राष्ट्रीय: नोएडा प्राधिकरण करेगा एक्सप्रेसवे पर क्षतिग्रस्त सीवर लाइन की मरम्मत, जल निगम से किया 22 साल पुराना करार खत्म

नोएडा प्राधिकरण करेगा एक्सप्रेसवे पर क्षतिग्रस्त सीवर लाइन की मरम्मत, जल निगम से किया 22 साल पुराना करार खत्म
नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के दोनों ओर की ग्रीन बेल्ट में 10.30 किमी से 20 किमी के बीच क्षतिग्रस्त सीवर लाइन की मरम्मत और उसे क्रियाशील बनाने का कार्य अब नोएडा प्राधिकरण खुद करेगा। यह जिम्मेदारी पहले उत्तर प्रदेश जल निगम को सौंपी गई थी, लेकिन अब एमओयू को निरस्त करते हुए यह कार्य प्राधिकरण अपने स्तर पर 40 करोड़ रुपये में कराएगा। जबकि जल निगम इसके लिए 63.36 करोड़ रुपये और 1.5 वर्ष का समय मांग रहा था।

नोएडा, 5 मई (आईएएनएस)। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के दोनों ओर की ग्रीन बेल्ट में 10.30 किमी से 20 किमी के बीच क्षतिग्रस्त सीवर लाइन की मरम्मत और उसे क्रियाशील बनाने का कार्य अब नोएडा प्राधिकरण खुद करेगा। यह जिम्मेदारी पहले उत्तर प्रदेश जल निगम को सौंपी गई थी, लेकिन अब एमओयू को निरस्त करते हुए यह कार्य प्राधिकरण अपने स्तर पर 40 करोड़ रुपये में कराएगा। जबकि जल निगम इसके लिए 63.36 करोड़ रुपये और 1.5 वर्ष का समय मांग रहा था।

इस परियोजना के लिए वर्ष 2002 में नोएडा प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश जल निगम के बीच 98.33 लाख रुपये का एमओयू साइन हुआ था, जिसे समय के साथ संशोधित कर 14058 लाख रुपये कर दिया गया। योजना के तहत एक्सप्रेसवे के दोनों ओर 8 इंटरमीडियट सीवेज पंपिंग स्टेशन, 2 मास्टर पंपिंग स्टेशन और 20-20 किमी गहरी सीवर लाइन का निर्माण किया जाना था।

प्राधिकरण ने वर्ष 2014 तक जल निगम को 14009 लाख रुपये का भुगतान कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद इंटरमीडियट पंपिंग स्टेशन (आईपीएस) 1, 2, 5, 6 और गहरी सीवर लाइन, प्रेशर मेन लाइन की टेस्टिंग और हैंडओवर आज तक नहीं हुआ। जबकि एमओयू के अनुसार यह सभी कार्य आवश्यक थे, ताकि पूरे क्षेत्र का सीवेज शोधन एसटीपी-168 के माध्यम से हो सके।

अब तक एडवांट टावर (सेक्टर-142) से ग्रेटर नोएडा बॉर्डर तक निर्माण अधूरा है। केवल कुछ ग्रेविटी लाइन, राइजिंग लाइन और आरसीसी वेल बने हैं। इस बीच बने अंडरपास, एक्वा लाइन मेट्रो और डीएफसीसीआईएल की परियोजनाओं के चलते पहले से डाली गई सीवर लाइनें क्षतिग्रस्त हो गईं और अब पूरी तरह अक्रियाशील हैं। इससे ग्रीन बेल्ट में जगह-जगह सीवेज जमा हो रहा है, जिस पर एनजीटी और आईजीआरएस में कई बार शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं।

2023 में हुई एक बैठक में जल निगम ने अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 63.36 करोड़ रुपये की मांग की और 1.5 वर्ष का समय भी चाहा, लेकिन तकनीकी विश्लेषण में सामने आया कि प्राधिकरण यदि इस कार्य को खुद कराए तो इसे 40 करोड़ रुपये में और केवल एक साल में पूरा किया जा सकता है।

एमओयू में दिए गए कई ऐसे बिंदु हैं, जिनमें क्लॉज-9 (पेनाल्टी) और क्लॉज-11 (विवाद समाधान) के तहत प्राधिकरण को यह अधिकार प्राप्त है कि वह बिना कारण बताए जल निगम को कार्य से हटा सकता है। इस आधार पर प्राधिकरण ने 2002 के एमओयू को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया है और अब यह कार्य खुद करवाने का निर्णय लिया है।

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Created On :   5 May 2025 11:29 AM IST

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