बिहार चुनाव कुटुंबा में कांग्रेस का दबदबा बरकरार, नई रणनीति की तलाश में एनडीए

बिहार चुनाव कुटुंबा में कांग्रेस का दबदबा बरकरार, नई रणनीति की तलाश में एनडीए
मगध क्षेत्र के औरंगाबाद जिले में स्थित कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र महज एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि ग्रामीण बिहार की चुनौतियों, सामाजिक न्याय की मांगों और एक प्रभावशाली नेता के उदय की कहानी है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और इसे बिहार की दलित-राजनीति का एक अहम केंद्र माना जाता है।

पटना, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। मगध क्षेत्र के औरंगाबाद जिले में स्थित कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र महज एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि ग्रामीण बिहार की चुनौतियों, सामाजिक न्याय की मांगों और एक प्रभावशाली नेता के उदय की कहानी है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और इसे बिहार की दलित-राजनीति का एक अहम केंद्र माना जाता है।

भौतिक रूप से पूरी तरह ग्रामीण यह निर्वाचन क्षेत्र, जहां शहरी आबादी न के बराबर है। यहां के मुद्दे भी एकदम जमीनी हैं। कुटुंबा की राजनीति बुनियादी विकास, ग्रामीण सड़कों, पानी, बिजली और बदहाल स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक आरक्षित सीट है। यहां की कुल आबादी में अनुसूचित जातियों का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत है, जो लगभग 29.2 प्रतिशत के करीब है। सामाजिक न्याय, आरक्षण का उचित प्रभाव और दलित समुदाय की सक्रिय भागीदारी यहां के चुनावी बहस का केंद्र बिंदु है। मुस्लिम आबादी भी लगभग 7.8 प्रतिशत है, जो चुनावी समीकरणों में खास भूमिका निभाती है।

2020 का मतदान प्रतिशत एक पहेली रहा है। कुल 2,66,974 पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ 52.06 प्रतिशत ने ही वोट डाला था। यानी लगभग 48 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। यह खामोश मतदाता समूह ही वह फैक्टर है, जिस पर भविष्य की रणनीति टिकी हुई है।

कुटुंबा के राजनीतिक इतिहास का टर्निंग पॉइंट कांग्रेस के राजेश कुमार का लगातार दो चुनावों में दबदबा है। दरअसल, इस सीट पर पहला चुनाव 2010 में हुआ था, जिसे जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के ललन राम ने जीता था। उस चुनाव में राजेश कुमार को करारी हार का सामना करना पड़ा था और वह तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन 2015 में जब यह सीट राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के तहत कांग्रेस को मिली तो राजेश कुमार ने दमदार वापसी की।

2015 में उन्होंने भारी अंतर से जीत दर्ज की। 2020 में उन्होंने अपनी जीत को और मजबूत किया। उन्हें 50,822 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के श्रवण भुइयां को 34,169 वोट मिले। जीत का अंतर 16,653 वोटों का था।

राजेश कुमार की यह लगातार दूसरी जीत थी, जिसने कुटुंबा में कांग्रेस का गढ़ स्थापित कर दिया। उनकी बढ़ती राजनीतिक साख का प्रमाण यह है कि 2025 चुनावों से ठीक पहले उन्हें बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है।

कुटुंबा सीट पर लगातार दो हार ने एनडीए को नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है। अब एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वह राजेश कुमार के प्रभाव को कैसे कम करे और 2020 में मतदान न करने वाले लगभग 48 प्रतिशत खामोश मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक कैसे लाए।

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Created On :   30 Oct 2025 7:00 PM IST

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