महाराष्ट्र के वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवारों पर बेघर होने का खतरा, आमदनी बढ़ाने केन्द्र की नई योजना जल्द

Tribal families living in forest areas of Maharashtra will be Homeless
महाराष्ट्र के वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवारों पर बेघर होने का खतरा, आमदनी बढ़ाने केन्द्र की नई योजना जल्द
महाराष्ट्र के वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवारों पर बेघर होने का खतरा, आमदनी बढ़ाने केन्द्र की नई योजना जल्द

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित देश के 16 राज्यों के वनक्षेत्रों में रहने वाले करीब 10 लाख लोग बेदखल हो सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वनवासी के रुप में अपने दावे स्थापित करने में नाकाम रहे इन लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया है। इस आदेश के बाद प्रदेश के वन क्षेत्र में रहने वाले 13,712 आदिवासी परिवारों पर बेघर होने का खतरा मंडराने लगा है। साथ ही 8797 अन्य पारंपरिक वन निवासी परिवारों के समक्ष आजीविका के साथ-साथ बेघर होने का खतरा बढ़ गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने वन अधिकार अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली एक वन्यजीव समूह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया है। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि वे सभी जिनके पारंपरिक वनभूमि पर दावे कानून के तहत खारिज हो जाते है उन्हे राज्य सरकारों द्वारा निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बैनर्जी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्यों को निर्देश दिए है कि उन सभी व्यक्तियों को वनभूमि से बेदखल करना सुनिश्चित करें जिनके वन अधिकार कानून के तहत दावों को खारिज कर दिया गया है।
बीते 13 फरवरी को इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, लेकिन इस दौरान केन्द्र सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के बचाव के लिए अपने वकीलों को ही नही भेजा। इस वजह से पीठ ने राज्यों को आदेश दे दिया कि वे आनेवाली 12 जुलाई तक उन सभी लोगों को बेदखल करें जिनके दावे खारिज हो गए है। साथ ही अदालत ने राज्य सरकारों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि अदालत ने जहां दावे खारिज करने के आदेश पारित किए गए हैं, वहां सुनवाई की अगली तारीख 24 जुलाई को या उससे पहले निष्कासन शुरु कर दिया गया हो। अगर इस तारीख तक लोगों का वनभूमि से निष्कासन शुरु नहीं होता है तो अदालत इस मामले को गंभीरता से लेगी।
इगौरतलब है कि वन कानून के तहत 2005 से पूर्व वन क्षेत्र में निवास करने वाले परिवार को जमीन और आवास पट्‌टा देने की बात की गई थी। 2006 में पारित वन कानून में केन्द्र सरकार ने आदिवासियों या पारंपरिक रुप से जंगलों में निवास करने वालों को उनके गांव के सीमाओं के भीतर वनों तक पहुंचने, प्रबंधन और शासन करने का अधिकार दिया था। जिसके तहत जंगल में निवास करने वाले प्रत्येक परिवार को चार एकड़ भूमि इस कानून द्वारा देने का प्रावधान था।

आदिवासियों की आमदनी बढाने के लिए केन्द्र की नई योजना जल्द

उधर केन्द्र सरकार आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए उनके द्वारा एकत्रित लघु वनोपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से उचित और न्यायसंगत मूल्य प्रदान कराने की वनधन योजना का 28 फरवरी को शुभारंभ करने जा रही है। ट्राईफेड के निदेशक प्रवीर कृष्ण के अनुसार यह योजना महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित कुल 27 राज्यों में लागू होगी। उन्होने कहा कि यह योजना वैसे पुरानी है, लेकिन सरकारी अनस्था के कारण इसका आदिवासियों को कोई लाभ नही मिल सका। लिहाजा इसकी कमियों-खामियों को दूर करके वनोपजों को सही एमएसपी के साथ फिर से लागू करने जा रहे है।  पुर्नजीवित की जा रही इस योजना के तहत विक्रय के लिए इसमें करीब 75 तरह की सामग्री शामिल की जा रही है। जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राईफेड)इन चयनित लघु वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करेगा। 2013-14 में जब यह योजना लागू हुई तब इसके तहत केवल 10 सामग्री (इमली, महुवा, आंवला आदि) पर ही एमएसपी घोषित की थी। 2014-15 में इसके व्यापार से करीब 55-60 करोड़ एमएसपी क्रय किया गया। वनोपजों के क्रय की अपार संभावनाओं को देखते हुए 2016-17 में सामग्री को 10 से बढाकर 23 कर दिया गया। बावजूद एमएसपी का मूल्य कम होने के कारण आदिवासियों को इसका अपेक्षा के अनुरुप लाभ नही हो रहा था। आदिवासी महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए ट्राइफेड ने गुरुवार को केरल सरकार से भी समझौता किया है। इसके तहत केरल में रहने वाले आदिवासियों द्वारा नारियल रेशे से बनाये जाने वाले उत्पादों को राष्ट्रीय अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग की जायेगी। ट्राइफेड का यह प्रयास सफल होता है तो महाराष्ट्र के तटिय क्षेत्र के आदिवासियों के लिए भी यह रोजगार का अच्छा अवसर हो सकता है। कृष्ण के मुताबिक महाराष्ट्र में भी नारियल का अच्छा खासा उत्पादन होता है। लिहाजा वहां के आदिवासियों की आमदानी बढाने के लिए भी इसी तरह की संभावना तलाशी जा सकती है।  

Created On :   21 Feb 2019 4:31 PM GMT

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