बेरोजगारी का हाल: पोस्ट ग्रेज्युएट की डिग्री लेकर ढो रहे मिट्‌टी

Unemployment problems in gondia district of maharashtra
बेरोजगारी का हाल: पोस्ट ग्रेज्युएट की डिग्री लेकर ढो रहे मिट्‌टी
बेरोजगारी का हाल: पोस्ट ग्रेज्युएट की डिग्री लेकर ढो रहे मिट्‌टी

डिजिटल डेस्क, गोंदिया। उच्च शिक्षा लेकर अच्छी नौकरी पाने की ख्वाहिश हर किसी की होती है, लेकिन आज बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि "पोस्ट ग्रेज्युएट" युवक-युवतियां मनरेगा के कामों पर मिट्टी फेंकने को मजबूर हो गए है। गांव-गांव में इन दिनों मनरेगा के कार्य चल रहे है। जहां अन्य मजदूरों के साथ ही सैकड़ों उच्च शिक्षित युवक-युवतियां भी मिट्टी फेंकते नजर आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए शासन द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कई वर्षों से चलाई जा रही है। पहले इस योजना के कामों पर अल्पशिक्षित मजदूर ही दिखाई देते थे। जबकि आज उच्च शिक्षित मजदूरों का भी प्रमाण बढ़ गया है। इस तुलना में रोजगार का प्रमाण नहीं बढऩे से सुशिक्षित बेरोजगार नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। 

मजबूरी में कर रहे काम
कई जगह उच्च शिक्षित रहने के बावजूद भी बहुत ही कम मजदूरी में वे काम कर रहे है। ऐसे कामों से अधिक मजदूरी मनरेगा के कार्यों पर काम करने से मिलने के कारण वे अब मनरेगा के कामों की मिट्टी फेंकने को मजबूर हो गए हैं। यह स्थिति किसी एक काम पर कार्यरत एक मजदूर की नहीं, बल्कि सैकड़ों की संख्या में ऐसे उच्च शिक्षित मजदूर काम कर रहे हैं। जिससे युवाओं को रोजगार देने का शासन का दावा खोकला नजर आ रहा है। जिले में कोई भी बड़ा उद्योग नहीं होने से इन युवक-युवतियों को मनरेगा के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। जिससे वे मजबूरी में मिट्टी फेंक रहे है। गांव-गांव के मनरेगा कामों पर  ग्रेज्युएट, पोस्ट ग्रेज्यएट, डीएड, बीएड, बीपीएड, डिग्री धारक युवक-युवतियां कार्य कर रहे है। इसमें सर्वाधिक प्रमाण डीएड धारकों का होने की जानकारी रोजगार सेवकों ने दी है। जिले के जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते बड़ा रोजगार निर्माण हो सके ऐसे उद्योग नहीं है। स्वयं उद्योग के लिए युवा जब कर्ज के लिए बैंक जाते है तब वहां भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता। यही वजह है कि जिले में सुशिक्षित एवं होनहार युवाओं की संख्या अधिक होने के बावजूद भी वे उद्योजक नहीं बल्कि मजदूर बनकर कार्य कर रहे हैं। जो जनप्रतिनिधियों की असफलता को बयां कर रहे हैं।  

 निजी स्कूलों से अधिक आय मनरेगा में 
 अंजोरा ग्राम में ही मनरेगा में पिछले एक माह से मिट्टी फेंकने का कार्य कर रहा हूं। बीए, डीएड तक शिक्षा प्राप्त की है। आज हजारों की संख्या में सुशिक्षित युवक रोजगार की तलाश में यहां-वहां भटक रहे है, लेकिन काम नहीं मिल रहा है। वे यदि निजी शालाओं में अध्यापन के लिए जाएं तो वहां भी 2-4 हजार से अधिक प्रतिमाह नहीं मिल पाता। जबकि  मनरेगा में कार्य करने पर 6 से 7 हजार रुपए तक की आय हो जाती है। साथ ही वर्षभर में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध होता है और अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ भी मिलता है, इसलिए वे यहां काम कर रहे हैं।     
राजकुमार रहांगडाले,  अंजोरा


शिक्षा का महत्व नहीं रहा
आमगांव तहसील के ग्राम अंजोरा में बीए तक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद मनरेगा के तहत नहर खुदाई के काम पर पिछले ३५ दिनों से कार्यरत हूं।  उच्च शिक्षा का अब महत्व ही नहीं रहा है। शिक्षित होने के बावजूद सरकार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रही है। इसलिए जीवनयापन के लिए कुछ न कुछ करना अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि वे मनरेगा में काम करने के साथ ही स्पर्धा परीक्षा की तैयारी भी कर रहे हैं।   
निखिल गोटे, अंजोरा

Created On :   7 March 2018 10:48 AM GMT

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