षटतिला एकादशी आज, जानिए इस व्रत का महत्व और पूजन विधि

When is Shitali Ekadashi and what is the auspicious time for fast
षटतिला एकादशी आज, जानिए इस व्रत का महत्व और पूजन विधि
षटतिला एकादशी आज, जानिए इस व्रत का महत्व और पूजन विधि

डिजिटल डेस्क। हिन्दू माघ महीने के हर दिन को पवित्र माना जाता है, लेकिन एकादशियों का अपना विशेष महत्व है। हालांकि वर्ष की सभी एकादशियां व्रत, दान-पुण्य आदि के लिये बहुत शुभ होती हैं, लेकिन माघ चूंकि पावन मास कहलाता है इसलिये इस मास की एकादशियों का भी खास महत्व है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है। इस एकादशी का नाम षटतिला क्यों पड़ा और पौराणिक ग्रंथ इसकी क्या कहानी कहते हैं आइये जानते हैं।

 

2019 में षटतिला एकादशी तिथि व मुहूर्त

  • वर्ष 2019 में षटतिला एकादशी का व्रत 31 जनवरी को है
  • एकादशी तिथि आरंभ – 19:00 बजे (30 जनवरी 2019)
  • एकादशी तिथि समाप्त – 19:31 बजे (31 जनवरी 2019)
  • पारण का समय – 07:14 से 9:22 बजे (1 फरवरी 2019)

 

किसी भी व्रत उपवास या दान-तर्पण आदि को करने से पहले मन का शुद्ध होना आवश्यक होता है। इसके साथ-साथ षटतिला एकादशी का व्रत अन्य एकादशी के उपवास से कुछ अलग प्रकार से रखा जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाये जाते हैं। फिर दशमी के दिन एक समय भोजन किया जाता है और प्रभु का स्मरण किया जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान श्री कृष्ण के नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधिवत पूजा कर अर्घ्य दी जाती है। रात्रि में भगवान का भजन-कीर्तन करें और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से उपलों में हवन करें। स्नान, दान से लेकर आहार तक में तिलों का उपयोग करें।

 

इस माह की एकादशी को षटतिला एकादशी क्यों कहते हैं?
माघ मास में शरद ऋतु अपने चरम पर होती है और मास के अंत के साथ ही सर्दियों के जाने की सुगबुगाहट भी होने लगती है। इस ऋतू में तिलों का व्यवहार बहुत बढ़ जाता है क्योंकि शीतऋतु में तिल का उपयोग करना बहुत ही लाभदायक होता है। इसलिये स्नान, दान, तर्पण, आहार आदि में तिलों का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि तिलों का छह प्रकार से उपयोग इस दिन किया जाता है जिसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिलोदक, तिल का हवन, तिल से बने व्यंजनों का भोजन और तिल का ही दान किया जाता है। तिल के छह प्रकार से इस्तेमाल करने के कारण ही इसे षटतिला कहा जाता है।


पौराणिक कथाओं में षटतिला एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है। एक बार देवर्षि नारद, भगवान विष्णु के दरबार में जा पंहुचे और बोले भगवन माघ मास की कृष्ण एकादशी का क्या महत्व है, और इसकी कथा क्या हैं  कृपया मार्गदर्शन करें। श्री हरि नारद के अनुरोध पर बोले की  हे देवर्षि...इस एकादशी का नाम षटतिला एकादशी है। 

पृथ्वीलोक पर एक निर्धन ब्राह्मणी मुझे बहुत मानती थी। दान पुण्य करने के लिये उसके पास कुछ नहीं था किन्तु मेरी पूजा, व्रत आदि वह श्रद्धापूर्वक करती थी। एक बार मैं स्वंय उसका उद्धार करने उसके द्वार पर भिक्षा के लिये जा पंहुचा उसके पास कुछ दान करने के लिये कुछ नही था तो वह मुझे एक मिट्टी का पिंड बनाकर दान कर देती है। कुछ समय पश्चात जब वह काल का ग्रास बनीं तो अपने को एक मिट्टी के झौंपड़े में पाती है जहां एक मात्र आम का वृक्ष ही उसके साथ था। वह मुझसे पूछती है कि हे भगवन मैनें तो सदा आपकी साधना की है फिर मेरे साथ यहां स्वर्ग में भी ऐसा क्यों हो रहा है। तब मैनें उसे भिक्षा देने वाली कथा कही वह ब्राह्मणी पश्चाताप करते हुए विलाप करने लगी। तब मैने उससे कहा कि जब देव कन्याएं आपके पास आयें तो द्वार तब तक न खोलना जब तक कि वह आपको षटतिला एकादशी की व्रत विधि न बता दें। उसने वैसा ही किया। फिर व्रत का पारण करते ही उसकी कुटिया अन्न धन से भरपूर हो गई और वह बैकुंठ में अपना जीवन हंसी खुशी बिताने लगी। 

इसलिए है नारदजी जो कोई भी इस दिन तिलों से स्नान दान करता है। उसके भंडार अन्न-धन से भर जाते हैं। इस दिन जितने प्रकार से तिलों का व्यवहार व्रती करते हैं उतने हजार साल तक बैकुंठ में उनका स्थान सुनिश्चित हो जाता है।

Created On :   15 Jan 2019 4:55 AM GMT

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