एथलेटिक्स: अनामिका हिंदी कविता का सशक्त स्वर, जो मानवीय सरोकार और स्त्री-अस्मिता को देती हैं नई उड़ान

नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)। हिंदी कविता और साहित्य के संसार में कवयित्री अनामिका का नाम एक सशक्त और संवेदनशील स्वर के रूप में लिया जाता है। 17 अगस्त 1961 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मी अनामिका ने अपने जीवन और लेखन से न केवल कविता को एक नई दिशा दी, बल्कि स्त्री-विमर्श, सामाजिक चेतना और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को भी अपनी रचनाओं के केंद्र में रखा। आज उनके जन्मदिन पर हिंदी जगत उन्हें स्मरण कर गौरव अनुभव करता है।
अनामिका का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जहां शिक्षा और साहित्य का गहरा माहौल था। पिता बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, और माता भी सुशिक्षित थीं। वहीं, बड़े भाई ने उन्हें किताबों की दुनिया से परिचित कराया। यही कारण था कि बचपन से ही अनामिका के भीतर लेखन-पठन का संस्कार गहराई तक उतर गया।
उनकी आरंभिक शिक्षा मुजफ्फरपुर में हुई और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने देश की राजधानी दिल्ली का रुख किया। पटना, लखनऊ और दिल्ली विश्वविद्यालयों से उन्होंने पढ़ाई की और युद्धोत्तर अमेरिकी महिला कवियों पर शोध के साथ डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट कार्य पूरा किया।
अनामिका का पहला काव्य-संग्रह 'गलत पते की चिट्ठी' (1978) था। इसके बाद उनके कई संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें 'समय के शहर में', 'बीजाक्षर', 'अनुष्टुप', 'कविता में औरत', 'खुरदरी हथेलियां', 'दूब-धान', 'टोकरी में दिगन्त', 'पानी को सब याद था' शामिल हैं।
खास बात यह है कि उनकी कविताओं में भावुक आत्मानुभूति भी है और वैचारिक व्यापकता भी। वे एक ओर स्त्री की अस्मिता, अधिकार और अस्तित्व पर सवाल उठाती हैं, तो दूसरी ओर सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों को गहराई से दर्ज करती हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में हुआ है।
अनामिका ने केवल कविता ही नहीं, बल्कि गद्य में भी उल्लेखनीय काम किया। उनके उपन्यासों में 'पर कौन सुनेगा', 'मन कृष्ण मन अर्जुन', 'अवांतर कथा', 'दस द्वारे का पिंजरा', 'तिनका तिनके के पास', 'आईनासाज' विशेष तौर पर चर्चित रहे। इसके अलावा, कहानियों का संग्रह 'प्रतिनायक' भी पाठकों के बीच लोकप्रिय हुआ। आलोचना और निबंधों के क्षेत्र में भी उनका योगदान गहरा है।
अनामिका को उनके साहित्यिक अवदान के लिए अनेक सम्मान मिले। उन्हें भारत भूषण कविता पुरस्कार (1996), गिरिजा कुमार माथुर सम्मान (1998), साहित्यकार सम्मान (1998), परंपरा सम्मान (2001), साहित्य सेतु सम्मान (2004) और साहित्य अकादेमी पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया।
अनामिका की कविताओं में नारीवादी दृष्टि के साथ-साथ गहरी राजनीतिक चेतना और आत्मचिंतन का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। उनकी कविता सीधे प्रतिरोध का स्वर न होकर, सूक्ष्म प्रश्नों और मानवीय जटिलताओं की पड़ताल करती है। यही कारण है कि वे समकालीन हिंदी कविता में एक अलग पहचान रखती हैं। अनामिका हिंदी साहित्य में स्त्री-अस्मिता और मानवीय सरोकारों की सशक्त आवाज हैं। उनकी लेखनी ने नई पीढ़ी की महिलाओं को अपनी पहचान, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की ताकत दी है।
अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|
Created On :   16 Aug 2025 4:55 PM IST