कानून: महज अनुबंध के उल्लंघन से आपराधिक मुकदमा नहीं बनता सुप्रीम कोर्ट

महज अनुबंध के उल्लंघन से आपराधिक मुकदमा नहीं बनता सुप्रीम कोर्ट
पैसे के भुगतान से संबंधित विवाद में दायर एक एफआईआर को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी एक पक्ष द्वारा अनुबंध के उल्लंघन मात्र से हर मामले में आपराधिक मुकदमा नहीं बनता है।

नई दिल्ली, 13 मार्च (आईएएनएस)। पैसे के भुगतान से संबंधित विवाद में दायर एक एफआईआर को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी एक पक्ष द्वारा अनुबंध के उल्लंघन मात्र से हर मामले में आपराधिक मुकदमा नहीं बनता है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ एक साइकिल निर्माण कंपनी के दो अधिकारियों द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ बेंगलुरु ग्रामीण के डोड्डाबल्लापुरा थाने में 2017 में आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

शिकायतकर्ता - जिसने साइकिलों की असेंबली, उनके परिवहन और डिलीवरी का ठेका लिया था - ने आरोप लगाया कि उसे एक करोड़ रुपये से अधिक के चालान के बदले केवल 35,37,390 रुपये का भुगतान किया गया था।

अभियुक्त-अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि एफआईआर में मुख्य रूप से एक दीवानी विवाद शामिल है और उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही महज प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं थी।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह विवाद कि शिकायतकर्ता ने कितनी साइकिलें इकट्ठी की थीं और कितनी राशि का भुगतान किया जाना था, एक "सिविल विवाद" है।

इसमें कहा गया है कि शिकायतकर्ता यह स्थापित करने में सक्षम नहीं है कि अपीलकर्ताओं का उसे धोखा देने का इरादा शुरू से ही था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारा विचार है कि यह एक ऐसा मामला है जहां आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए था क्योंकि शक्तियां प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय के उद्देश्य को हासिल करने के लिए हैं।”

इससे पहले 2020 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एफआईआर को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिका खारिज कर दी थी।

इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कि किसी भी मामले में पक्षों के बीच विवाद दीवानी प्रकृति का था, उच्च न्यायालय ने माना था कि प्रथम दृष्टया अपीलकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला बनता है।

वेसा होल्डिंग्स (पी) लिमिटेड बनाम केरल राज्य मामले में अपने 2015 के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि अनुबंध का प्रत्येक उल्लंघन धोखाधड़ी के अपराध को जन्म नहीं देगा, और यह दिखाना आवश्यक है कि आरोपी ने धोखाधड़ी की थी या वादा करते समय बेईमानी का इरादा।

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Created On :   13 March 2024 4:22 PM IST

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