सफाई के मामले में वर्धा रेलवे स्टेशन देश में 7वे पायदान पर काबिज

Wardha railway station is 7th in the country in terms of cleanliness
सफाई के मामले में वर्धा रेलवे स्टेशन देश में 7वे पायदान पर काबिज
सफाई के मामले में वर्धा रेलवे स्टेशन देश में 7वे पायदान पर काबिज

डिजिटल डेस्क, वर्धा। वर्धा को वैसे तो गांधी जिला के तौर पर पहचाना जाता है। बापू की इस कर्म भूमि का रेलवे स्टेशन सफाई में अब आगे निकल चुका है। देश के 36वे और डिविजन में 7वे नंबर पर इसकी गिनती होने लगी है। बता दें महात्मा गांधी जयंती से वर्धा रेलवे स्टेशन में "स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत अभियान" चलाया गया। अब इसकी मुहिम रंग लाई। इसका श्रेय सफाई श्रमिक व स्टेशन प्रबंधक एस. एस. ठाकुर तथा सी.एच.आई. पुष्पलवार को दिया जा रहा है।

चार वर्षों की मेहनत रंग लाई
बता दें विदर्भ युवक स्वरोजगार सेवा सहकारी संस्था को वर्ष 2013  में वर्धा रेलवे स्टेशन की साफ-सफाई का ठेका दिया गया था। तब से इस संस्था ने वर्धा रेलवे स्टेशन सफाई काम की ओर विशेष ध्यान दिया। और आज उनकी मेहनत रंग लाई है। यह काम संस्था यांत्रिकी पद्धति से कर रही है। जिसके लिए संस्था ने बड़े पैमाने में सफाई यंत्र साम्रगी उपलब्ध करायी। इस यंत्र द्वारा वर्धा रेलवे स्टेशन की सफाई की जा रही है। साथ ही स्टेशन पर सभी यात्रियों को भी सफाई अभियान में सहभागी होकर स्टेशन स्वच्छ रहेगा, इस पर ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही सफर करने वाले यात्रियों को वर्धा रेलवे स्टेशन की सफाई देखकर संतोष व्यक्त किया।

इस अभियान में विशेष योगदान देने वाले वर्धा रेलवे स्टेशन के प्रबंधक एस.एस. ठाकुर तथा सी. एच. आई. पुष्पलवार, संस्था अध्यक्ष अमित परांजपे, संस्था सदस्य सिद्धार्थ सवाई, सुपरवाइजर मनोज खेडकर, सफाई श्रमिक दिनेश शेंडे, जयप्रकाश डाहाका, मुन्ना तायडे, अनिल जगताप, बंटी जयस्वाल, रवि नानेटकर, रमेश नरपांडे, दीपक जनबंधु, अमोल डोईफोडे, पवन नेवारे, गणेश सकते, गोपाल नेताम, राहुल तामगाडगे ने विशेष योगदान दिया।


वर्धा में मिली दुर्लभ वनौषधि
प्रचुर वनसंपदा वाले विदर्भ में दुर्लभ जड़ी-बूटियों की भी कमी नहीं है। ऐसे ही दुर्लभ वनौषिध निर्गुड़ी (एलेक्टा पैरासाइटिका)  फेमिली स्क्रोफूलेरियासी जिले में मिली है। इस दुर्लभ वनऔषधि की खोज मानद वाइल्ड लाइफ वार्डेन व जैविक विविधता मंडल के कौशल मिश्र की टीम ने की है।

कुष्ठरोग ,पक्षाघात का रामबाण उपचार
काफी दुर्लभ तथा तेज गति से नष्ट होने वालीे निर्गुडी (एलेक्टा पॅरासाईटिका)  वनस्पति सैकड़ों वर्ष से कुष्ठरोग, क्षयरोग, पक्षाघात व पेट की बीमारी में उपयोग में लायी जा रही है, लेकिन कुछ खास क्षेत्र में ही यह उगाई जा सकती है। मौसम पर आधारित इस जड़ी-बूटी की  जानकार वैद्य ही अधिक  उपयोग करते हैं। उल्लेखनीय है कि अकोला जिले में निर्गुडी (एलेक्टा पॅरासाईटिका) में इस वनस्पति का पंजीयन प्रधान व कांबले द्वारा वर्ष 1988 में किया गया है। इस वनस्पति का दूसरा प्रकार एलेक्ट्रा, चित्रकुटसीस की खोज चित्रकुट में की गई है। निर्गुडी (एलेक्टा पॅरासाईटिका)  वृक्ष के समीप मिट्टी में व जड़ के पास उगनेवाली वनस्पति पैरासाइट तरह की है। निर्गुडी जड़ का रस शोषण कर खुद फैलती जाती है।





वैसे तो वर्धा जिले में निर्गुडी  काफी कम क्षेत्र में है। कौशल मिश्रा के अनुसार यह मुख्य रूप में नदी तट में रेत व काली मिट्टी जहां एकत्रित रहती है, वहां होता है। वैज्ञानिक खोज की तरह इसमें अल्कोलायट का सूक्ष्म जीवनावश्यक का प्रभाव काफी प्रभावी है। मेट तथा मदन तालाब परिसर में खोज कार्य में डॉ. रमेश आचार्य, डॉ. चित्रकुमार झंवर वरिष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक के मार्गदर्शन में जारी है। स्थल खोज संरक्षण कार्य में द्रव शास्त्र विभाग में डॉ. अतुल खोब्रागडे, सुरेश झोडे व पोखरे काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उपवन संरक्षक दिगंबर पगार ने जैविक विविधता संरक्षण व उपक्रम पर अनेक बार मार्गदर्शन कर मदद की है।

Created On :   22 Nov 2017 1:03 PM GMT

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