सीप के मोती की अब होने लगी खेती, विदर्भ के किसानों की चमकी किस्मत

There is a miracle of cultivating natural gemstone pearls
सीप के मोती की अब होने लगी खेती, विदर्भ के किसानों की चमकी किस्मत
सीप के मोती की अब होने लगी खेती, विदर्भ के किसानों की चमकी किस्मत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सीप से बनने वाली मोती की कभी खेती भी होगी कुछ साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था, लेकिन प्राकृतिक रत्न मोती की खेती का चमत्कार हुआ है। फिलहाल तो विदर्भ के तीन लोग मोती पैदा कर रहे हैं। इसमें से किसी ने पारंपरिक तरीके होने वाली खेती छोड़ दी तो किसी ने दूसरे क्षेत्र को छोड़ मोती की खेती शुरू की है। इतना ही नहीं इन लोगों ने मोती की खेती करने का प्रशिक्षण देना भी शुरू किया है। इससे किसान परिवार और ग्रामीण क्षेत्र के लोगाें को रोजगार मिलने लगा है।

नागपुर के भवन पटेल 8 साल से, दर्यापुर अमरावती के मनोज ढोरे, डेढ़ साल से और गड़चिरोली के संजय गंडाते दो साल से मोती की खेती कर रहे हैं। इस खेती के लिए आवश्यक संसाधन के लिए शुरुआत में उत्पादन क्षेत्र के आधार पर अधिकतम 50 हजार रुपए तक खर्च आता है। बाद में कुछ ही लागत में इसका नियमित उत्पादन लिया जा सकता है। डेढ़ साल बाद इसका उत्पादन होता है जो 10 लाख रुपए तक होता है।

40 x 40 फीट के तालाब में खेती 
नागपुर से 37 किलोमीटर की दूरी पर है सावनेर। सावनेर से पांढुरना रोड पर पिपलाभाड़ी गांव है। यहां 40 x 40 फीट का तालाब बनाकर भवन पटेल मोती की खेती करते हैं। खेती करने के लिए उन्होंने देशभर के अनेक स्थानों पर प्रशिक्षण लिया है। लेकिन उन्हें कहीं भी तसल्ली नहीं हुई।

अंतत: उन्हें पता चला कि ओडिशा के भुवनेश्वर में मोती की खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर में 8 दिन प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2010 में भवन ने मोती की खेती करना शुरू किया।  2011 में उन्होंने 7 लाख 20 हजार रुपए का उत्पादन लिया। 

इस तरह बनते हैं सीप में मोती
मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जो सीप में तैयार होता है। प्राकृतिक प्रक्रिया के अनुसार सीप के भीतर जब कोई बाहरी कण जैसे रेत या इस तरह का कोई दाना प्रवेश करता है तो सीप उसे बाहर नहीं निकाल पाता। सीप के भीतर जो कण चला जाता है, उसके ऊपर सीप द्वारा चमकदार पर्त छोड़ी जाती है। डेढ़ साल तक यह प्रक्रिया जारी रहती है। अंत में यही कण मोती बन जाता है। यह असली मोती होता है। भवन के अनुसार मोती की पैदावार करने के लिए सीप को लाने से लेकर उसकी सर्जरी करने की प्रक्रिया करनी पड़ती है।

कोलार डैम में पैदा करने लगे सीप
भवन पटेल ने बताया कि शुरुआत में उन्हें अलग-अलग स्थानों से सीप लाना पड़ता था। देशभर की अनेक नदियों, डैम और तालाबों से सीप जमा कर नागपुर लाते थे। बाद में उन्हें लगा कि ऐसा कब तक चलेगा? इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न सीप की भी पैदावार यहीं की जाए। इसलिए उन्होंने दो-तीन बार कोलार डैम में बड़ी संख्या में सीप लाकर छोड़ दिए। इसके बाद वहां सीपों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। अब उन्हें सीप के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता। कोलार डैम के मछुआरे उन्हें जरूरत के हिसाब से सीप निकालकर दे देते हैं। उन्हें हर तीन महीने में 15 हजार सीपों की आवश्यकता पड़ती है।

