पहला मंगलयान जो तकनीकी विजय नहीं, सपनों की उड़ान थी, भारत ने अमेरिका जैसे देशों को पछाड़ नया इतिहास लिखा

पहला मंगलयान  जो तकनीकी विजय नहीं, सपनों की उड़ान थी, भारत ने अमेरिका जैसे देशों को पछाड़ नया इतिहास लिखा
आज जब हम इसरो की नई ऊंचाइयों को देखते हैं, चंद्रमा, सूर्य और उससे भी आगे तो मंगलयान की पहली उड़ान एक प्रेरणा बनकर सामने झलकती है। यही है भारत का स्वर्णिम युग, जहां असंभव सिर्फ एक शब्द है, सच्चाई नहीं।

नई दिल्ली, 4 नवंबर (आईएएनएस)। आज जब हम इसरो की नई ऊंचाइयों को देखते हैं, चंद्रमा, सूर्य और उससे भी आगे तो मंगलयान की पहली उड़ान एक प्रेरणा बनकर सामने झलकती है। यही है भारत का स्वर्णिम युग, जहां असंभव सिर्फ एक शब्द है, सच्चाई नहीं।

5 नवंबर 2013, वह दिन था जब श्रीहरिकोटा के आसमान में गूंजती रॉकेट इंजन की गर्जना के साथ भारत ने मंगल ग्रह के लिए ऐतिहासिक उड़ान भरी। यह वह क्षण था जब इसरो ने न सिर्फ अंतरिक्ष को छुआ, बल्कि हर भारतीय के दिल में गर्व का सूर्य उगाया। एक ऐसा इतिहास लिखा गया, जो सिर्फ तकनीकी विजय नहीं थी, बल्कि सपनों की उड़ान थी।

मंगल ग्रह के लिए भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन 'मंगल परिक्रमा मिशन' (मॉम) 5 नवंबर 2013 को पीएसएलवी-सी25 के जरिए भेजा गया।

सफर आसान नहीं था। अभियान को मंगल ग्रह की यात्रा में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि इस ग्रह पर भेजे गए आधे से भी कम मिशन ही सफल हुए थे। इस मिशन की अगली बड़ी चुनौती मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करना था, क्योंकि 2003 में जापान के यान का एक परीक्षण विफल रहा था, जब वह ग्रह के पास पहुंचते ही विद्युतीय खराबी का शिकार हो चुका था।

इसके बाद 23 सितंबर 2014 को इस मिशन ने भारत के नाम बड़ी उपलब्धि दर्ज कराई। मार्स ऑर्बिटर मिशन ('मंगल परिक्रमा मिशन') इतिहास रचते हुए लाल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका था। इसके साथ ही, भारत पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में प्रवेश करने वाला देश बना। यूरोपीय, अमेरिकी और रूसी अंतरिक्ष यान कई प्रयासों के बाद मंगल की परिक्रमा करने या उस पर उतरने में सफल हुए थे।

इस कामयाबी की खास बात यह भी रही कि भारत मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई और दुनिया का चौथा देश बना।

इसकी दिलचस्प कहानी यह भी है कि इसरो का पहला मंगलयान अब तक का सबसे सस्ता मिशन भी था, इतना सस्ता कि हॉलीवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' को बनाने में इससे भी कहीं ज्यादा खर्चा आया था। करीब 450 करोड़ रुपए की लागत से यह मिशन तैयार हुआ, जो दुनिया का सबसे किफायती अंतरग्रहीय अभियान था।

यह मिशन न सिर्फ इसरो की तकनीकी दक्षता का प्रतीक बना, बल्कि भारत को वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में एक नई पहचान और प्रतिष्ठा भी दिलाई।

5 नवंबर की यह तारीख भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   4 Nov 2025 10:17 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story