आईएएनएस स्पेशल: स्मृति शेष उर्दू शायरी का वो शहंशाह अहमद फराज, जिसने दिल और हुकूमत को दम से ललकारा

स्मृति शेष  उर्दू शायरी का वो शहंशाह अहमद फराज, जिसने दिल और हुकूमत को दम से ललकारा
25 अगस्त 2008 को जब उर्दू अदब का यह चमकता सितारा हमेशा के लिए ओझल हो गया, तो उसके साथ गजलों का एक ऐसा दौर भी खत्म हो गया जिसने मोहब्बत और बगावत को एक ही सांस में जिया था। अहमद फराज सिर्फ शायर नहीं थे, वे एक अहसास थे, एक आवाज थे और उस जमाने की जुबान थे, जिसमें मोहब्बत का दर्द और हुकूमत से लड़ने का हौसला एक साथ गूंजता था।

नई दिल्ली, 24 अगस्त (आईएएनएस)। 25 अगस्त 2008 को जब उर्दू अदब का यह चमकता सितारा हमेशा के लिए ओझल हो गया, तो उसके साथ गजलों का एक ऐसा दौर भी खत्म हो गया जिसने मोहब्बत और बगावत को एक ही सांस में जिया था। अहमद फराज सिर्फ शायर नहीं थे, वे एक अहसास थे, एक आवाज थे और उस जमाने की जुबान थे, जिसमें मोहब्बत का दर्द और हुकूमत से लड़ने का हौसला एक साथ गूंजता था।

12 जनवरी 1931 को पाकिस्तान के कोहाट में पैदा हुए अहमद फराज का असल नाम सैयद अहमद शाह था। शुरुआती दौर में वे 'अहमद शाह कोहाटी' के नाम से शायरी करते थे, लेकिन उस्ताद फैज अहमद फैज के मश्वरे ने उन्हें 'फराज' बना दिया। यही नाम आगे चलकर उर्दू अदब का पर्याय बन गया।

फराज की मातृभाषा पश्तो थी, लेकिन उर्दू से उनका रिश्ता दिल का था। पिता गणित और विज्ञान में उन्हें आगे देखना चाहते थे, मगर फराज का दिल शेर-ओ-शायरी में धड़कता था। उन्होंने पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से उर्दू और फारसी में एमए किया और फिर रेडियो पाकिस्तान से करियर की शुरुआत की। बाद में वे पेशावर यूनिवर्सिटी में उर्दू के प्रोफेसर बने।

फराज का अदब सिर्फ महबूब के नाम खत नहीं था, बल्कि सत्ता से सीधी टक्कर भी था। जनरल जिया-उल-हक की तानाशाही पर उनकी बेबाक शायरी ने उन्हें जेल तक पहुंचाया। उन्हें छह साल का वक्त कनाडा और यूरोप में निर्वासन झेलना पड़ा, लेकिन परदेस की गलियों से भी उनकी आवाज़ वतन तक पहुंचती रही। उनकी शायरी के तेवर में इंकलाब था, उनके लफ्जों में दर्द था, और उनकी गजलों में मोहब्बत का वह रंग था जो कभी फीका नहीं पड़ा।

फराज ने मोहब्बत को जितनी नजाकत से छुआ, उतनी ही शिद्दत से जिया भी। उनकी गजलें इश्क के उन एहसासात को जुबान देती हैं जिन्हें लोग महसूस तो करते थे, मगर कह नहीं पाते थे। यही वजह है कि आज भी उनके अशआर महफिलों में गूंजते हैं और मोहब्बत के हर दर्दनाक मोड़ पर उनकी शायरी याद आती है। उनकी शायरी में कभी रूमानी एहसास था, तो कभी जुदाई का गम, कभी इंकलाब की गूंज थी, तो कभी हकीकत का आईना।

फराज की शख्सियत सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं थी। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के मुशायरों में उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी। उनकी गजलें जब उनकी आवाज में बहतीं, तो महफिलों में सन्नाटा छा जाता और फिर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठती। कहा जाता है कि मुशायरों में जितना प्यार और सम्मान फराज को मिला, उतना शायद ही किसी और शायर को भी मिला हो।

फराज को कई बड़े पुरस्कार मिले। इस लिस्ट में 'आदमजी अवार्ड', 'अबासीन अवार्ड', भारत का 'फिराक गोरखपुरी अवार्ड', कनाडा का 'एकेडमी ऑफ उर्दू लिट्रेचर अवार्ड', 'टाटा अवार्ड', पाकिस्तान का 'कमाल-ए-फ़न अवार्ड' और 'हिलाल-ए-इम्तियाज' शामिल हैं।

उनकी प्रमुख कृतियों में 'जानां-जानां', 'तन्हा तन्हा', 'दर्द-ए-आशोब', 'गजल बहाना करो', 'बेआवाज गली कूचों में', 'नायाफ्त', 'नाबीना शहर में आईना' जैसी किताबें शामिल हैं।

फराज की शायरी का जादू आज भी बरकरार है, और इसके पीछे की वजह यह है कि उसमें हर दौर के इंसान की दास्तान है। मोहब्बत करने वाला उनमें अपना दिल देखता है, तन्हाई का मारा उनमें अपनी खामोशी सुनता है, और हुकूमत से टकराने वाला उनमें अपनी आवाज को पाता है।

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Created On :   24 Aug 2025 12:21 PM IST

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