बैक टू द रूट्स एन. रघुरामन ने बताए जीवन के फंडे, डीबी इम्प्रेशन्स की वर्षगांठ पर विशेष कार्यक्रम

We are broken from the roots of existence -N Raghuraman
बैक टू द रूट्स एन. रघुरामन ने बताए जीवन के फंडे, डीबी इम्प्रेशन्स की वर्षगांठ पर विशेष कार्यक्रम
बैक टू द रूट्स एन. रघुरामन ने बताए जीवन के फंडे, डीबी इम्प्रेशन्स की वर्षगांठ पर विशेष कार्यक्रम

डिजिटल डेस्क, नागपुर। हमें लगता है कि आज हमने बहुत प्रगति कर ली है, हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हमने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया है।  अस्तित्व की जड़ों से हम टूट चुके हैं। दिखावा करने के चक्कर में अपनी विशेषताओं को छाेड़कर हम आडंबरों पर जोर दे रहे हैं। यदि हमें अपना अस्तित्व कायम रखना है, तो राष्ट्र के लिए एक चरित्र का निर्माण करना होगा और इसके लिए हमें फिर से हमारी जड़ों से जुड़ना होगा। देश के जाने-माने मोटिवेटर और मैनेजमेंट गुरु एन. रघुरामन ने दैनिक भास्कर के डीबी इम्प्रेशन्स की प्रथम वर्षगांठ पर शुक्रवार को सिविल लाइंस स्थित चिटणवीस सेंटर में आयोजित व्याख्यान में अपने विचार रखे। उन्होंने "बैक टू द रूट्स" विषय पर आयोजित इस सत्र में जीवन के "फंडे" समझाए। कार्यक्रम की प्रस्तावना जयदीप हार्डिकर ने रखी। इस कार्यक्रम में डीबी इम्प्रेशन्स टीम का सत्कार किया गया। इस दौरान दैनिक भास्कर के संचालक सुमित अग्रवाल और समूह संपादक प्रकाश दुबे विशेष रूप से उपस्थित थे।  संचालन दीप्ति कुशवाह और सुयश सेठिया ने किया। आभार प्रदर्शन विनय चाणेकर ने किया।

प्राचीन परंपराएं थीं तर्कपूर्ण 
-प्राचीन परंपराओं और तौर तरीकों को उन्होंने उदाहरण के माध्यम से समझाया कि यदि उन्हें सही कारण और तर्क के साथ आज की युवा पीढ़ी को बताया जाए, तो वे उन्हें सहज ही स्वीकार करेंगे। उन्होंने दक्षिण भारतीय विवाह की परंपरा के बारे में बताया, जिसमें अरुंधति वशिष्ठ तारे को नव विवाहित जोड़ा देखता है। रघुरामन के अनुसार, इस तारे को 10 हजार साल से "जेष्ठा" नाम से जाना जाता है, साइंस ने तो कुछ ही समय पूर्व इसे "एंटारस" नाम से 15वें सबसे बड़े तारे के रूप में मान्यता दी है। इसके पहले के 14 बड़े तारे कौन से हैं, अभी तक बता नहीं सके। 

-प्राचीन भारत में किसान जब कृषि में गोबर का उपयोग करते थे तो उनका उपहास उड़ाया जाता था। आज ऑर्गेनिक फार्मिंग को बड़ा ब्रांड बता कर प्रचारित किया जा रहा है।
-पहले जिस योगा को पुराना बताकर अंग्रेजों ने भारत के स्कूलों में पीटी को बढ़ावा दिया, अब उसी योगा की दुनिया भर में धूम है। 

-वास्को डी गामा ने अपनी किताब में लिखा है कि अपना विशाल जहाज लेकर जब समुद्र मंे निकलते थे, तो उन्हें सफर में कान्हा नामक गुजराती व्यापारी मिला, जिसका जहाज वास्काे डी गामा के जहाज से 12 गुना बड़ा था। उससे प्राप्त जानकारी के बाद ही वास्को डी गामा ने भारत की खोज की थी।

-पहले घरों के बाहर चावल के आटे से रंगोली बनती थी। आज उनकी जगह केमिकल रंग इस्तेमाल होते है। चावल के आटे से बनी रंगोली बनाने के पीछे तर्क था कि चींटियां और अन्य छोटे जीव अपना पेट भर सकते थे। आज हम इसे भूल चुके हैं। 

  • सूत्र जिससे हम और हमारे बच्चे फिर से जड़ों से जुड़ सकते हैं

1. किसी एक चीज पर अटूट विश्वास रखें। 
2. माता-पिता के एक दो छाेटे-छोटे काम जरूर करें, इससे आप दुनिया से रूबरू होंगे। 
3. मैटनी शो कभी मत देखने जाइए, इसके लिए कई मौकों पर झूठ बोल कर जाना होगा, कितने झूठ याद रखेंगे?
4. बच्चे को 50 रुपए पॉकेटमनी देने के पहले उन्हें 5 रुपए कमाने के लिए प्रेरित करें। इससे उन्हें पैसों का मूल्य समझ आएगा। 
5. बच्चों को पाठ्यक्रम के अलावा कम से कम चार पन्ने किसी अच्छे साहित्य को पढ़ने की आदत लगाएं।
6. यदि आपके पास नल, टीवी, यातायात, छत और भोजन है, तो आप कुछ गिन-चुने अमीरों में से एक हैं। बाहर दुनिया में कई लोग इन चीजों से वंचित हैं।
7. रविवार को मॉल न जाएं। आपके दोस्त नहीं आएंगे, क्योंकि उनके घर पर उस दिन सब होंगे। आप मॉल में समय व्यर्थ करेंगे, निराश होकर लौटेंगे। 
8. किसी मैदान के 8 चक्कर लगाएं, कसरत करें। मेहनत करेंगे तो नींद अच्छी आएगी। बुरे विचार दिमाग में आने से बचे रहेंगे। 
9. यदि नौकरी की मजबूरी न हो तो कोशिश करें हर हाल मंे रात 9 बजे तक घर लौट आएं। 
10. प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट परिवार के साथ बिताएं। अपने सुख-दु:ख एक दूसरे से साझा करें। 
 

Created On :   15 Dec 2018 8:40 AM GMT

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