मनोरंजन: अंतरिक्ष में भी गूंजीं महान गायिका केसरबाई केरकर की आवाज, रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी 'सुरश्री' की उपाधि

अंतरिक्ष में भी गूंजीं महान गायिका केसरबाई केरकर की आवाज, रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी सुरश्री की उपाधि
हिंदुस्तानी संगीत के हर "राग" का अपना एक भाव होता है। चाहे वह राग भोपाली हो, राग यमन हो या फिर राग भैरवी। अगर इन रागों पर कोई महारत हासिल कर लेता है तो एक संगीतकार को सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता। आज हम जिस शख्सियत की बात कर रहे हैं। उनकी आवाज अंतरिक्ष में भी गूंजीं है। नाम था केसरबाई केरकर।

नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदुस्तानी संगीत के हर "राग" का अपना एक भाव होता है। चाहे वह राग भोपाली हो, राग यमन हो या फिर राग भैरवी। अगर इन रागों पर कोई महारत हासिल कर लेता है तो एक संगीतकार को सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता। आज हम जिस शख्सियत की बात कर रहे हैं। उनकी आवाज अंतरिक्ष में भी गूंजीं है। नाम था केसरबाई केरकर।

देश के प्रतिष्ठित घरानों में शामिल "जयपुर घराने" से संगीत जगत की कई नामचीन हस्तियां निकलीं, इन्हीं में से एक थीं शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर। उनके "राग भैरवी" के कायल कई थे। वह भारत की पहली गायिका हैं, जिनके गाए गीत 'जात कहां हो...' को अंतरिक्ष में भी भेजा गया।

13 जुलाई, 1892 को जन्मीं केसरबाई केरकर ने आठ साल की उम्र में ही संगीत सिखना शुरू कर दिया था। केरकर ने कोल्हापुर में अब्दुल करीम खान के साथ आठ महीने तक शास्त्रीय संगीत का अध्ययन किया। इसके बाद वह साल 1921 में जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लादिया खान की शिष्या बन गईं। करीब 11 साल तक उन्होंने शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग ली। उन्होंने 1930 में पहली बार गायकी में हाथ आजमाया। जब तक अल्लादिया खान जीवित रहे, तब तक केसरबाई केरकर उनसे संगीत की शिक्षा लेती रहीं।

केसरबाई केरकर को पहचान मिली "जात कहां हो" गीत से। हालांकि, उनके हिस्से में बड़ी उपलब्धि उस वक्त आई, जब उनके गाए "जात कहां हो" को अंतरिक्ष यान वायजर-1 और वायजर-2 की मदद से साल 1977 में अंतरिक्ष में भेजा गया। नासा की तरफ से भेजे गए वायजर-1 अंतरिक्ष यान में 12 इंच की सोने की परत चढ़ी तांबे की डिस्क है, जिसमें संगीतकार बीथोवेन, योहान सेबास्तियन बाख और मोजार्ट तक के गाने हैं। इसे नाम दिया गया था 'द साउंड्स ऑफ अर्थ' एल्बम।

शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर को कला क्षेत्र में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें 1953 संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और 1969 मे पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

केसरबाई की आवाज का जादू कवियों और प्रधानमंत्रियों के दिलों तक पहुंचा। कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1938 में उनके संगीत को सुनने के बाद उन्हें 'सुरश्री' की उपाधि दी थी। रवींद्रनाथ टैगोर ने "राग की रानी" (सुरश्री) के रूप में सम्मानित करते हुए उनके बारे में लिखा था, "मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे केसरबाई की गायिकी सुनने का मौका मिला।"

अपनी आवाज से भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया भर में रोशन करने वालीं महान केसरबाई ने 16 सितंबर 1977 को अलविदा कह दिया।

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Created On :   15 Sept 2024 4:11 PM IST

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