आईएएनएस स्पेशल: ये दिल मांगे मोर करगिल के 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा की अमर गाथा

ये दिल मांगे मोर करगिल के शेरशाह कैप्टन विक्रम बत्रा की अमर गाथा
कुछ वीर ऐसे होते हैं, जिनकी कहानियां किताबों में दर्ज होने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के दिलों में ज्वाला बनकर जलती हैं। 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा उन्हीं में से एक हैं। करगिल युद्ध का यह 'शेर' आज भी अपने अदम्य साहस, जोशीले हौसले और अटूट जज़्बे से देश को प्रेरित करता है।

नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। कुछ वीर ऐसे होते हैं, जिनकी कहानियां किताबों में दर्ज होने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के दिलों में ज्वाला बनकर जलती हैं। 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा उन्हीं में से एक हैं। करगिल युद्ध का यह 'शेर' आज भी अपने अदम्य साहस, जोशीले हौसले और अटूट जज़्बे से देश को प्रेरित करता है।

विक्रम का जन्म गिरधारी लाल बत्रा और कमल कांता बत्रा के घर हुआ। दो बेटियों के बाद जब जुड़वां बेटे हुए, तो माता-पिता ने उन्हें प्यार से 'लव-कुश' नाम दिया। विक्रम यानी 'लव' और उनके भाई विशाल यानी 'कुश'। बचपन से ही दोनों पढ़ाई और खेलों में अव्वल थे, लेकिन विक्रम की अलग पहचान उनका निडर स्वभाव था। टीवी पर 'परमवीर चक्र' सीरियल देखकर वे अक्सर वीरता की कहानियों पर चर्चा करते। टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी होने के साथ-साथ वे पढ़ाई में हमेशा प्रथम आते। कॉलेज में एनसीसी कैडेट रहते हुए उन्होंने नॉर्थ जोन में 'बेस्ट कैडेट' का खिताब जीता। मर्चेंट नेवी का सुनहरा ऑफर ठुकराकर उन्होंने सेना की वर्दी पहनने का सपना चुना।

1996 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद विक्रम बत्रा को 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट की नियुक्ति मिली। 1999 में जब पाकिस्तान ने करगिल की चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया, तो भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया। यही वह समय था जब विक्रम बत्रा ने इतिहास रचा। सबसे पहले प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने का जिम्मा मिला। यह दुश्मनों की मजबूत चौकी थी, इस पर जीत दर्ज कर पाना असंभव माना जा रहा था, लेकिन उस समय विक्रम ने अपने साथियों से कहा था, "या तो तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर… लेकिन आऊंगा जरूर।"

दुश्मनों की मशीन गन की बौछार के बीच, उन्होंने अपने सैनिकों के साथ खड़ी चट्टान पर चढ़ाई की। ग्रेनेड फेंककर दुश्मनों की चौकी ध्वस्त कर दी और हाथ से हाथ की लड़ाई में तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। भले ही घायल हुए, लेकिन मिशन पूरा होने तक मोर्चे पर डटे रहे। तड़के 20 जून 1999 को 17 हजार फीट की ऊंचाई पर जब प्वाइंट 5140 फतह हुआ, तो रेडियो पर उनकी आवाज गूंजी, वो आवाज थी- "ये दिल मांगे मोर!" यह नारा उस दौर में सिर्फ पेप्सी का विज्ञापन नहीं रहा, बल्कि पूरे देश का जज्बा बन गया। इसके बाद विक्रम बत्रा और उनकी बटालियन ने प्वाइंट 5100, 4700, जंक्शन पीक और 'थ्री पिम्पल्स' जैसे दुर्गम मोर्चे पर भी जीत हासिल कर लिए। उन्हें दुश्मन तक ने 'शेरशाह' कहा, क्योंकि उनकी बहादुरी का खौफ पाकिस्तान की सेना में फैल चुका था।

6 जुलाई 1999 को उन्हें प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का आदेश मिला। यह जगह आज 'बत्रा टॉप' के नाम से जानी जाती है। सुबह होते-होते उन्होंने मोर्चा संभाल लिया। लेकिन तभी उनके एक साथी अधिकारी कैप्टन नवीन नागप्पा गंभीर रूप से घायल हो गए। विक्रम ने उन्हें खुद सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। जब एक जवान को गोली लगी, तो उसे बचाने के लिए विक्रम दुश्मन की गोलियों की बौछार में कूद पड़े। इसी दौरान एक स्नाइपर की गोली उनके सीने में लगी। आखिरी सांस लेते हुए उन्होंने अपने रेजिमेंट का जयकारा लगाया –'जय माता दी!'

7 जुलाई 1999 को देश ने अपने इस सपूत खो दिया, लेकिन उनके बलिदान ने प्वाइंट 4875 पर तिरंगा लहरा दिया।

कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता और नेतृत्व की मिसाल को देखते हुए, उन्हें भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान 'परमवीर चक्र' मरणोपरांत 15 अगस्त 1999 को प्रदान किया गया। राष्ट्रपति केआर नारायणन ने यह सम्मान उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा को दिया।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   8 Sept 2025 5:40 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story