कश्मीर में घरलू हिंसा पर मुंह नहीं खोलतीं पीड़िताएं

Victims do not open their mouth on domestic violence in Kashmir
कश्मीर में घरलू हिंसा पर मुंह नहीं खोलतीं पीड़िताएं
कश्मीर में घरलू हिंसा पर मुंह नहीं खोलतीं पीड़िताएं
पंपोर, 8 अगस्त (आईएएनएस)। जम्मू एवं कश्मीर में जहां ताजा घटनाक्रम को लेकर तनाव का माहौल है, वहीं घरलू हिंसा और पीड़िता का इसे लेकर आवाज ना उठा पाना अभी भी बहुत बड़ी समस्या है।

राज्य में बाकी सभी बड़ी घटनाएं बड़े राजनीतिक संघर्ष के कारण दब जाती हैं और जो कुछ भी राजनीतिक एजेंडा सांख्यिकी या अलगाववादी के अनुरूप नहीं होता, उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इस कारण महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही है और उन्हें समाज या मीडिया कोई महत्व नहीं दे रहा है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में जब वर्ष 2016 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ने की बात सामने आई, तो कश्मीर की दो महिलाओं मंतशा बिंती राशिद और सुबरीन मलिक ने इस बात पर विचार किया कि राज्य में जमीनी स्थिति गंभीर है और इससे निपटने के लिए कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।

मंतशा बिंती राशिद एक स्वैच्छिक संगठन कश्मीर वुमेन कलेक्टिव (केडब्ल्यूसी) की संस्थापक सदस्य हैं। यह संगठन कश्मीरी महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा और दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाता है।

इसके अलावा, वह राज्य के उद्योग विभाग में एक नौकर शाह हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क की स्टेट यूनिवर्सिटी में लिंग और नीति का अध्ययन किया है।

उन्होंने कहा, कश्मीर में महिलाओं के लिए कुछ किए जाने की जरूरत थी। मैं कुछ समय से एक महिला सामूहिक बनाने के बारे में विचार कर रही थी, जब मैं सुबरीन और कुछ अन्य महिलाओं से मिली, जो मेरी ही तरह का विचार कर रही थीं, तो आखिरकार मैंने इसे शुरू कर दिया।

जम्मू एवं कश्मीर महिला आयोग के अनुसार, आयोग को 2014 में 142, 2015 में 155 और 2016 में 177 शिकायतें मिलीं। इसी साल कश्मीर में 60 दिनों के लिए कर्फ्यू लगा हुआ था।

साल 2017 में अकेले कुल 335 मामले सामने आए। इसमें से 277 कश्मीर क्षेत्र के और 58 मामले जम्मू क्षेत्र के थे। सभी मामलों में से लगभग 95 फीसदी मामले वैवाहिक विवादों से संबंधित रहे, जिनमें झगड़ा करना, गाली-गलौज करना, तलाक देना, बच्चों को अपने पास रखने को लेकर मामले शामिल हैं।

केडब्ल्यूसी की अन्य संस्थापक सदस्य सुबरीन मलिक लगभग एक दशक से वकालत कर रही हैं। उनका ध्यान महिलाओं के खिलाफ घरेलू दुर्व्यवहार और भेदभाव के मामलों पर है। वह ज्यादातर मामलों में केस लड़ने के लिए कोई शुल्क नहीं लेती हैं।

--आईएएनएस

Created On :   8 Aug 2019 11:30 AM GMT

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