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आधुनिक खेती से आत्मनिर्भर हुआ युवक -45 दिन में ले रहा तीन बार मशरूम का उत्पादन
डिजिटल डेस्क उमरिया । कोयलारी जैसे छोटे से गांव में एक युवक ने परंपरागत खेती की बजाए आधुनिक मशरूम (पिहरी) को अपनाकर आत्मनिर्भरता का नया अध्याय लिख दिया। पिछले नौ साल से वह गांव में खुद खेती कर दूसरों को भी इसके गुर सिखा रहा है। महज 45 दिन में तीन बार उत्पादन लेकर पूंजी से तिगुना मुनाफे का मंत्र दे रहा है।जिला मुख्यालय से कोयलारी गांव निवासी दिलीप पिता रामपाल (30) 2010 से अपने गांव में मशरूम की खेती कर रहा है। कुछ अलग करने का जुनून लिए वह बिजुरी से अपने गृह ग्राम कोयलारी आया था। जबलपुर कृषि विज्ञान अनुसंधान केन्द्र जाकर बीज बनाने की ट्रेनिंग ली। शुरुआती असफलताएं से निराश होने की बजाए कड़ी मेहनत की। अब वह खुद बीज निर्माण से लेकर उत्पादन करता है। साथ ही समय-समय पर कृषि विज्ञान केन्द्र व शासकीय आयोजनों में दूसरों को इस खेती के लिए प्रेरित कर रहा है।
45 दिन में तीन बार उत्पादन
किसान दिलीप ने दैनिक भास्कर को बताया उसे पेपर में पढऩे यह आधुनिक खेती को करने का आइडिया आया था। कम उम्र में उसने सन 2000 से छोटे स्तर पर प्रयास किया। खेती को करने के लिए एक कम नमी, हवादार कमरे में बीजों को तैयार कर रखा जाता है। बावेस्टीन तथा फार्मेलीन से पहले इन्हें उपचारित करना होता है। फिर धान का फूंसा, गेहूं का से मिक्स्ड बीज को कमरे में देखरेख करना पड़ता है। 15-21 दिन में उत्पादन शुरू होता है। इसके बाद हर 7-7 दिन में तीन बार मशरूम का उत्पादन मिल जाता है। पंजी के नाम पर बीज, धान का फूंसा तथा कमरे में उपयुक्त रख-रखाव आवश्यक है।
टीबी, सुगर में रामबाण, दवा कंपनियों का आफर
कृषि विशेषज्ञ अनुसार मूलत: देश में मशरूम की सौ से अधिक वैरायटी पाई जाती है। कृत्रिम मशरूम में भी खासतत्व पाए जाते हैं। इसका उपयोग टीवी, सुगर, खून की कमी, कुपोषण दूर करने के लिए पोषक तत्व के रूप में होता है। किसान दिलीप यादव का कहना है यूं तो वह इसे छोटे स्तर पर करता है। भविष्य में अच्छे प्लेटफार्म व लागत एकत्र कर व्यापक स्तर में करने का इच्छुक है। उसे अभी तक बड़ी-बड़ी दवा बनाने वाली कंपनियों के आफर भी मिल चुके हैं। हालांकि शासकीय मदद आपेक्षानुसार न मिलना विकास में रोड़ा बन रही है।
इनका कहना है -
मशरूम में नैचुरल क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। सामान्यत: यह जंगल में बरसात के समय उगता है। इसमे औषधीय गुणों के कारण घरेलू उपयोग के साथ ही दवाओं में भी होता है। कम पंूजी व समय में भी 1 तिहाई के अनुपात में मुनाफा कमाया जा रहा है। उमरिया में कुछ लोग इसे व्यवसाय से आत्मनिर्भर हुए हैं। हम स्वयं केवी में बच्चों को इस खेती की ट्रेनिंग देते हैं।
डॉ. केवी तिवारी, कृषि वैज्ञानिक उमरिया।
Created On :   16 Sep 2019 8:58 AM GMT