आज है महाकवि तुलसीदास जी की जयंती 

Tulsidas Jayanti 2018: All You Need To Know About Tulsidas JI and Its Interesting Facts
आज है महाकवि तुलसीदास जी की जयंती 
आज है महाकवि तुलसीदास जी की जयंती 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। श्रावण मास की सप्तमी के दिन महाकवि तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 17 अगस्त 2018 के दिन गोस्वामी तुलसीदास जयंती पड़ रही है। तुलसीदास जी जिनका नाम आते ही प्रभु राम का स्वरुप भी सामने उभर आता है। तुलसीदास जी रामचरित मानस के रचयिता तथा उस भक्ति को पाने वाले जो अनेक जन्मों को धारण करने के पश्चात भी नहीं मिल पाती उसी अदभुत स्वरुप को पाने वाले तुलसीदास जी सभी के लिए सम्माननीय एवं पूजनीय रहे हैं।

तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में एक ब्राह्राण परिवार में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहने के कारण काफी हष्ट-पुष्ट थे। जन्म के समय में इनके मुख में 32 दांत थे और जन्म लेने के साथ इन्होंने राम शब्द का उच्चारण किया था जिससे इनका नाम रामबोला पड़ गया।

तुलसीदास जी ने अपने बाल्यकाल में से ही अनेक दुख उठाए जब वे युवा हुए तो उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ, अपनी पत्नी रत्नावली से इन्हें अत्यधिक प्रेम था परंतु अपने इसी प्रेम के कारण उन्हें एक बार अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार भी सुनना पड़ी थी। रत्नावली ने उन्हें फटकारते हुए कहा था कि

"लाज न आई आपको दौरे आए हु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।।

रत्नावली के इन शब्दों ने तुलसीदास जी के जीवन की दिशा ही बदल दी और तुलसी जी, राम जी की भक्ति में ऐसे डूबे कि उनके अनन्य भक्त बन गए। कुछ दिन बाद इन्होंने फिर गुरु बाबा नरहरिदास जी से दीक्षा प्राप्त की। तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। तुलसी दास जी अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे उन्होंने अनेक कृतियों की रचना की है।

तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों में रामचरित मानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण, रामलला लक्षु इत्यादि रचनाएं प्रमुख हैं।

ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास को हनुमान, भगवान राम-लक्ष्मण और शिव-पार्वतीजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे। अपनी यात्रा के समय तुलसीदास जी को काशी में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी के दर्शन करने के बाद तुलसीदास ने भगवान राम के दर्शन कराने की प्रार्थना की। इसके बाद उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं सके। इसके बाद फिर मौनी अमावस्या के दिन पुन: भगवान श्रीराम के दर्शन हुए उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-"बाबा! 
हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?" 
हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण कर दोहे में बोलकर इशारा किया।

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। 
तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए। भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए। गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया।

वाल्मीकि जी की रचना "रामायण" को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की। तुलसीदास जी संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस को बहुत भक्तिभाव से पढ़ा जाता है, रामचरितमानस जिसमें तुलसीदास जी ने भगवान राम के चरित्र का अत्यंत मनोहर एवं भक्तिपूर्ण चित्रण किया है।

दोहावली में तुलसीदास जी ने दोहा और सोरठा का उपयोग करते हुए अत्यंत भावप्रधान एवं नैतिक बातों को बताया है। कवितावली में श्री राम के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में किया गया है। रामचरितमानस के जैसे ही कवितावली में सात काण्ड मौजूद हैं। गीतावली सात काण्डों वाली एक और रचना है जिसमें श्री रामचन्द्र जी की कृपालुता का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया गया है। 
 
इसके अतिरिक्त विनय पत्रिका कृष्ण गीतावली तथा बरवै रामायण, हनुमान बाहुक, रामलला नहछू, जानकी मंगल, रामज्ञा प्रश्न और संकट मोचन जैसी कृत्तियों को रचा जो तुलसीदास जी की छोटी रचनाएं रहीं। रामचरितमानस के बाद हनुमान चालीसा तुलसीदास जी की अत्यन्त लोकप्रिय साहित्य रचना है। जिसे सभी भक्त बहुत भक्ति भाव के साथ सुनते हैं।

तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक प्रकार की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने विधर्मी बातों, पंथवाद और सामाज में उत्पन्न बुराईयों की आलोचना की उन्होंने साकार उपासना, गो-ब्राह्मण रक्षा, सगुणवाद एवं प्राचीन संस्कृति के सम्मान को ऊपर उठाने का प्रयास किया वह रामराज्य की परिकल्पना करते थे।

भगवान की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी (वाणारसी) चले आए। वहां उन्होंने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रख दी गई। प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गए तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया- (सत्यं शिवं सुन्दरम्‌)

जिसके नीचे भगवान्‌ शंकर की सही (पुष्टि) थी। उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने "सत्यं शिवं सुन्दरम्‌" की आवाज भी कानों से सुनी। इधर उनके इस कार्यों के द्वारा समाज के कुछ लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे तथा उनकी रचनाओं को नष्ट करने के प्रयास भी किए किंतु कोई भी उनकी कृत्तियों को हानि नहीं पहुंचा सका।

आज भी भारत के कोने-कोने में रामलीलाओं का मंचन होता है। उनकी जयंती के उपलक्ष्य में देश के कोने कोने में रामचरित मानस तथा उनके निर्मित ग्रंथों का पाठ किया जाता है। तुलसीदास जी ने तब से अपना अंतिम समय काशी (वाणारसी) में व्यतीत किया और वहीं प्रसिद्ध विख्यात घाट अस्सीघाट पर संवत‌ 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन अपने प्रभु श्री राम जी के नाम का स्मरण करते हुए अपने शरीर को त्याग दिया|

Created On :   15 Aug 2018 8:04 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story