राष्ट्रीय: ग्वालियर तिघरा बांध क्षेत्र को जैव विविधता क्षेत्र बनाएंगे पुलिस के जवान

भोपाल, 6 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में जल संरचनाओं से लेकर पर्यावरण को बचाने की मुहिम चल रही है। इसी क्रम में सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले पुलिसकर्मी भी इससे जुड़ रहे हैं। ग्वालियर के तिघरा बांध के करीब का क्षेत्र कभी जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान हुआ करता था, मगर अब वह लगभग मैदानी इलाकों में बदल गया है।
इस इलाके को जैव विविधता वाला क्षेत्र बनाने के लिए पुलिस जवान मैदान में उतरने वाले हैं। इसकी वैज्ञानिक कार्य योजना भी बनाई जा चुकी है। ग्वालियर के बड़े हिस्से की प्यास बुझाने का स्रोत है तिघरा बांध। इसे ग्वालियर की जीवन रेखा भी माना जाता है। इस बांध के करीब पुलिस प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना वर्ष 1960 में आईपीएस के.एफ. रुस्तम द्वारा की गई थी, इसका भू-भाग बहुत बड़ा है, यह 172 एकड़ में फैला हुआ है।
इसके बावजूद यह इलाका सूखा, बंजर, वृक्षविहीन और जला हुआ नजर आता है। अब इसकी तस्वीर बदलने के लिए जैव विविधता वाला क्षेत्र बनाने की एक कार्य योजना बनाई गई है। पुलिस विभाग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) राजा बाबू सिंह ने बताया कि इस सत्र में 800 रिक्रूट कांस्टेबलों को नौ महीने की बेसिक ट्रेनिंग यहीं मिलेगी, इसलिए शनिवार और रविवार को श्रमदान के लिए बहुत अधिक कार्यबल होगा। इसे ध्यान में रखकर वैज्ञानिक कार्य योजना बनाई गई है।
बताया गया है कि पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता वाला क्षेत्र बनाने के लिए यहां सबसे पहले मौजूदा आक्रामक पौधों की प्रजातियों को जड़ से उखाड़ा जाएगा। कम ऊंचाई की मेढ़ बनाई जाएगी, गड्ढे खोदकर देशी पौधे रोपे जाएंगे। जो नाइट्रोजन फिक्सिंग पौधे (जैसे अगस्त्य) और कार्बन सोखने वाली घास (जैसे वेटिवर, नेपियर, सेट्रोनिला, बांस आदि) का मिश्रण लगाया जाएगा।
इसके अलावा बड़े देशी या फलदार पेड़ के बगल में 2-3 नाइट्रोजन फिक्सिंग और मल्च उत्पादक (पत्तियों की अधिकता) पौधे लगाए जाएंगे। इस योजना को आगे बढ़ाते हुए पौधा रोपड़ के बाद घास लगेगी, जिससे कीटों, मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरों, पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां निश्चित रूप से वापस आ जाएंगी।
इतना ही नहीं, यह उम्मीद की जा रही है कि इसके बाद छोटे जीव जैसे मॉनिटर छिपकली, गिलहरी, सांप, नेवला, लोमड़ी, सियार वापस आएंगे और इसे अपना घर बनाएंगे। साथ में पूरा क्षेत्र जंगल के तौर पर विकसित होने पर जंगली बिल्लियां, गिद्ध, लकड़बग्घे वापस आकर यहां अपना आशियाना बना सकते हैं।
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Created On :   6 Jun 2025 1:30 PM IST