पीएम मोदी ने आरएसएस की 100 वर्षों की यात्रा को बताया अद्भुत, 'राष्ट्र प्रथम' भावना को भी सराहा

पीएम मोदी ने आरएसएस की 100 वर्षों की यात्रा को बताया अद्भुत, राष्ट्र प्रथम भावना को भी सराहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की 100 वर्षों की उल्लेखनीय, अभूतपूर्व और प्रेरणादायक यात्रा की सराहना की। उन्होंने कहा कि आरएसएस स्वयंसेवकों के हर प्रयास में 'राष्ट्र प्रथम' की भावना सदैव सर्वोपरि रही है।

नई दिल्ली, 28 सितंबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की 100 वर्षों की उल्लेखनीय, अभूतपूर्व और प्रेरणादायक यात्रा की सराहना की। उन्होंने कहा कि आरएसएस स्वयंसेवकों के हर प्रयास में 'राष्ट्र प्रथम' की भावना सदैव सर्वोपरि रही है।

पीएम मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आरएसएस 100 साल से 'बिना थके, बिना रुके' राष्ट्र सेवा के कार्य में लगा हुआ है। इसीलिए हम देखते हैं, देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदा आए, आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे पहले वहां पहुंच जाते हैं। लाखों लाख स्वयंसेवकों के जीवन के हर कर्म, हर प्रयास में राष्ट्र प्रथम की यह भावना हमेशा सर्वोपरि रहती है।

उन्होंने कहा, "अगले कुछ ही दिनों में हम विजयादशमी मनाने वाले हैं। इस बार विजयादशमी एक और वजह से बहुत विशेष है। इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष हो रहे हैं। एक शताब्दी की ये यात्रा जितनी अद्भुत है, अभूतपूर्व है, उतनी ही प्रेरक है।"

पीएम मोदी ने कहा कि 100 साल पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, तब देश सदियों से गुलामी की जंजीरों में बंधा था। सदियों की इस गुलामी ने हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वास को गहरी चोट पहुंचाई थी। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता के सामने पहचान का संकट खड़ा किया जा रहा था। देशवासी हीन-भावना का शिकार होने लगे थे। इसलिए देश की आजादी के साथ-साथ ये भी महत्वपूर्ण था कि देश वैचारिक गुलामी से भी आजाद हो।

इस दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने संघ संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को याद किया। उन्होंने कहा, "हेडगेवार जी ने इस विषय में मंथन करना शुरू किया और फिर इसी भगीरथ कार्य के लिए उन्होंने 1925 में विजयादशमी के पावन अवसर पर 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' की स्थापना की। उनके जाने के बाद 'गुरु जी' ने राष्ट्र सेवा के इस महायज्ञ को आगे बढ़ाया।"

उन्होंने आगे कहा, "परम पूज्य गुरुजी कहा करते थे, 'इदं राष्ट्राय इदं न मम' यानी, ये मेरा नहीं है, ये राष्ट्र का है। इसमें स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए समर्पण का भाव रखने की प्रेरणा है। गुरुजी गोलवरकर जी के इस वाक्य ने लाखों स्वयंसेवकों को त्याग और सेवा की राह दिखाई है। त्याग और सेवा की भावना और अनुशासन की सीख यही संघ की सच्ची ताकत है।"

Created On :   28 Sept 2025 1:18 PM IST

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