64 दिनों में सीखीं 64 कलाएं, श्रीकृष्ण को यहीं मिली थी 'जगतगुरू' की उपाधि
डिजिटल डेस्क, उज्जैन। कृष्ण जन्माष्टमी नजदीक ही हैै। ऐसे में आपको कन्हैया के अनेक मंदिरों के बारे में पढ़ने मिल रहा होगा। लेकिन आज हम आपको जगन्नाथ के गुरू के बारे में बता रहे है। यहीं पर कन्हैया का स्कूल है। जहां उन्हें जगत गुरु की उपाधि मिली थी...
5 हजार साल पहले जब भगवान श्रीकृष्णए उनके सखा सुदामा और भाई बलराम ने सांदिपनी आश्रम ने शिक्षा ग्रहण की थी। यहां आज भी वह आश्रम और तीनों शिष्यों की प्रतिमाएं स्थित हैं। पुराणों के अनुसार महर्षि सांदिपनी श्रीकृष्ण की लगन और मेहनत से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें जगत गुरु की उपाधि दी।
गुरूकुल परंपरा
तक्षशिलाए नालंदा के बाद उज्जैन का सांदिपनी आश्रम देश ही नहीं दुनिया में शिक्षा के पहले केंद्रों में श्रेष्ठ माना गया है। कन्हैया ने यहां 15 विद्या व 64 दिनों 64 कलाएं सीखी थी। कृष्ण, बलराम, सुदामा ने यहां गुरूकुल परंपरा के तहत ही शिक्षा प्राप्त की थी।
अंक मिटाते थे धोकर
गुरू सांदिपनी के आश्रम को अंकपात के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि कन्हैया यहां स्लेट पर लिखे अंक धोकर मिटाते थे। जिसकी वजह से इसका नाम अंकपात पड़ा। स्लेट धोने का वह स्थान गोमती कुंड ही माना गया है। 1 से 100 अंकों को एक पत्थर सांदिपनी द्वारा ही अंकित किया गया था। जिसे अब भी यहां देखने मिलता है। गुरूज्ञान और कन्हैया के 5 हजार साल पहले के प्रमाण यहां आज भी देखने मिल जाते हैं।
चुराए थे चने
यहां समीप ही वह स्थान भी है जहां सुदामा ने कृष्ण से चने चुराकर खाए थे। जिस पेड़ पर वे बैठे थे वह भी यहां मौजूद है।
Created On :   13 Aug 2017 6:51 AM GMT