ट, बोस्टन साईंटिफिक के अलावा 7 देशी कंपनियां स्टेंंट का निर्माण करती हैं और मुहैया कराती हैं। 14 फरवरी 2017 को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (नेशनल फार्मास्युटिक्लस प्राइजिंग अथॉरिटी) ने मेडिसिन्स के रियायती दामों की घोषणा की थी। इन दामों की जनता और मरीजों को जानकारी देने का जिम्मा हॉस्पिटल्स को भी दिया गया है। नियमों के मुताबिक कैथलेब के समीप जानकारी का बोर्ड लगाना होता है। बोर्ड पर स्टेंट के नाम के साथ रेट लिखना जरूरी है। पहले स्टेंट पर रेट नहीं लिखे होने से हॉस्पिटल मनमाने दाम वसूलते थे, लेकिन अब 8% ट्रेड मार्जिन (निर्माता से विक्रेता तक) के साथ 31,689 रुपए के दाम पर बिक्री अनिवार्य की गई है। इस पूरी प्रक्रिया पर निगरानी के लिए स्टेंट निर्माता कंपनी, डीलर अौर हॉस्पिटल का प्रत्येक तिमाही ऑनलाइन ऑडिट भी किया जा रहा है। स्टेंट के दामों में गड़बड़ी पाए जाने पर निर्माता, डीलर और हॉस्पिटल के लाइसेंस को निरस्त किया जा सकता है।

Created On :   17 Aug 2017 1:49 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story