राजनीति: भारत औपनिवेशिक विचारों को नकार रहा है उपराष्ट्रपति

भारत औपनिवेशिक विचारों को नकार रहा है  उपराष्ट्रपति
भारत तेजी से औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ रहा है। हम अब पूर्व में पूजनीय औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं। भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से दूर हों, जो स्वतंत्रता के बाद हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हो। सोमवार को यह बातें उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ ने कही। वह नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की 70वीं वार्षिक बैठक को संबोधित कर रहे थे।

नई दिल्ली, 4 नवंबर (आईएएनएस)। भारत तेजी से औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ रहा है। हम अब पूर्व में पूजनीय औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं। भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से दूर हों, जो स्वतंत्रता के बाद हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हो। सोमवार को यह बातें उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ ने कही। वह नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की 70वीं वार्षिक बैठक को संबोधित कर रहे थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए जो औपनिवेशिक मानसिकता से परे हो और स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हों। भारत तेज गति से औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ रहा है। अब चिकित्सा या प्रौद्योगिकी सीखने के लिए अंग्रेज़ी की आवश्यकता नहीं है। देश आज औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहा है। राजपथ अब कर्तव्य पथ है और रेस कोर्स रोड अब लोक कल्याण मार्ग है। नेताजी अब उस कैनोपी के नीचे विराजमान हैं, जहा पहले कभी सम्राट जॉर्ज की प्रतिमा हुआ करती थी। भारतीय नौसेना के चिन्ह को बदलकर उसमें तिरंगे को समाहित किया गया है। औपनिवेशिक युग के 1500 कानून अब कानून की पुस्तकों में नहीं हैं। नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त किया है। यह एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी बदलाव है कि ‘दंड’ संहिता अब ‘न्याय’ संहिता बन गई है, जो पीड़ितों की हितों की रक्षा, अभियोजन को कुशलतापूर्वक पूर्ण करने और अन्य कई पहलुओं में सुधार पर केंद्रित है।”

धनखड़ ने कहा कि लोक अधिकारियों में सॉफ्ट स्किल्स, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सांस्कृतिक क्षमता का विकास महत्वपूर्ण है ताकि अधिकारी हाशिये पर मौजूद कमजोर वर्ग की कठिनाइयों को समझ कर ऐसी नीतियां तैयार करें जिनसे चुनौतियों का समाधान हो।

धनखड़ ने कहा, “जैसे-जैसे हम शासन के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, डेटा हमारे निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं के अग्रिम पंक्ति में होना चाहिए। विभिन्न कल्याणकारी नीतियों के प्रभाव को समझने के लिए प्रमाण आधारित अध्ययन आवश्यक हैं। अनुभवजन्य साक्ष्यों पर आधारित मूल्यांकन न केवल हमारे संस्थानों की विश्वसनीयता को बढ़ाएगा बल्कि शासन में सार्वजनिक विश्वास को भी बरकरार रखेगा। यह उन लोगों के लिए एक उपयुक्त जवाब भी साबित होगा जो भारत के अभूतपूर्व विकास को स्वीकार नहीं करते और हमारे संस्थानों को कलंकित करने का कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। जब हम प्रौद्योगिकी को समाहित करते हैं तो हमें साइबर सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता को प्राथमिकता देनी चाहिए। नागरिकों के बीच विश्वास का वातावरण निर्मित होना चाहिए, जहां वे महसूस करें कि उनकी जानकारी सुरक्षित है और जिम्मेदारी से उपयोग की जा रही है।”

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   4 Nov 2024 7:46 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story