स्वास्थ्य/चिकित्सा: टीबी के इलाज में रिफामाइसिन की अधिक मात्रा सुरक्षित, दोबारा बीमारी होने से भी बचाव आईसीएमआर शोध

टीबी के इलाज में रिफामाइसिन की अधिक मात्रा सुरक्षित, दोबारा बीमारी होने से भी बचाव  आईसीएमआर शोध
टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवा 'रिफामाइसिन' को लेकर एक नई रिसर्च में अहम खुलासा हुआ है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अगर यह दवा सामान्य से अधिक मात्रा में दी जाए, तो यह न केवल मरीजों में बीमारी को खत्म करने में मदद कर सकती है, बल्कि उन्हें टीबी के दोबारा होने से भी बचा सकती है। खास तौर से फेफड़ों की टीबी के मरीजों के लिए यह इलाज अधिक लाभकारी साबित हो सकता है।

नई दिल्ली, 17 जुलाई (आईएएनएस)। टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवा 'रिफामाइसिन' को लेकर एक नई रिसर्च में अहम खुलासा हुआ है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अगर यह दवा सामान्य से अधिक मात्रा में दी जाए, तो यह न केवल मरीजों में बीमारी को खत्म करने में मदद कर सकती है, बल्कि उन्हें टीबी के दोबारा होने से भी बचा सकती है। खास तौर से फेफड़ों की टीबी के मरीजों के लिए यह इलाज अधिक लाभकारी साबित हो सकता है।

टीबी का इलाज संभव है, फिर भी यह आज दुनिया में सबसे ज्यादा मौतों का कारण बनने वाली संक्रामक बीमारी बनी हुई है। साल 2022 में करीब 13 लाख लोगों की मौत टीबी से हुई थी। टीबी के इलाज में 'रिफामाइसिन' नाम की दवा की अहम भूमिका होती है, जो बैक्टीरिया को खत्म कर शरीर में बने घावों को साफ करती हैं और मरीज को दोबारा बीमार होने से रोकती है।

फिलहाल मरीजों को रिफामाइसिन की 10 मिलीग्राम प्रति किलो वजन की खुराक दी जाती है, जो कि लगातार 6 महीने तक जारी रहती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी मरीज का वजन 50 किलो है, तो उसे रोजाना 500 मिलीग्राम रिफामाइसिन दी जाती है।

आईसीएमआर की टीम ने पहले से प्रकाशित क्लिनिकल ट्रायल्स का विश्लेषण किया ताकि यह जाना जा सके कि क्या 15 मिलीग्राम प्रति किलो वजन से ज्यादा डोज देना असरदार और सुरक्षित है या नहीं।

आईसीएमआर- राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान, चेन्नई के नैदानिक अनुसंधान विभाग के संवाददाता लेखक डॉ. लीबर्क राजा इनबराज ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि जिन मरीजों को रिफामाइसिन की ज्यादा मात्रा दी गई, उनमें 8 हफ्तों के भीतर स्पुटम कन्वर्जन में टीबी के बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म हो गए। यह इलाज की सफलता का शुरुआती संकेत होता है।

'स्पुटम कन्वर्जन' यह बताने में मदद करता है कि इलाज कितनी तेजी से असर कर रहा है और मरीज में टीबी फिर से होने का खतरा कितना है। इस प्रक्रिया के जरिए मरीज की रिकवरी पर नजर रखी जाती है।

शोधकर्ताओं ने कहा, ''रिफामाइसिन की ज्यादा मात्रा से टीबी के बैक्टीरिया जल्दी खत्म होते हैं, जिससे न केवल मरीज जल्दी ठीक होता है, बल्कि संक्रमण के फैलाव की संभावना भी कम हो जाती है, जो कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम है।''

शोधकर्ताओं ने पाया कि रिफामाइसिन की 20 से 30 मिलीग्राम/किलोग्राम रिफामाइसिन की खुराक सबसे संतुलित और सुरक्षित रही। इससे मरीजों में स्पुटम कन्वर्जन जल्दी हुआ और गंभीर साइड इफेक्ट्स नहीं देखे गए।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया कि जब रिफामाइसिन की मात्रा को 30 मिलीग्राम/किलोग्राम से ज्यादा बढ़ाया गया, तो कुछ मरीजों में इसके गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए।

शोध में यह भी सामने आया कि भले ही बैक्टीरिया जल्दी खत्म हुए हों, लेकिन ज्यादा डोज से 6 महीने बाद न तो मरीजों की मृत्यु दर कम हुई और न ही इलाज में कोई बड़ा सुधार देखा गया।

रिसर्च टीम का सुझाव है कि ज्यादा डोज दी जा सकती है, लेकिन साइड इफेक्ट्स और लीवर की निगरानी के साथ। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर लंबे समय तक चलने वाले और बड़े स्तर के क्लिनिकल ट्रायल्स की जरूरत है ताकि ज्यादा डोज के लंबी अवधि के फायदे और खतरे स्पष्ट रूप से समझे जा सकें।

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Created On :   17 July 2025 6:17 PM IST

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