विज्ञान/प्रौद्योगिकी: सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मखाना में जैव-सक्रिय यौगिक की खोज के लिए मिला पेटेंट

सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मखाना में जैव-सक्रिय यौगिक की खोज के लिए मिला पेटेंट
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को केंद्र सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा मखाना में एक नवीन जैव-सक्रिय यौगिक की पहचान के लिए पेटेंट प्रदान किया गया। माना जा रहा है कि यह खोज कृषि नवाचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है। यह बिहार के किसानों के लिए नए आर्थिक अवसरों के द्वार खोलेगी।

भागलपुर, 3 जुलाई (आईएएनएस)। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को केंद्र सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा मखाना में एक नवीन जैव-सक्रिय यौगिक की पहचान के लिए पेटेंट प्रदान किया गया। माना जा रहा है कि यह खोज कृषि नवाचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है। यह बिहार के किसानों के लिए नए आर्थिक अवसरों के द्वार खोलेगी।

जानकारी के अनुसार, यह शोध कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के नेतृत्व में संपन्न हुआ। यह सफलता अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. सिंह के मार्गदर्शन में विकसित मजबूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हो पाई। इस शोध कार्य का नेतृत्व पादप जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. वी. शाजिदा बानो, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रीतम गांगुली और उद्यान विभाग के डॉ. अनिल कुमार ने किया।

यह शोध कार्य बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशाला में किया गया। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह यौगिक एंटीमाइक्रोबियल और कैंसर रोधी गतिविधियों के लिए संभावित रूप से उपयोगी है। इसकी क्रिया विधि में हाइड्रोजन और हैलोजन बॉन्ड बनाना शामिल है, जो विभिन्न जैव-रासायनिक मार्गों को प्रभावित कर सकता है।

इस पेटेंट से जुड़े अनुसंधान का लाभ बिहार के उन किसानों को विशेष रूप से मिलेगा जो मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्रों में मखाना की खेती करते हैं। इससे मखाना की व्यावसायिक कीमत में वृद्धि होगी और इसके कच्चे और प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए प्रीमियम बाजार बनेंगे तथा एग्रीप्रेन्योरशिप और स्टार्टअप्स को पोषण-आधारित उत्पादों के क्षेत्र में प्रोत्साहन मिलेगा। बिहार के जीआई-टैग प्राप्त मखाना की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान और सुदृढ़ होगी।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा, "यह पेटेंट केवल एक वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि हमारे किसानों की आजीविका के लिए एक बदलाव की घड़ी है। बिहार को मखाना के लिए जाना जाता रहा है और अब यह प्राकृतिक जैव-सक्रिय यौगिकों के माध्यम से आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में योगदान के लिए भी जाना जाएगा।"

इस खोज के लिए मिला पेटेंट यह दर्शाता है कि कैसे उन्नत शोध पारंपरिक फसलों को वैश्विक महत्व का स्रोत बना सकता है। आगे के अनुसंधान और औद्योगिक सहयोग से यह पेटेंट नई दवाइयों, पोषण अनुपूरक और प्राकृतिक उपचारों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर विज्ञान में उत्कृष्टता, किसान-केंद्रित नवाचार, और सतत कृषि विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है, और देश भर में अन्य संस्थानों के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में उभर रहा है।

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Created On :   3 July 2025 7:13 PM IST

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