विचार / विशेष: टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया जानिए बिंदेश्वर पाठक ने कैसे जातिगत बंधन तोड़कर शुरू की शौचालय सुविधाएं

टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया जानिए बिंदेश्वर पाठक ने कैसे जातिगत बंधन तोड़कर शुरू की शौचालय सुविधाएं
ब्राह्मण परिवार में जन्मे बिंदेश्वर पाठक ने अपना जीवन स्वच्छता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने देश में सभी जाति और वर्ग की सीमाओं को मिटाने में सफलता पाई। वह सुलभ इंटरनेशनल नामक एक भारतीय समाज सेवा संगठन के संस्थापक थे। बिंदेश्वर पाठक का सपना देश को स्वच्छ रखना था और उन्होंने देश के हर कोने में स्वच्छता के महत्व का प्रचार किया। आइए 'टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया' के सफर पर एक नजर डालते हैं।

नई दिल्ली, 15 अगस्त (आईएएनएस)। ब्राह्मण परिवार में जन्मे बिंदेश्वर पाठक ने अपना जीवन स्वच्छता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने देश में सभी जाति और वर्ग की सीमाओं को मिटाने में सफलता पाई। वह सुलभ इंटरनेशनल नामक एक भारतीय समाज सेवा संगठन के संस्थापक थे। बिंदेश्वर पाठक का सपना देश को स्वच्छ रखना था और उन्होंने देश के हर कोने में स्वच्छता के महत्व का प्रचार किया। आइए 'टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया' के सफर पर एक नजर डालते हैं।

बिंदेश्वर पाठक जब 1968 में बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति प्रकोष्ठ में शामिल हुए, तो उन्हें पहली बार हाथ से मैला ढोने वालों की दुर्दशा का पता चला, जिन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर हाथ से मैला हटाना पड़ता था। उन्होंने उस समय पूरे भारत की यात्रा की और हाथ से मैला ढोने वाले परिवारों के साथ रहकर शोध किया। उस अनुभव को एक मार्गदर्शक के रूप में उपयोग करते हुए, उन्होंने न केवल मैला ढोने वालों के प्रति सहानुभूति के कारण बल्कि इसलिए भी काम करने की सोची क्योंकि उन्हें लगा कि मैला ढोना एक अमानवीय पहलू है जिसका अंततः समकालीन भारतीय संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इस अमानवीय कृत्य को देखते हुए पाठक ने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल एक सामाजिक सेवा संगठन है जो तकनीकी उन्नति को मानवीय आदर्शों के साथ जोड़ता है। संगठन में 50,000 स्वयंसेवक हैं। उन्होंने सुलभ शौचालयों को किण्वन संयंत्रों (फर्मेंटेशन प्लांट) से जोड़कर बायोगैस उत्पादन का रचनात्मक उपयोग किया। इसे उन्होंने 30 साल से भी पहले डिजाइन किया था जो अब हर जगह अविकसित देशों में स्वच्छता का पर्याय बन गए हैं।

बता दें कि बिंदेश्वर पाठक भारत में मैनुअल स्कैवेंजरों की स्थिति सुधारने के लिए अपने व्यापक अभियान के लिए जाने जाते थे। उनके सुलभ संगठन ने सस्ती दो-गड्ढे वाली तकनीक का उपयोग करके भारतीय घरों में लगभग 1.3 मिलियन शौचालय बनाए, साथ ही 54 मिलियन सरकारी शौचालय भी बनाए।

बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल, 1943 को बिहार के हाजीपुर में हुआ था। उन्होंने 1964 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र की डिग्री हासिल की। 1980 में पटना विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया और 1985 में पीएचडी की। ​​डॉ. पाठक एक सक्रिय वक्ता और लेखक थे, जिनकी लिखी कई किताबें प्रकाशित हुईं, इनमें से एक है द रोड टू फ्रीडम।

भारत के प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का 15 अगस्त 2023 को 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 80 ​​वर्षीय डॉ. बिंदेश्वर पाठक को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता बिंदेश्वर पाठक को मरणोपरांत पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया है।

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Created On :   15 Aug 2024 9:08 AM IST

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