पूरे साल छकाते रहे बाघिन और तेंदुए, भागता रहा वन अमला

The whole year forest department ran behind the tigers and the leopard
पूरे साल छकाते रहे बाघिन और तेंदुए, भागता रहा वन अमला
पूरे साल छकाते रहे बाघिन और तेंदुए, भागता रहा वन अमला

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पूरे साल बाघिन और तेंदुए के पीछे वन अमला भागता रहा। बाघिन अवनि और तेंदुए की दहाड़ से पूरा साल गुजर गया। अवनि को जीते-जी पकड़ने की कवायद आखिरी समय तक पूरी नहीं हो सकी। 22 नवंबर की रात को बाघिन को गोली मार दी गई। जमकर बवाल हुआ। वन्यप्रेमियों के सामने पूरा वन विभाग कठघरे में खड़ा नजर आया। साल के अंत तक यह मामला पूरी तरह से हल नहीं हो सका। हालांकि 23 दिसंबर को बाघिन के एक शावक को पकड़ने में सफलता मिली, लेकिन एक शावक अब भी वन विभाग की पकड़ से दूर है। इसके अलावा साल भर बाघ व तेंदुए निवासी इलाकों में पहुंचते रहे।  

अवनि के आतंक में सहमे रहे ग्रामीण
रालेगांव परिसर में लंबे समय से अवनि नामक बाघिन की दहशत रही। बाघिन पर 13 इंसानों को मारने का आरोप लगा। जनवरी में वन विभाग ने उसे गोली मारने का आदेश दिया। वन्यप्रेमी कोर्ट पहुंचे। याचिका दायर की। कुछ समय तक बाघिन को गोली मारने का आदेश स्थगित कर दिया गया। बाद में इंसानों पर हमले की घटनाओं को देखते हुए और याचिका दायर करनेवालों की ओर से बाघिन को न मारने के लिए कोई ठोस बातें सामने नहीं रखने से आदेश को बरकरार रखा गया। वन विभाग का एक बड़ा दस्ता बाघिन के पीछे रालेगांव के जंगलों में घूम रहा था।

एक शावक अभी पकड़ से दूर
साल के आखिरी तक यानी 24 दिसंबर को वन विभाग को बाघिन का एक शावक यानी शीवन नामक मादा बाघिन को पकड़ने में सफलता मिली। उसे पेंच व्याघ्र प्रकल्प में छोड़ा गया है। हालांकि अभी एक शावक वन विभाग के हाथ नहीं लग पाया है।  

सीएम ने दी सफाई  
मुख्यमंत्री ने भी सामने आकर घटना की जांच कर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया था। राज्य स्तर पर एक समिति गठित करते हुए इसकी जांच भी हुई। इसमें शिकारी द्वारा बाघिन को मारने में नेशनल टायगर कन्जर्वेशन अथॉरिटी का उल्लंघन करने का खुलासा भी हु्आ था। हालांकि अब तक इस मामले में कोई खास कार्रवाई नहीं होती दिखी है। बाघिन को मारने के बाद उसके दो 11 माह के शावकों को पकड़ने की कवायदें वन विभाग ने शुरू की थी। करीब 20 से 25 दिन तो बाघिन के शावक दिखाई नहीं देने से वन्यप्रेमियों में प्रशासन के खिलाफ जमकर नाराजगी थी। ऐसे में वन्यप्रेमियों ने बाघिन की मौत को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर रैली भी निकाली थी।

इंसानी इलाकों में बाघ, तेंदुओं की घुसपैठ 
जंगलों में अतिक्रमण के कारण साल के आखिरी तक कई बार वन्यजीवों व इंसानों का सामना होता रहा है। यादगार घटनाएं इस प्रकार हैं-

अप्रैल में हिंगना के लता मंगेशकर अस्पताल परिसर स्थित पुलिस नगर में एक व्यक्ति के घर में तेंदुआ घुस गया था। करीब 3 घंटे के रेस्क्यू के बाद पकड़ने में सफलता मिल सकी थी।  इसी महीने में 24 तारीख को हिंगना परिसर में एक किसान के केले के बगीचे में बाघ के घुसने से पूरे गांव में दहशत रही।  सितंबर में खापा परिसर में एक 70 फीट गहरे खेत के कुएं में तेंदुआ गिर गया था। उसे निकालने में वन विभाग के पसीने छूट गए। हालांकि सीढ़ियों के माध्यम से रात में तेंदुआ निकल गया।  20 अक्टूबर को हैरान करनेवाली घटना सामने आई, जब बु्ट्टीबोरी के पास एक व्यक्ति के फार्म हाउस तक बाघ पहुंच गया था। इसने बैलों पर हमला भी किया था। हालांकि वन विभाग इस बाघ की झलक तक नहीं देख पाई थी। 27 जुलाई को जामठा स्टेडियम में एक दुर्लभ प्रजाति का तनमोर पक्षी मिला था।  24 अक्तूबर को कुही मांडल परिसर में एक सांबर जंगल क्षेत्र से आकर निवासी इलाकों में पहुंच गया था। दो घरों की तंग गलियों में फंसने से नागपुर की रेस्क्यू टीम इसे निकालने में परेशान रही।  दिसंबर माह के शुरुआत में सहारा सिटी के पास बाघ को देखने की चर्चा भी जोरों पर थी। 

