थिएटर का सच्चा योद्धा 'गॉर्डन रीड', जिन्होंने मंच पर ही ली आखिरी सांस
नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)। स्कॉटलैंड के हैमिल्टन में 8 जून 1939 को जन्मे गॉर्डन रीड ने अपना पूरा जीवन अभिनय को समर्पित कर दिया। वे हॉलीवुड की चमक-दमक वाले बड़े सितारों की तरह सुर्खियों में नहीं रहे, लेकिन थिएटर, टीवी और फिल्मों में उनका सफर एक साधारण कलाकार की असाधारण जिद की गवाही देता है।
एक चिकित्सक के बेटे रीड ने स्थानीय स्कूलों में पढ़ाई की और बाद में रॉयल स्कॉटिश कॉलेज ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया। कुछ दिन तक अकाउंटेंट का भी काम संभाला लेकिन दिल हमेशा थिएटर में ही रमा रहा।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की और धीरे-धीरे टेलीविजन व फिल्मों की ओर बढ़े। जहां ज्यादातर अभिनेता पहचान और प्रसिद्धि के पीछे भागते हैं, वहीं गॉर्डन रीड हमेशा अपने काम की गुणवत्ता और मंच की गरिमा को प्राथमिकता देते रहे।
उन्होंने अभिनय को रुतबा कमाने का साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका माना। उनकी दृढ़ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जीवन के अंतिम क्षणों तक वे थिएटर पर सक्रिय थे। 26 नवंबर 2003 को उनका निधन भी मंच पर ही अपनी भूमिका निभाते हुए हुआ! एक कलाकार के लिए इससे बड़ी विदाई और क्या हो सकती है?
गॉर्डन रीड का स्टेज, फिल्म और टेलीविजन पर बहुत बड़ा करियर रहा है; उन्हें टीवी सीरीज डॉक्टर फिनले (1993-1996) में केमिस्ट एंगस लिविंगस्टोन के रोल के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। उनके दूसरे खास कामों में फिल्म 'मैन्सफील्ड पार्क' (1999) और 'द अदर्स' (2001) और 'डॉक्टर हू' (1963) में निभाए किरदार शामिल हैं। इतना ही नहीं, रीड जाने माने वॉयस ओवर आर्टिस्ट भी थे।
गॉर्डन रीड की कहानी चमकदार मैगजीन कवर या रेड कार्पेट की नहीं है। यह कहानी है निरंतर मेहनत, समर्पण, और अपनी कला से गहरी निष्ठा की। उन्होंने दिखाया कि असली सफलता तालियों की गूंज में नहीं, बल्कि उस संतोष में छिपी होती है जो अपने काम को पूरी ईमानदारी से निभाने पर मिलता है।
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Created On :   25 Nov 2025 8:37 PM IST












