सीवी रमन बर्थडे भौतिकी में नोबेल पाने वाले पहले एशियाई, जिसकी खोज से विश्व पटल पर चमका भारत

सीवी रमन बर्थडे भौतिकी में नोबेल पाने वाले पहले एशियाई, जिसकी खोज से विश्व पटल पर चमका भारत
भारत के महान भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर वेंकट रमन, जिन्हें दुनिया सी.वी. रमन के नाम से भी जानती हैं, एक प्रखर शिक्षक, कुशल वक्ता और भारतीय संगीत के प्रेमी भी थे। बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी सीवी रमन ने मात्र 11 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।

नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। भारत के महान भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर वेंकट रमन, जिन्हें दुनिया सी.वी. रमन के नाम से भी जानती हैं, एक प्रखर शिक्षक, कुशल वक्ता और भारतीय संगीत के प्रेमी भी थे। बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी सीवी रमन ने मात्र 11 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।

इसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास (अब चेन्नई) में प्रवेश लिया और यहां बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल कर सबको स्तब्ध कर दिया।

उन्होंने सरकारी नौकरी भी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा। फिर उनके जीवन में एक ऐसी घटना हुई, जिसके बाद उन्होंने प्रकाश के रहस्यों को उजागर कर भारत को वैश्विक पटल पर स्थापित कर दिया। 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले एशियाई वैज्ञानिक बने।

सी.वी. रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर गणित और भौतिकी के प्राध्यापक थे, जबकि माता पार्वती अम्मल गृहिणी थी।

1904 में उन्होंने भौतिकी में गोल्ड मेडल जीतने के बाद 1907 में उन्होंने एमए पूरा किया। उसी वर्ष वे भारतीय वित्त विभाग में सहायक लेखाकार जनरल के रूप में शामिल हुए, हालांकि नौकरी के बावजूद उनका मन विज्ञान में लगा रहा। उन्होंने घर में ही प्रयोगशाला बना ली और रंगून व नागपुर में तबादले के दौरान शोध जारी रखा।

1917 में रमन ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बने। यहां उन्होंने इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस में काम किया। उनकी सबसे बड़ी खोज 1928 में हुई।

इंग्लैंड से भारत लौटते हुए जहाज पर समुद्र के नीले रंग से प्रभावित होकर उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन पर प्रयोग शुरू किए। 28 फरवरी 1928 को 'रमन प्रभाव' की खोज हुई। यह खोज स्पेक्ट्रम में नई रेखाओं (रमन रेखाएं) का रहस्य सुलझाती है।

इसके मुताबिक जब प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम से गुजरता है, तो उसका कुछ हिस्सा अपनी तरंग दैर्ध्य बदल लेता है। इस उपलब्धि के लिए 1930 में उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। यह उपलब्धि ऐतिहासिक थी, क्योंकि भौतिकी में नोबेल पाने वाले वह पहले एशियाई बने थे।

रमन की उपलब्धियां यहीं नहीं रुकीं। 1933 से 1948 तक वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु के निदेशक रहे। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने संगीत, रत्न विज्ञान और ध्वनि पर भी कार्य किया। तबला-मृदंग की ध्वनि का वैज्ञानिक विश्लेषण उनके योगदान में शामिल है। 1943 में बेंगलुरु में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जहां वे जीवनपर्यंत शोध करते रहे। उनकी मृत्यु 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरु में हुई, लेकिन उनकी विरासत अमर है।

रमन का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। उनकी खोज आज लेजर तकनीक, चिकित्सा विज्ञान में उपयोग की जा रही है। आजादी के दौर में उन्होंने लाखों युवाओं को प्रेरित किया।

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Created On :   6 Nov 2025 9:19 PM IST

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