यहां दिया जाता है प्रशिक्षण
नागपुर में महाराष्ट्र एनिमल एंड फिशरी साइंस यूनिर्वसिटी यानि माफसू में मोती की खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमारे पास सालभर में जितने सीखने के इच्छुक लोग आते हैं, हम उनकी सूची तैयार करते हैं। जब 10 या 15 लोग तैयार हो जाते हैं तो हम माफसू के संबंधित विभाग के एचओडी से बात करते हैं। उन्हें जानकारी देकर ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दिलाते हैं। माफसू के विशेषज्ञ मोती की खेती कैसे करना, उसके लाभ, सर्जरी आदि की बारीकियां बताते हैं।  
(एस.टी. वंजारी, मत्स्य उद्योग विकास अधिकारी, प्रादेशिक मत्स्यव्यवसाय विभाग नागपुर)

संयम और मेहनत जरूरी 

किसानों और बेरोजगारों के लिए मोती की खेती करना अच्छा विकल्प है। कुछ साल पहले तक नागपुर और पूरे विदर्भ में इस बारे में संसाधन या जानकारी देने वाला कोई नहीं था लेकिन अब यहां निजी प्रशिक्षण केंद्रों में जाकर आसानी से प्रशिक्षण लिया जाता है। हमारे पास हर साल 500 से अधिक लोग आकर प्रशिक्षण लेकर जाते हैं। मोती उत्पादन एक संयम का काम है। क्योंकि इसमें आज लागत लगायी तो उत्पादन डेढ़ साल के बाद मिलता है। इस कारण कई लोग इसे नहीं करते।
(भवन पटेल, मोती उत्पादक, नागपुर)

दर्यापुर के किसान मनोज ढोरे हुए सफल

पारंपरिक खेती करने वाले अमरावती जिले की दर्यापुर तहसील के किसान मनोज ढोरे ने मोती की खेती करने का रास्ता अपनाया। पहले वे तुअर, हरभरा और कपास की खेती करते थे। दिन-रात मेहनत के बावजूद उन्हें इसमें संतोषजनक आमदनी नहीं होती थी। इससे उन्हें कई तरह की समस्याएं आती थीं। तभी उन्हें किसी ने मोती की खेती के संबंध में बताया। पहले तो उनकी मानसिकता ही नहीं बन पायी। बाद में परिजनों और मित्रों के कहने पर उन्होंने इस बारे में और जानकारियां जुटायीं। एक निजी संस्थान में प्रशिक्षण के लिए गए। 2 दिन का प्रशिक्षण लिया। करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने अपने खेत में 40 x 40 फीट का गड्ढा कर वहां मोती की खेती शुरू की  इस तरह उनकी खेती किसानों के लिए नई राह बन चुकी है।

खेतिहर किसान का नजरिया
संकटग्रस्त किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं गड़चिरोली के किसान संजय गंडाते। बारिश पर निर्भर पारंपरिक खेती और कुदरत से दो-दो हाथ कर थक चुके संजय ने मोती की खेती शुरू की है। उन्होंने बताया कि धान की खेती के कारण उनके परिवार का गुजारा हो पाना मुश्किल हो चुका था। बड़े-बुजुर्गों से सीप से मोती पैदा होने की कहानियां सुनी थीं। उन्होंने सोचा कि क्यों न सीप से मोती निकाला जाए? इस तलाश में गड़चिरोली के कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। वहां से रास्ता खुला, जानकारी मिली। वहीं पर प्रशिक्षण लिया और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में मोती की खेती शुरू की। 

पहले 10 x 15 फीट का टैंक, बाद में 11 x 16 फीट का दूसरा टैंक, अब 16 x 16 का तीसरा टैंक बनाया है। शुरुआत में उन्हें कुल मिलाकर 15 से 20 हजार रुपए खर्च आया। अब कम खर्च आ रहा है। साल में वे अलग-अलग टैंकों से तीन बार उत्पादन लेते हैं। उस हिसाब से तैयारी करते हैं। संजय को सालाना 8 लाख से अधिक आमदनी होती है। 


 

Created On :   25 Jun 2018 10:20 AM GMT

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