पर्यावरण: झारखंड में 50 दिनों में वज्रपात से 32 की मौत
रांची, 22 जून (आईएएनएस)। झारखंड में मानसून की बारिश अभी कायदे से शुरू भी नहीं हुई है और इसके पहले ही आसमान से मौत की बिजलियां गिरने का सिलसिला शुरू हो गया। राज्य में इस हफ्ते वज्रपात की एक दर्जन से ज्यादा घटनाओं में 10 लोगों की जान चली गई, जबकि घायलों की संख्या भी एक दर्जन से ज्यादा है। पिछले 50 दिनों में राज्य में आसमानी बिजलियों की चपेट में आकर 32 लोगों की मौत हुई है।
इस हफ्ते वज्रपात की अलग-अलग घटनाओं में पलामू जिले की तरहसी प्रखंड में 17 वर्षीय राकेश सिंह, रांची के बुढ़मू प्रखंड में 25 वर्षीया गीता देवी और इसी प्रखंड के अकतन गांव निवासी 68 वर्षीय बाबूलाल, मुरगी सागगढ़ा गांव की मीनू देवी, रांची के चान्हो प्रखंड में 17 वर्षीय प्रेम कुजूर, लोहरदगा के किस्को प्रखंड में 10 वर्षीय आर्यन महली, कुड़ू प्रखंड के जिंगी में 20 वर्षीय सुहाना परवीन, गुमला जिले के जारी प्रखंड में 32 वर्षीय मोनिका तिर्की, सिसई प्रखंड के चापाटोली में 11 वर्षीय मनीषा तिर्की और सदर थाना क्षेत्र में 23 वर्षीय दीपक गोप की मौत हो गई।
दरअसल, बारिश के साथ ही आसमानी बिजलियों के कहर का यह सिलसिला झारखंड के लिए बड़ी आपदा बन गया है। भारतीय मौसम विभाग ने थंडरिंग और लाइटनिंग के खतरों को लेकर देश के जिन छह राज्यों को सबसे संवेदनशील के तौर पर चिन्हित किया है, झारखंड भी उनमें एक है। आसमानी बिजली का कहर झारखंड के लिए एक बड़ी आपदा है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में हर साल करीब साढ़े चार लाख वज्रपात की घटनाएं होती हैं। वर्ष 2021-22 में झारखंड में वज्रपात की 4 लाख 39 हजार 828 घटनाएं मौसम विभाग ने रिकॉर्ड किया था। इसके पहले 2020-21 में राज्य में लगभग साढ़े चार लाख बार वज्रपात हुआ था। उस साल वज्रपात से 322 मौतें दर्ज की गई थीं।
क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन मौतों में से 96 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से थीं और पीड़ितों में से 77 प्रतिशत किसान थे। दरअसल, किसान पहाड़ी-पठारी क्षेत्रों में ऊंचे पेड़ों से घिरे खुले खेतों में काम करते हैं और उन तक वज्रपात के खतरे से अलर्ट की सूचनाएं पहुंच नहीं पातीं। हालांकि मौसम विभाग इसे लेकर नियमित तौर पर अलर्ट जारी करता है, लेकिन जागरूकता की कमी बड़ी बाधा है।
वज्रपात को झारखंड सरकार ने विशिष्ट आपदा (स्पेसिफिक डिजास्टर) घोषित कर रखा है। राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने 2019 में एसएमएस सिस्टम के जरिए लोगों को सचेत करने की व्यवस्था की थी, लेकिन यह सिस्टम बहुत कारगर नहीं है। नेटवर्क का सही लोकेशन नहीं होने और लोगों के द्वारा अपने स्मार्टफोन में लोकेशन एक्टिवेट नहीं करने के कारण एसएमएस पहुंचने में दिक्कत हो रही है। वज्रपात की सबसे ज्यादा घटनाएं मई-जून में होती हैं।
पिछले 12 वर्षों में यहां वज्रपात की घटनाओं में 2300 से भी ज्यादा मौतें हुई हैं। वर्ष 2011 से लेकर अब तक किसी भी वर्ष वज्रपात से होने वाली मौतों की संख्या 150 से कम नहीं रही। 2017 में तो वज्रपात से मौतों का आंकड़ा 300 दर्ज किया गया था। इसी तरह 2016 में 270 और 2018 में 277 मौतें हुईं थीं।
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Created On :   22 Jun 2024 7:45 PM IST