इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी राजनेता से आयरन लेडी तक का सफर
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत के इतिहास में 31 अक्टूबर वह तारीख है, जब देश ने अपने एक ऐसे राजनेता, एक ऐसे प्रधानमंत्री को खो दिया था, जिसके चले जाने के दुख से काफी समय उबर नहीं पाया। वह प्रधानमंत्री कोई और नहीं बल्कि आयरन लेडी के नाम से जानी जाने वाली इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। इंदिरा न केवल एक नेता थीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण, राजनीतिक दृढ़ता और आत्मनिर्भरता का सिंबल थीं।
इंदिरा का जीवन दूरदर्शिता, निर्णय और संघर्ष का संगम है। उनके व्यक्तित्व ने भारत को एक नई पहचान दी है।
19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मीं इंदिरा गांधी के पिता, जवाहरलाल लाल नेहरू, देश के पहले प्रधानमंत्री थे। उनकी माता कमला नेहरू थीं। शिक्षा की बात करें तो उन्होंने शांतिनिकेतन से अपनी पढ़ाई की। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में गईं।
इंदिरा गांधी का विवाह फिरोज गांधी के साथ हुआ। राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण इंदिरा गांधी का झुकाव बचपन से ही राजनीति की तरफ रहा। प्रधानमंत्री बनने से पहले वह अपने पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को बेहद करीबी से देखा। माना जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने उनके भीतर नेतृत्व की लौ जलाई।
उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो जिस समय देश आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा था, तब उन्होंने राष्ट्र को एक मजबूत नेतृत्व दिया और 1966 में प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभाली।
इंदिरा गांधी का ध्यान देश के निचले यानी गरीब तबके की तरफ ज्यादा था। इसलिए उन्होंने गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाएं बनाईं और गरीबी हटाओ का नारा दिया। यही नहीं, 1971 में पाकिस्तान की शर्मनाक हार और बांग्लादेश का निर्माण भी उन्हीं के मजबूत नेतृत्व में हुआ। तब उनको आयरन लेडी कहकर पुकारा गया।
यह इंदिरा गांधी के मजबूत इरादों का ही परिणाम था कि उन्होंने 1974 में भारत को परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
वह 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 में अपनी हत्या तक प्रधानमंत्री रहीं, जिससे वह अपने पिता के बाद भारत की दूसरी सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली प्रधानमंत्री बनीं।
उन्होंने 1975 से 1977 तक आपातकाल लागू किया, जिसके दौरान उन्होंने हुक्मनामा द्वारा शासन किया। पंजाब में उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर की जांच का आदेश देने के कुछ महीनों बाद, 31 अक्टूबर 1984 को उनके अपने ही सिख अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी।
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Created On :   30 Oct 2025 10:57 PM IST











