कमण्डल से जल छिड़कते ही प्रकट हो गईं मां सरस्वती, ये है पूरी कथा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। माघ शुक्ल की पंचमी को मां सरस्वती का प्रकटोत्सव मनाया जाता है। इस दिन को बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष इस दिन पंचक भी है, किंतु बसंती पंचमी के शुभ मुहूर्त में मां सरस्वती का पूजन सर्वाधिक उत्तम फलों को प्रदान करने वाला होगा। बसंती पंचमी 22 जनवरी 2018 को मनाई जाएगी। सोमवार का दिन होने की वजह से भगवान शिव का पूजन मां सरस्वती के साथ ही सर्वाधिक उत्तम होगा। बसंत को खुशियों के संकेत के रूप में भी देखा जाता है।
बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है ऋतुओं में मैं बसंत हूं। अर्थात इस ऋतु के आगमन को जीवन के संगीत से भी जोड़ा जाता है।
सृष्टि की रचना के बाद भी संतुष्ट नही थे ब्रम्हदेव
पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की रचना के बाद भी ब्रम्हदेव संतुष्ट नही थे। उन्हें कुछ अधूरा लगता था। हर ओर खामोशी थी। मौन छाया रहता था। तब भगवान विष्णु की सलाह पर उन्होंने कमण्डल से जल छिड़का और एक चतुर्भुज देवी का अवतरण हुआ, जिसके हाथों में वीणा थी। वीणा के तारों पर हाथ पड़ते ही सृष्टि में सुर व संगीत का संचार हुआ। जीवों और प्राणियों में ध्वनि आ गई। सृष्टि में हर ओर मधुर संगीत गुंजायमान हो गया। जिस दिन मां सरस्वती प्रकट हुईं वह बसंत पंचमी का दिन था। इसलिए इस दिन उनका प्रकटोत्सव मनाया जाता है।
मांगा जाता है विद्या, बुद्धि का वरदान
मां सरस्वती के एक हाथ में ग्रंथ है वे कमलपुष्प पर विराजमान हंसवाहिनी हैं। उन्हें विद्या एवं बुद्धि की देवी माना जाता है। संगीत क्षेत्र से जुड़े एवं कलाकार मां सरस्वती के पूजन के बाद ही किसी भी नवीन रचना का प्रारंभ करते हैं। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान मांगा जाता है।
Created On :   16 Jan 2018 2:34 AM GMT