कैलाशनाथर मंदिर कांचीपुरम का गहना है कैलाशनाथर मंदिर, जिसमें मौजूद है 10 फीट ऊंचा शिवलिंग

कैलाशनाथर मंदिर कांचीपुरम का गहना है कैलाशनाथर मंदिर, जिसमें मौजूद है 10 फीट ऊंचा शिवलिंग
तमिलनाडु के कांचीपुरम को मंदिरों का शहर माना जाता है और इस शहर को दक्षिण भारत का काशी और मथुरा भी कहा जाता है।

नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। तमिलनाडु के कांचीपुरम को मंदिरों का शहर माना जाता है और इस शहर को दक्षिण भारत का काशी और मथुरा भी कहा जाता है।

पवित्र जगहों में शामिल कांचीपुरम में बहुत सारे मंदिर हैं, लेकिन कैलाशनाथर मंदिर सबसे पुराना और प्रसिद्ध है। मंदिर को शिल्पकारी और उसकी वास्तुकला के लिए जाना जाता है।

कैलाशनाथर मंदिर भगवान शिव को समर्पित मंदिर है जिसके प्रांगण में 58 छोटे-छोटे अन्य मंदिरों का निर्माण किया गया है। मंदिर में ग्रेनाइट का 10 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इसके अलावा भगवान विष्णु, देवी, सूर्य, गणेश जी और कार्तिकेय के मंदिर भी देखने को मिल जाएंगे। माना जाता है कि इस मंदिर में बिना घंटी बजाए भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। घंटी भगवान और अपने अंदर के चेतना को जागृत करने के लिए बजाई जाती है। मंदिर को लेकर कोई पौराणिक कथा मौजूद नहीं है, लेकिन मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी ईस्वी में पल्लव राजा राजसिंह ने कराया था और महेंद्र वर्मा पल्लव ने मंदिर के निर्माण को पूरा करवाया था।

कैलाशनाथर मंदिर वेदवती नदी के तट पर बना है, जिससे इसकी अलौकिकता और बढ़ जाती है। मंदिर में शिवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा अनुष्ठान होता है और भारी संख्या में भक्त मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के निर्माण और उसकी वास्तुकला में पल्लव राजवंश की झलक दिखती है। मंदिर की नींव ग्रेनाइट पत्थर पर रखी गई है और मंदिर को बनाने में बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया।

मंदिर की दीवारों और मुख्य द्वार पर ज्यादातर सिंह की प्रतिमा लगी है। पल्लव राजवंश का प्रतीक सिंह हुआ करता था। इसके अलावा दीवारों पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनी हैं, जो अलग-अलग संस्कृति को दिखाती हैं। मंदिर का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है, लेकिन आज भी मंदिर जर्जर हालत में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का मानना है कि इस मंदिर का बनाव ही इसे बाकी मंदिरों से अलग बनाता है, क्योंकि इस मंदिर को छोटे-छोटे पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर को बनाने में किसी बड़े पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

मंदिर को अध्यात्म के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से देखा जाता है। पर्यटक सुबह 6:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4:00 बजे से 7:30 बजे मंदिर में दर्शन के लिए आ सकते हैं।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   15 Nov 2025 2:33 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story