महाराष्ट्र चारभट्टी गांव की बदली तस्वीर, नक्सलवाद की अंधेरी सुरंग से विकास की रोशनी तक का सफर

महाराष्ट्र चारभट्टी गांव की बदली तस्वीर, नक्सलवाद की अंधेरी सुरंग से विकास की रोशनी तक का सफर
कभी नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाला गढ़चिरौली जिले का चारभट्टी गांव आज अपनी नई पहचान बना चुका है। जिस गांव में कभी नक्सलियों की अनुमति के बिना कोई फैसला नहीं लिया जा सकता था, वहां की जनता अब फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। चारभट्टी अब पूरी तरह से नक्सलमुक्त घोषित हो चुका है और यह बदलाव स्थानीय लोगों की हिम्मत और एकजुटता की कहानी कहता है।

गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), 17 अक्टूबर (आईएएनएस)। कभी नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाला गढ़चिरौली जिले का चारभट्टी गांव आज अपनी नई पहचान बना चुका है। जिस गांव में कभी नक्सलियों की अनुमति के बिना कोई फैसला नहीं लिया जा सकता था, वहां की जनता अब फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। चारभट्टी अब पूरी तरह से नक्सलमुक्त घोषित हो चुका है और यह बदलाव स्थानीय लोगों की हिम्मत और एकजुटता की कहानी कहता है।

ग्रामीणों के अनुसार, साल 2002 से 2005 के बीच गांव में नक्सलियों का प्रभाव अपने चरम पर था। उस समय गांव का कोई भी छोटा या बड़ा फैसला नक्सलियों की मंजूरी के बिना नहीं लिया जाता था। चाहे कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या सरकार का विकास कार्य, हर बात पर नक्सली कमांडर की अनुमति जरूरी होती थी। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय सुरेश नामक डिवीजनल कमांडर का नाम चारभट्टी के हर व्यक्ति की जुबान पर था। उसकी मर्जी के बिना गांव में पत्ता तक नहीं हिलता था।

ग्रामीणों ने बताया कि जब सुरेश ने आत्मसमर्पण किया, तभी से नक्सल गतिविधियों की जड़ें कमजोर पड़ने लगीं। धीरे-धीरे गांव में शांति लौटने लगी और लोग फिर से सामूहिक रूप से एकजुट होकर आगे बढ़ने लगे। आज चारभट्टी गांव पूरी तरह से नक्सलवाद के प्रभाव से मुक्त हो चुका है।

नक्सल काल के दौरान गांव में विकास कार्य लगभग ठप थे। सड़क, नाली, स्कूल या सरकारी योजनाएं, सब पर नक्सलियों की रोक थी। जो भी काम शुरू होता, नक्सली धमकाकर या हिंसा का डर दिखाकर उसे रुकवा देते थे। इस कारण गांव वर्षों तक पिछड़ा रहा और लोग भय के साए में जीने को मजबूर थे।

गांव के लोगों का कहना है कि नक्सलवाद सिर्फ बंदूक की लड़ाई नहीं थी, बल्कि वह एक विचारधारा थी। जिस तरह राजनीति अपनी विचारधारा पर चलती है, उसी तरह नक्सलवाद भी विचारों पर आधारित था। लेकिन उनकी विचारधारा असफल साबित हुई, क्योंकि उन्होंने न्याय के नाम पर निर्दोषों को सजा दी, मारपीट की और झूठे आरोप लगाए। इससे ग्रामीणों में आक्रोश बढ़ा और धीरे-धीरे लोग नक्सलियों से दूर होते चले गए।

एक ग्रामीण ने बताया कि नक्सलियों के प्रभाव के दौरान यहां शराबबंदी लागू करने की भी कोशिश की गई, लेकिन वे असफल रहे। नक्सलियों ने भय और हिंसा के दम पर शराब बंद करने की कोशिश की, पर यह स्थायी नहीं हो सकी। हालांकि, आज वही गांव तंटामुक्त समिति के नेतृत्व में 100 फीसदी शराबमुक्त हो चुका है। फर्क बस इतना है कि पहले निर्णय डर के माहौल में लिए जाते थे, अब लोग खुले मन से सामूहिक रूप से फैसले लेते हैं।

चारभट्टी के लोग गर्व से कहते हैं कि अब हमारे गांव में नक्सलवाद का कोई असर नहीं है। लोग स्वतंत्र हैं और अपने फैसले खुद ले रहे हैं। जहां कभी भय और बंदूक का साया था, आज वहां शांति, विकास और एकता की मिसाल देखने को मिलती है। पहले जो विकास रुक गया था, अब वही विकास गांव की नई पहचान बन गया है।

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Created On :   17 Oct 2025 7:49 PM IST

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