संस्कृति: 19 सौ एकड़ में बने भव्य मंदिर में विराजमान हैं नरसिंह देव के पांचों स्वरूप , सोने से जगमग करता है ‘तेलंगाना का तिरुपति’

19 सौ एकड़ में बने भव्य मंदिर में विराजमान हैं नरसिंह देव के पांचों स्वरूप , सोने से जगमग करता है ‘तेलंगाना का तिरुपति’
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। नारायण के धाम जगमग कर तैयार हैं। देश भर में ऐसे कई मंदिर हैं, जो भक्ति और आश्चर्य के मिश्रण को अपने में समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से करीब 60 किलोमीटर दूर यादगिरिगुट्टा की रमणीक पहाड़ी पर स्थित है। नारायण के इस मंदिर का नाम श्री लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर है।

हैदराबाद, 14 अगस्त (आईएएनएस)। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। नारायण के धाम जगमग कर तैयार हैं। देश भर में ऐसे कई मंदिर हैं, जो भक्ति और आश्चर्य के मिश्रण को अपने में समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से करीब 60 किलोमीटर दूर यादगिरिगुट्टा की रमणीक पहाड़ी पर स्थित है। नारायण के इस मंदिर का नाम श्री लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर है।

यह एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है, जहां भक्ति और प्रकृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर, जिसे यदाद्रि या पंच नरसिंह क्षेत्रम भी कहा जाता है, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित है। मंदिर की दिव्य आभा के कारण यह ‘तेलंगाना का तिरुपति’ कहलाता है। रोजाना यहां 10 से 15 हजार भक्त दर्शन-पूजा, लक्ष तुलसी पूजा और अभिषेक जैसे अनुष्ठानों के लिए उमड़ते हैं।

यदागिरिगुट्टा मंदिर की स्थापना की कथा त्रेतायुग से जुड़ी है। स्कंद पुराण के अनुसार, यद ऋषि, जो महान ऋषि ऋष्यशृंग और संता देवी के पुत्र थे, ने इस पहाड़ी पर हनुमान जी की कृपा से तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नरसिंह ने पांच रूपों, ज्वाला नरसिंह, योगानंद नरसिंह, गंडभेरुंड नरसिंह, उग्र नरसिंह और लक्ष्मी नरसिंह में दर्शन दिए। यद ऋषि के अनुरोध पर भगवान ने इन पांचों रूपों में इस पहाड़ी पर स्थायी रूप से वास करने का वरदान दिया। ये पांचों रूप आज मंदिर की गुफा में पत्थरों में उकेरे गए हैं, जो भक्तों के लिए बेहद खास हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान नरसिंह ने यद ऋषि को हनुमान जी के मार्गदर्शन में एक पवित्र स्थान पर दर्शन दिए, जो अब पहाड़ी के नीचे एक छोटा मंदिर है।

यदागिरिगुट्टा मंदिर 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली और आगम शास्त्र पर आधारित है। साल 2016 से 2022 तक करोड़ों रुपए की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, जिसमें काले ग्रेनाइट (कृष्ण शिला) का उपयोग किया गया। सात गोपुरम, मंडपम, और 12 अलवारों के स्तंभ मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं। मंदिर के निर्माण में सोने का भरपूर मात्रा में इस्तेमाल हुआ है। गर्भगृह में लक्ष्मी नरसिंह की चांदी की मूर्ति और अन्य चार रूपों की पत्थर की मूर्तियां हैं। हनुमान मंदिर और गंडभेरुंड नरसिंह मंदिर भी परिसर में हैं।

मंदिर में साल भर उत्सवों का माहौल रहता है। ब्रह्मोत्सवम (फरवरी-मार्च), नरसिंह जयंती और वैकुंठ एकादशी जैसे त्योहारों में हजारों भक्त शामिल होते हैं। सुबह 4 बजे से रात 9 बजकर 30 मिनट तक दर्शन और सुप्रभात सेवा, सहस्रनाम अर्चना जैसे अनुष्ठान होते हैं। मंदिर की प्रसाद व्यवस्था भी उल्लेखनीय है।

मंदिर पहुंचना भी बेहद सरल है। यदागिरिगुट्टा सड़क और रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर एनएच 163 मार्ग पर यह 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन रायगिरी (5 किमी) और भोंगिर (13 किमी) हैं। राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा 90 किमी दूर है। मंदिर में अतिथि गृह, निजी होटल और धर्मशालाएं भी उपलब्ध हैं।

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Created On :   14 Aug 2025 2:05 PM IST

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