उत्पन्ना एकादशी आज : अश्वमेध यज्ञ से सौ गुना ज्यादा फल देता है इस विधि से व्रत

Utpanna Ekadashi, Vrat Katha puja Vidhi and Shubh Muhurt 2017
उत्पन्ना एकादशी आज : अश्वमेध यज्ञ से सौ गुना ज्यादा फल देता है इस विधि से व्रत
उत्पन्ना एकादशी आज : अश्वमेध यज्ञ से सौ गुना ज्यादा फल देता है इस विधि से व्रत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्पन्ना एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह मार्गशीर्ष मास के कृृष्ण पक्ष के दिन किया जाता है जो कि इस वर्ष 14 नवंबर 2017 अर्थात अाज किया जा रहा है। ये व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। सन्यासी, विधवा या मोक्ष की कामना करने वालों को यह व्रत अवश्य ही करना चाहिए। 

कभी-कभी एकादशी का उपवास लगातार दो दिनों में होता है। इस संबंध में विद्वान ऐसी सलाह देते हैं कि परिवार के साथ केवल पहले दिन उपवास का पालन करना चाहिए। वैकल्पिक एकादशी उपवास जो दूसरे दिन है सन्यासी विधवाओं सहित उनके लिए है जो मोक्ष चाहते हैं। दोनों दिन एकादशी का व्रत वही भक्त रखते हैं जो भगवान विष्णु के अखंड भक्त हैं और उनसे प्यार एवं स्नेह की मांग करते हैं। कहा जाता है कि जो फल अश्वमेध यज्ञ करने से सौ गुना, एक लाख साधु व तपस्वियों को 60 वर्ष तक भोजन कराने से प्राप्त होता है वह पुण्य इस व्रत को रखने से होता है।

यह है कथा

इस व्रत को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार मुर नामक एक राक्षस से भगवान विष्णु ने सहस्र वर्षों तक युद्ध किया। वे जो भी शस्त्र उस पर चलाते वह फूल बनकर उस पर बरसने लगता। इसके बाद भगवान विष्णु थककर एक गुफा में आराम करने के लिए चले गए। मुर राक्षस भी उनके पीछे गया, और आराम की मुद्रा में उन पर वार करने को तत्पर हुआ। उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई। जिसने राक्षस मुर से घोर युद्ध किया और अंत में उसका सिर काटकर मुर का अंत कर दिया। इतने में भगवान विष्णु आराम की मुद्रा से जागे और उस कन्या से राक्षस के वध के बारे में पूछा। कन्या ने बताया कि इस राक्षस का अंत करने मैं आपके ही शरीर से उत्पन्न हुई हूं। यह एकादशी का दिन था और भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न होने के कारण इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना गया।

शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ : 13 नवंबर 12.25 बजे से  
एकादशी तिथि समाप्त : 14 नवंबर 12.35 बजे तक

पूजन विधि 

-एकादशी को सुबह भोर से पहले उठें और शुद्ध जल या पवित्र नदी तट पर स्नान कर व्रत का संकल्प लें। 
-इस दिन चोर, पाखंडी, परिस्त्रीगामी, निंदक या मिथ्याभाषी करने वालों से दूर रहें और खुद भी ऐसे किसी भी प्रकार के पाप को करने से बचें। 
-स्नान के बाद धूप, दीप, नैवद्य सहित ब्राम्हण के बताए अनुसार 16 वस्तुओं से भगवान का पूजन कर दीपदान करें। 
-इस व्रत में रात्रि जागरण करें किसी भी प्रकार का प्रसंग करने से बचें। पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए बिताएं। 
-जो पाप कभी भी पहले अनजाने में हो गए हैं भजन कीर्तन करते हुए उनके लिए क्षमा याचना करें। 
-इस दिन तामसिक वस्तुओं का ना ही सेवन करें और ना ही पकाएं। 

Created On :   7 Nov 2017 4:35 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story