मांस ही नहीं दूध, चीनी, तेल, सीमेंट को भी दिया जा रहा है हलाल सर्टिफिकेट राज्यसभा सांसद
नई दिल्ली, 3 दिसंबर (आईएएनएस) बुधवार को राज्यसभा में भाजपा सांसद डॉ. मेधा विश्राम कुलकर्णी ने हलाल सर्टिफिकेशन और उससे जुड़ी समस्याओं का विषय उठाया। डॉ. मेधा ने कहा कि हलाल एक धर्म विशेष व आस्था से जुड़ी संकल्पना है। यह केवल मांस खाद्य से जुड़ी संकल्पना है। बावजूद इसके प्लास्टिक, सीमेंट, दूध, चीनी व तेल जैसी सामान्य चीजों को भी हलाल सर्टिफिकेट दिया जा रहा है।
उनका कहना था कि मीट का हलाल सर्टिफिकेट सरकार द्वारा दिया जाना चाहिए, किसी धार्मिक संस्था द्वारा नहीं। उन्होंने कहा कि भारत एक सेकुलर देश है और भारत देश में अन्य आस्थाओं से जुड़े लोग भी रहते हैं। हलाल मांस खाना उनकी श्रद्धा के विपरीत है, जैसे कि हिंदू एवं सिख। ऐसे में अन्य लोगों पर हलाल सर्टिफिकेशन वाले मांस को थोपना सही नहीं है।
उन्होंने कहा कि संविधान के मुताबिक भी यह सही नहीं है क्योंकि हमारा संविधान सबको अपनी-अपनी आस्था का पालन करने का अधिकार देता है। उन्होंने इसके अलावा गैर-मांस पदार्थों को भी हलाल सर्टिफिकेशन दिए जाने का मुद्दा सदन में उठाया। उन्होंने कहा कि जो मांस से जुड़े खाद्य पदार्थ नहीं हैं उन्हें भी हलाल सर्टिफिकेशन क्यों दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि दूध, चीनी, तेल औषधि जैसी चीजों को हलाल सर्टिफिकेशन क्यों दिया जा रहा है, जबकि हलाल तो केवल मांस से जुड़ा विषय है। उन्होंने राज्यसभा सभा में अपनी बात रखते हुए कहा कि केवल गैर-मांस खाद्य पदार्थ ही नहीं बल्कि गैर-खाद्य पदार्थों को भी हलाल सर्टिफिकेशन दिया जा रहा है।
उन्होंने राज्य सभा में बताया कि गैर-खाद्य पदार्थ जैसे सीमेंट, केमिकल, प्लास्टर एक कंस्ट्रक्शन मटेरियल जैसी चीजों को भी हलाल सर्टिफिकेशन दिया जा रहा है। उन्होंने ऐसी वस्तुओं को हलाल सर्टिफिकेशन दिए जाने को अतार्किक और आशंकापूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इस कदम से धर्मनिरपेक्षता बाधित होती है।
महाराष्ट्र से भाजपा सांसद मेधा विश्राम कुलकर्णी ने इस विषय पर मेडिकल अध्ययनों का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अब ऐसी रिसर्च सामने आ रही हैं जो बताती हैं कि हलाल वाला मांस खाना हानिकारक है। उन्होंने कहा कि हेल्थ साइंस में यह संशोधन हो रहा है जो बताता है कि हलाल करने के बाद जानवरों के शरीर में ऐसा केमिकल फैल जाता है जो हानिकारक है। उन्होंने राज्यसभा सभा में बताया कि सर्टिफिकेशन के चार्जेस से बाजार में मूल्य वृद्धि होती है जो अप्रत्यक्ष रूप से सभी उपभोक्ताओं को चुकानी पड़ती है। यह स्थिति उपभोक्ता की स्वतंत्रता और बाजार की पारदर्शिता और सामान्य न्याय को बाधित करती है।
उन्होंने कहा कि भारत में एफएसएसएआई को खाद्य पदार्थों की जांच व एफडीआई को दवाओं की जांच के अधिकार दिए गए हैं। यह व्यवस्था उपलब्ध होने के बावजूद किसी धार्मिक संस्था को इस प्रकार के प्रमाणन के अधिकार क्यों दिए गए हैं? उन्होंने कहा कि यदि मांस को हलाल सर्टिफिकेशन देना हो तो इसे सरकारी व्यवस्था के अंदर दिया जाना चाहिए। ऐसे में जो सर्टिफिकेशन का शुल्क है वह सरकारी खजाने में जमा कराया जाए। उन्होंने कहा कि गैर-मांस गैर-खाद्य पदार्थों के ऊपर जो हलाल सर्टिफिकेशन दिया जाता है उसे तुरंत रद्द किया जाए।
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Created On :   3 Dec 2025 2:50 PM IST












