कोर्ट ने गुजरात के पूर्व डीएम को सुनाई 5 साल की सजा, सरकार को 1.20 करोड़ रुपए का पहुंचाया था नुकसान

कोर्ट ने गुजरात के पूर्व डीएम को सुनाई 5 साल की सजा, सरकार को 1.20 करोड़ रुपए का पहुंचाया था नुकसान
विशेष पीएमएलए अदालत ने भुज भूमि आवंटन के दौरान गुजरात सरकार को 1.20 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने के लिए एक पूर्व जिला कलेक्‍टर को पांच साल की कैद और 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया। यह जानकारी एक अधिकारी ने रविवार को दी।

अहमदाबाद, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। विशेष पीएमएलए अदालत ने भुज भूमि आवंटन के दौरान गुजरात सरकार को 1.20 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने के लिए एक पूर्व जिला कलेक्‍टर को पांच साल की कैद और 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया। यह जानकारी एक अधिकारी ने रविवार को दी।

शनिवार को कोर्ट ने पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप निरंकनाथ शर्मा को सजा सुनाते हुए केंद्र सरकार को उसकी 1.32 करोड़ रुपए की संपत्ति को जब्त करने का आदेश दिया, जिसे ईडी ने एक दशक पुराने अपराधों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की जांच के दौरान जब्‍त किया था।

प्रदीप निरंकनाथ शर्मा जब भुज (कच्छ) में जिला कलेक्टर के पद पर तैनात थे, तब उन्होंने दूसरों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सरकारी जमीन कम दरों पर आवंटित की। इससे गुजरात सरकार को 1.20 करोड़ रुपए का वित्तीय नुकसान हुआ।

ईडी के बयान में कहा गया है कि तत्कालीन कलेक्टर ने आपराधिक गतिविधियों के संबंध में अनुचित मौद्रिक लाभ प्राप्त किए। जांच एजेंसी ने भारतीय दंड संहिता, 1860 और भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत गुजरात के अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में दर्ज कई एफआईआर के आधार पर अपनी जांच शुरू की।

शनिवार को अहमदाबाद में विशेष पीएमएलए अदालत ने प्रदीप निरंकनाथ शर्मा को धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 3 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया और उसकी इस अपील को खारिज कर दिया कि इस पीएमएलए मामले में उसकी अगली सजा पिछली सजा के साथ-साथ चलाने का आदेश दिया जाए।

स्पेशल कोर्ट ने कहा कि प्रदीप निरंकनाथ शर्मा एक आईएएस अधिकारी था और जिला मजिस्ट्रेट के पद पर था। उसने भ्रष्टाचार कर और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में शामिल होकर अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया।

कोर्ट ने कहा कि दोनों अपराध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और पीएमएलए, 2002 के तहत अलग-अलग हैं। दोनों कानून खास मकसद से बनाए गए हैं।

स्पेशल कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए सजा में एकरूपता का निर्देश देने का कोई उचित कारण नहीं है और तदनुसार, अभियुक्त का यह अनुरोध कि इस मामले में उसकी अगली सजा को उसकी पिछली सजा के साथ-साथ चलाने का आदेश दिया जाए, अस्‍वीकार किया जाता है।

इससे पहले, प्रदीप निरंकनाथ शर्मा द्वारा दायर डिस्चार्ज याचिका खारिज कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा था कि कानून मानता है कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्थिर घटना नहीं है, बल्कि एक लगातार चलने वाली गतिविधि है, जब तक कि अवैध लाभ अर्जित किया जाता है, उसे वैध के रूप में पेश किया जाता है या अर्थव्‍यवस्‍था में फिर से शामिल किया जाता है। इस प्रकार यह तर्क कि अपराध जारी नहीं है, कानून या तथ्यों के आधार पर सही नहीं है और इसलिए इस आधार पर हाईकोर्ट के फैसले को रद्द नहीं किया जा सकता।

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Created On :   7 Dec 2025 9:16 PM IST

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