रुला गई जाई की मौत 
वर्ष 2018 की बड़ी घटनाओं में महाराजबाग की जाई बाघिन की मौत भी रही। सांप के काटने के बाद लगभग 90 दिन मौत से संघर्ष कर इस बाघिन ने 29 मार्च को दम तोड़ दिया था। दरअसल साहेबराव बाघ को यहां से गोरवाड़ा शिफ्ट करने के बाद महाराजबाग में जूही व जाई दो बाघिनें थीं। लेकिन वर्ष 2017 के आखिरी में जाई नामक बाघिन को सांप ने काट लिया था। जैसे-तैसे बाघिन ने 3 माह दवाइयों के भरोसे खुद को मौत से दूर रखा, लेकिन मार्च महीने में उसकी मौत हो गई।  

अनामिका ने भी कहा-अलविदा
जाई की मौत को अभी भूला भी नहीं पाए थे कि महाराजबाग में फिर मायूसी छा गई। अनामिका नामक १० वर्षीय तेंदुए की अचानक मौत हो गई। यूरिनल इन्फेक्शन के चलते उसका लगातार उपचार जारी था।नागपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित गोरेवाड़ा जंगल में इस साल 3 बार आग धधकी। ग्रीष्म में इस आग के कारण कई हेक्टेयर जंगल खाक हो गया। मार्च महीने में ही दो बार आग की घटनाएं हुईं। बुझाने में प्रशासन के पसीने निकल आए। इसी साल गोरेवाड़ा का कायाकल्प भी होनेवाला था, लेकिन पीपीपी तर्ज पर होनेवाले विकास के कारण वन विभाग व निजी कंपनियों में तालमेल नहीं बैठने से इसे साकार करने का काम अगले वर्ष पर ढकेला गया है।

पहली बार ऐसा निर्णय
1.वन विभाग के इतिहास में संभवत: पहली बार ही कुछ प्रयोग हुए हैं, जिसकी ओर हर किसी का ध्यान आकर्षित हुआ है। इसमें साहेबराव बाघ को कृत्रिम टांग लगाने का निर्णय लिया है। दरअसल बचपन में ट्रैप में पैर फंसने से वर्तमान स्थिति में साहेबराव बाघ को चलने में आज भी दिक्कत होती है। ऐसे में इस बाघ को कृत्रिम टांग लगाने की दिशा में काम चल रहा है। इसके लिए 23 अगस्त को बाघ के पैरों का एक्सरे भी किया गया। हालांकि अब तक इस दिशा में काम आगे नहीं बढ़ सका है। 
2.इसके अलावा सांप को मारने पर कार्रवाई की पहली संभवत: पहली बार ही वनविभाग ने की है। जरीपटका इलाके में एक व्यक्ति के घर में धामन प्रजाति का सांप घूसने पर इस सांप को दो व्यक्ति ने मिलकर पहले मारा था, फिर इसे जलाया था। इस घटना को कैमरे में कैद कर वन्यजीव प्रेमियों ने वन विभाग को भेजा था। जिसके बाद सांप को मारकर जलानेवालों पर कार्रवाई की थी। 

बड़ा झटका...महाराजबाग की मान्यता रद्द हुई
साल के आखिर में एक बड़ा झटका वन्यप्रेमियों को तब लगा था, जब नेशनल जू अथॉरिटी ने महाराजबाग प्राणी संग्रहालय की मान्यता रद्द कर दी थी। जू अथॉरिटी के अनुसार महाराजबाग में जू रूल्स का पालन नहीं हो रहा है। हालांकि जू प्रशासन का कहना है कि मास्टर प्लान को महीनों से मंजूर नहीं करने से ऐसी स्थिति आई। फिलहाल इस मामले पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका है। 

Created On :   28 Dec 2018 8:55 AM GMT

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