बिहार चुनाव 2025 पूर्व मंत्रियों का गढ़ रहा है मखदुमपुर सीट, राजद की पकड़ मजबूत

बिहार चुनाव 2025 पूर्व मंत्रियों का गढ़ रहा है मखदुमपुर सीट, राजद की पकड़ मजबूत
बिहार के मगध क्षेत्र में जहानाबाद जिले की मखदुमपुर का नाम सुनते ही भले ही किसी मुस्लिम बहुल इलाके की तस्वीर बनती हो, लेकिन हकीकत में यह कस्बा कई विरोधाभासों को अपने भीतर समेटे हुए है। जब हम मखदुमपुर की बात करते हैं, तो 2020 के विधानसभा चुनाव का वो नतीजा याद आता है, जिसने राजद को इस अनुसूचित जाति (एससी) सीट पर फिर से जीत का परचम लहराने का मौका दिया।

पटना, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के मगध क्षेत्र में जहानाबाद जिले की मखदुमपुर का नाम सुनते ही भले ही किसी मुस्लिम बहुल इलाके की तस्वीर बनती हो, लेकिन हकीकत में यह कस्बा कई विरोधाभासों को अपने भीतर समेटे हुए है। जब हम मखदुमपुर की बात करते हैं, तो 2020 के विधानसभा चुनाव का वो नतीजा याद आता है, जिसने राजद को इस अनुसूचित जाति (एससी) सीट पर फिर से जीत का परचम लहराने का मौका दिया।

दर्धा नदी से महज चार किलोमीटर दूर बसे इस प्रखंड स्तरीय कस्बे ने 2020 के चुनाव में एक निर्णायक फैसला सुनाया था। राजद के उम्मीदवार सतीश दास ने हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के देवेंद्र कुमार को बड़े अंतर से मात दी थी। इस मुकाबले में बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी, जो दिखाता है कि सुरक्षित सीट होने के बावजूद यहां मुकाबला त्रिकोणीय रहा।

हालांकि, मखदुमपुर का इतिहास सिर्फ एक चुनाव तक सीमित नहीं है। यह सीट हमेशा से बिहार की राजनीति की नर्सरी रही है, जहां बड़े-बड़े दिग्गजों ने अपनी किस्मत आजमाई है और इसे प्रदेश के नक्शे पर चमकाया है।

मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक बार पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी कर चुके हैं। उन्होंने 2010 के विधानसभा चुनाव में इस सीट का नेतृत्व किया था। इससे पहले 2005 के चुनाव में राजद उम्मीदवार कृष्णनंदन वर्मा ने यहां जीत का परचम फहराया था।

नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री पद संभाल चुके कृष्णनंदन वर्मा उस वक्त राजद के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इससे पहले, लालू यादव की सरकार में मंत्री रहे बागी वर्मा भी दो बार यहां से विधायक चुने गए थे। इससे यह समझा जा सकता है कि मखदुमपुर की राजनीतिक हवा कब किस ओर बहती है, यह बता पाना हमेशा से मुश्किल भरा रहा है।

अगर हम चुनावी इतिहास के पन्ने पलटें, तो मखदुमपुर ने अलग-अलग समय पर कई पार्टियों को सत्ता का स्वाद चखाया है। यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की, लेकिन यह पुराना दौर था। इसके बाद जनता दल के टूटने से निकली पार्टियों का वर्चस्व रहा। राजद ने 3 बार, लोजपा ने एक और जदयू ने एक बार चुनाव जीता। 1995 के बाद से राजद की पकड़ मजबूत रही है, जिसने पिछले चार में से तीन चुनाव जीते हैं।

मखदुमपुर भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट हो, लेकिन चुनावी नतीजे तय करने में यहां के सामाजिक समीकरण बहुत मायने रखते हैं। एससी मतदाता बड़ी भागीदारी रखते हैं, लेकिन जीत का रास्ता इन्हीं के साथ-साथ कोरी, यादव और भूमिहार जाति के मतदाताओं से होकर गुजरता है। इन समुदायों के मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और यही वजह है कि हर पार्टी अपने उम्मीदवार का चयन करते समय इन जातीय समीकरणों का खास ख्याल रखते हैं।

मखदुमपुर का सबसे बड़ा और सबसे आकर्षक पहलू है इसका ऐतिहासिक अतीत, जो बराबर की पहाड़ियों में स्थित प्राचीन बराबर गुफाओं में जीवित है। यह स्थान शहर से लगभग 11 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है और इसे भारत की सबसे पुरानी चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं के रूप में जाना जाता है।

ये गुफाएं मौर्य साम्राज्य के समय की हैं और प्राचीन बौद्ध वास्तुकला और आजीवक संप्रदाय के उद्भव से जुड़ी हुई हैं। इन सात गुफाओं के समूह में 'लोमस ऋषि गुफा', जिसे 'सतघरवा गुफा' भी कहते हैं, सबसे प्रसिद्ध है।

मखदुमपुर एक ऐसी धरती है जहां बराबर की पहाड़ियों से इतिहास झांकता है और चुनावी अखाड़े में बड़े-बड़े धुरंधर उतरते हैं। यह शिक्षा, संस्कृति और सत्ता की खींचतान का एक ऐसा केंद्र है जो बिहार की राजनीति को हमेशा दिलचस्प बनाए रखता है।

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Created On :   29 Oct 2025 9:52 PM IST

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