राष्ट्रीय: पुण्यतिथि विशेष ताराशंकर बंदोपाध्याय की रचनाओं समाज के लिए आईना

पुण्यतिथि विशेष  ताराशंकर बंदोपाध्याय की रचनाओं समाज के लिए आईना
बंगाल साहित्यिक विभूतियों की भूमि रही है। इस धरती से साहित्य जगत के ऐसे चमकते सितारे निकले, जिन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई।

नई दिल्ली, 13 सितंबर (आईएएनएस)। बंगाल साहित्यिक विभूतियों की भूमि रही है। इस धरती से साहित्य जगत के ऐसे चमकते सितारे निकले, जिन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई।

इस कड़ी में बंगाली भाषा के उपन्यासकार ताराशंकर बंदोपाध्याय का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने उपन्यास लेखन के जरिए समाज के संवेदनशील पक्ष को परिभाषित किया।

ताराशंकर बंदोपाध्याय की कहानियां और उपन्यास सामाजिक सच्चाई और मान्यताओं को अपने आप में समेटे हुए है। सामाजिक व्यवस्था और कुरीतियों को कलमबद्ध करके उन्होंने लोगों के मानस को झकझोरने का काम किया है। उनकी समस्त रचनाएं समाज के रूढ़िवाद और पाखंड को उजागर करने के साथ-साथ मानवीय संबंधों की सच्चाई से रूबरू कराती हैं। एक जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले बंदोपाध्याय ने अपने लेखनी की धार से जमींदारी व्यवस्था की खामियों का भी पर्दाफाश किया।

बंगाली उपन्यासकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' को 1956 में साहित्य अकादमी तथा 'गणदेवता' को 1967 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए थे।

'आरोग्य निकेतन' उपन्यास की कहानी प्रद्युत सेन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक युवा एलोपैथिक डॉक्टर है। वह अपनी मां के साथ नबाग्राम के गांव में प्रैक्टिस शुरू करने जाता है, लेकिन उस इलाके में पहले से ही प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक चिकित्सक मौजूद रहते हैं। ऐसे में दोनों के बीच पेशेवर स्तर पर शुरू हुआ टकराव नैतिक स्तर पर चला जाता है। रोचकता से भरपूर इस उपन्यास में समकालीन समाज को प्रतिबिंबित किया गया है। जो पाठकों के मन में एक अलग छाप छोड़ता है।

ताराशंकर बंद्योपाध्याय का उपन्यास 'गणदेवता' विश्व के महानतम उपन्यासों में गिना जाता है। इस उपन्यास में बदलते समय की मार झेल रहे शिबकलीपुर के छोटे से गांव की गाथा को दर्शाया गया है। आजादी के बाद तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण का भी वर्णन किया गया है। वहीं, सदियों पुरानी सामंती परंपराएं नई जीवन शैली से कैसे टकराती हैं, उसकी कहानी बताई गई है।

ताराशंकर बंद्योपाध्याय अक्सर कहा करते थे, "विद्रोहियों के बजाय महात्मा गांधी के व्यक्तित्व ने मुझे ज्यादा प्रभावित किया, यही वजह है कि मेरे उपन्यासों के नायक और पात्र अक्सर आदर्श पुरुष रहे। मेरा मानना है कि क्रांति के बजाय मुझे महात्मा गांधी ने ज्यादा प्रभावित किया।"

ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म 23 जुलाई 1898 को बीरभूम के लाभपुर गांव में हरिदास बंद्योपाध्याय और प्रभाती देवी के घर हुआ था। उन्होंने 65 उपन्यास, 53 किताब, 12 नाटक, 4 निबंध पुस्तक, 4 आत्मकथा, 2 यात्रा वृतांत लिखी। उन्होंने कई गीतों की रचना भी की। उन्हें साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए रवींद्र पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले बंद्योपाध्याय ने आजादी के बाद खुद को साहित्य के लिए समर्पित कर दिया। उनका पहला उपन्यास 'चैताली घुरनी' 1947 में प्रकाशित हुआ था। वह 1952-60 के बीच पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे। उसके बाद 1960-66 के बीच राज्यसभा के सदस्य रहे। साहित्य, राजनीति और समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले बंद्योपाध्याय ने 14 सितंबर 1971 को कलकत्ता में अंतिम सांस ली।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   13 Sept 2024 9:21 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story