बॉलीवुड ने ठुकराया, फिर भी जगजीत सिंह बने गजल के बेताज बादशाह

बॉलीवुड ने ठुकराया, फिर भी जगजीत सिंह बने गजल के बेताज बादशाह
जब भी गजल की बात होती है, एक नाम अनायास ही जुबान पर आता है, वो है जगजीत सिंह। राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे इस महान गायक ने अपनी मखमली आवाज और भावनाओं की गहराई से गजल को न केवल एक नया मुकाम दिया, बल्कि इसे हर दिल तक पहुंचाया। ‘गजल किंग’ के तौर पर मशहूर जगजीत सिंह ने संगीत की दुनिया में ऐसी छाप छोड़ी, जो समय की सीमाओं को पार कर आज भी उतनी ही ताजा है।

मुंबई, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। जब भी गजल की बात होती है, एक नाम अनायास ही जुबान पर आता है, वो है जगजीत सिंह। राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे इस महान गायक ने अपनी मखमली आवाज और भावनाओं की गहराई से गजल को न केवल एक नया मुकाम दिया, बल्कि इसे हर दिल तक पहुंचाया। ‘गजल किंग’ के तौर पर मशहूर जगजीत सिंह ने संगीत की दुनिया में ऐसी छाप छोड़ी, जो समय की सीमाओं को पार कर आज भी उतनी ही ताजा है।

उनका सफर शुरू हुआ राजस्थान की मिट्टी से, जहां संगीत उनके लिए सिर्फ शौक नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज थी। कम उम्र में ही उन्होंने शास्त्रीय संगीत की तालीम ली और जल्द ही उनकी प्रतिभा ने मुंबई की चकाचौंध तक पहुंचा दिया। 1970 के दशक में जब गजल को एक खास वर्ग का संगीत माना जाता था, जगजीत और उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने इसे आम जनमानस की जुबान बना दिया।

उनकी जोड़ी ने 'द अनफॉरगेटेबल्स' जैसे एल्बम के साथ गजल को नई पहचान दी, जिसमें 'बात निकलेगी तो' और 'रात भी नींद भी' जैसे गीतों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

जगजीत सिंह की खासियत थी उनकी सादगी और गीतों में छिपी गहरी भावनाएं। चाहे प्रेम का उत्सव हो, जुदाई का दर्द हो, या जिंदगी की नश्वरता का अहसास, उनके गीत हर रंग को बखूबी बयां करते थे। 'तुमको देखा तो ये खयाल आया' से लेकर 'चिठ्ठी न कोई संदेश' और 'होश वालों को खबर क्या' तक, हर गीत एक कहानी कहती थी। हिंदी सिनेमा में भी उनकी आवाज ने जादू बिखेरा। उनकी गजलें कई फिल्मों को यादगार बनाती दिखीं।

10 अक्टूबर 2011 को जगजीत सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी गजलें आज भी हर दिल में जिंदा हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गजल की तरफ रुख उन्होंने बॉलीवुड में अपनी आवाज खारिज होने के बाद किया था। इस किस्से का जिक्र लेखिका सत्या सरन की किताब 'बात निकलेगी तो फिर' में किया गया है।

इसमें लेखिका सत्या सरन बताती हैं कि कैसे फिल्म इंडस्ट्री से रिजेक्शन ने उन्हें एक ऐसा समानांतर संगीत साम्राज्य खड़ा करने को प्रेरित किया, जिसने अंततः बॉलीवुड को ही झुकने पर मजबूर कर दिया।

यह किस्सा 1960 के दशक के अंतिम वर्षों का है, जब जगजीत सिंह, जो जालंधर से मुंबई पहुंचे थे, खुद को फिल्मी संगीत की दुनिया में स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। जगजीत सिंह की आवाज, जो गजल के गहरे भावों को व्यक्त करने के लिए एकदम सही थी, उस दौर के फिल्मी संगीत के लोकप्रिय मानकों पर खरी नहीं उतरी।

बड़े संगीत निर्देशकों ने उनकी आवाज को अक्सर ‘बहुत भारी’ या फिल्मी गानों के लिए ‘बहुत गंभीर’ बताकर खारिज कर दिया। उनका सपना एक प्लेबैक सिंगर बनने का था, लेकिन उन्हें लगातार निराशा मिल रही थी।

बॉलीवुड से लगातार इनकार मिलने के बाद, जगजीत सिंह को मुंबई में गुजारा करने के लिए रचनात्मक तरीके तलाशने पड़े। उन्होंने और उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने मिलकर विज्ञापन जिंगल्स बनाना शुरू कर दिया। ये जिंगल्स ही उनके संघर्ष के दिनों में उनकी आय का मुख्य स्रोत बने।

बॉलीवुड के बहिष्कार को जगजीत सिंह ने अपनी कला की दिशा बदलने का अवसर बना लिया। उन्होंने तय किया कि अगर फिल्म इंडस्ट्री उन्हें जगह नहीं देगी, तो वह अपनी गजलों को आम जनता के बीच ले जाएंगे। उन्होंने और चित्रा सिंह ने गजल को शास्त्रीय और कठिन सीमाओं से निकालकर, सरल धुनें दीं और उसमें पश्चिमी वाद्य यंत्रों का उपयोग किया।

इसके बाद 1976 में आई एलबम 'द अनफॉरगेटेबल्स' इतनी बड़ी व्यावसायिक सफलता बनी कि यह भारत में गजल के इतिहास में एक 'परिवर्तनकारी मील का पत्थर' बन गई। इसके बाद जगजीत सिंह ने बॉलीवुड के दरवाजों पर दस्तक देना छोड़ दिया और जब वह 'गजल सम्राट' बन चुके थे, तभी फिल्म जगत ने उन्हें न केवल स्वीकार किया, बल्कि उनकी शैली को सम्मान दिया।

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Created On :   9 Oct 2025 7:49 PM IST

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