रंगमंच पर लोगों को हंसाना आसान नहीं, कैरेक्टर को रखना पड़ता है परफेक्ट

To make people laugh is not a easy thing, character should be perfect
रंगमंच पर लोगों को हंसाना आसान नहीं, कैरेक्टर को रखना पड़ता है परफेक्ट
रंगमंच पर लोगों को हंसाना आसान नहीं, कैरेक्टर को रखना पड़ता है परफेक्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। रुलाना तो आसान है, पर हंसाना बहुत कठिन है। हंसाने के लिए खुद,अपने कैरेक्टर को परफेक्ट करना पड़ता है। अपने हाव-भाव और अपने अंदर की हर भावना का बस एक ही लक्ष्य होता है कि दर्शकों को कैसे हंसाया जाए। यह कहना है शहर के कॉमेडी करने वालों का। ये कहते हैं कि जब एक कलाकार स्टेज पर परफाॅर्म करता है, तो उसकी पूरी कोशिश होती है कि दर्शक उसके अभिनय से प्रसन्न रहें। हर पात्र की अपनी जिम्मेदारी होती है कि वो दर्शकों को कैसे अपनी तरफ खींचता है। उसके लिए स्क्रिप्ट तो मजेदार होनी ही चाहिए, पर कलाकारों की प्रस्तुति सबसे ज्यादा मायने रखती है।

कई बार पंच लाइन ज्यादा प्रभावशाली नहीं होने के बाद भी दर्शक कलाकार की विनोदी प्रस्तुति देखकर हंस पड़ते हैं। कई कैरेक्टर्स का गेटअप ही हंसाने के लिए काफी होता है। रंगमंच पर हर कलाकार का प्रयास रहता है कि दर्शकों को खुश कर सकें। रंगमंच के कलाकारों से चर्चा के दौरान बताया कि उनके एक नाटक के दौरान दर्शक हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। तब लगा कि उनका नाटक हिट हो गया। उस घटना के बाद वे हंसाने तो, क्या भूमिका निभाने की भी अवस्था में नहीं थे। 
मां की मृत्यु हुई थी, फिर भी दर्शकों को हंसाया
जब हम नाटक कर रहे होते हैं, तो उस वक्त हम सिर्फ एक कलाकार होते हैं। कलाकार को हमेशा अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए तैयार रहना चाहिए, तभी वो कामयाब हो सकता है। 11 जुलाई 1994 को मेरी मां की मौत हुई और उसके दूसरे दिन 12 जुलाई को मेरे पिताजी और मुझे मिमिक्री करके दर्शकों को हंसाना था। वह परिस्थिति हमारे लिए बहुत कठिन थी, पर हमने एक कलाकार होने के नाते ये सब भूलकर दर्शकों को खूब हंसाया।

ऐसा ही एक बार नाटक ‘मोरू की मावशी को शुरू होने में आधा घंटा बाकी था और मुझे अचानक काफी तेज बुखार आ गया। इतनी ठंड लगी कि मेरे ऊपर टीम के सदस्यों ने चार कंबल डाल दिए। फिर भी ठंड कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। इसी बीच मेरा रोल आ गया और जब मैं स्टेज पर आया, तो मेरा कास्ट्यूम और मेकअप देखकर ही लोग हंस पड़े। उसके बाद जब डायलॉग्स बोलना शुरू किया, तो दर्शक पेट पकड़ कर हंसने लगे, तब लगा मैं सक्सेस हो गया। अभी तक लगभग 400 से 500 नाटकों का मंचन कर चुका हूं। सभी से यही सीखा कि हंसाना बहुत कठिन है। 
(राजेश चिटणीस, कलाकार)
गेटअप प्रभावी हो

अभी तक 20 से 25 नाटकों में विनोदी भूमिका कर चुका हूं, जिसमें सीखा कि कॉमेडियन का रोल करना बहुत मुश्किल है। इसके लिए कैरेक्टर में बहुत गहराई तक जाना पड़ता है। कॉलेज बाॅय की कामेडी किया था, जिसमें सभी दर्शकों ने हंस-हंसकर अपना पेट पकड़ लिया। हिन्दी और मराठी नाटकों में कॉमेडियन का रोल कर चुका हूं। कलाकार की एक्टिंग के साथ उसका गेटअप भी उतना प्रभावी होना चाहिए कि लोग उसे देखते ही हंस पड़ें।

एक बार नाटक के पहले पता चला कि मेरे दोस्त की डेथ हो गई है, उस बात काे सुनकर बहुत दुखी हुआ। आंखें भी भर आईं, पर स्टेज पर जब आया, तो दर्शकों को बहुत हंसाया। विनोदी कलाकार के भी बहुत सारे दुख होते हैं। आखिर वो भी इंसान होता है। कई बार रोल के पहले ऐसी परिस्थितयां सामने आ जाती हैं कि समझ में नहीं आता है कि क्या करें। सबसे बड़ा कोई काम है तो दर्शको को हंसाना।
(निशांत अजबेले, कलाकार)
 

Created On :   10 Aug 2018 8:53 AM GMT

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