राष्ट्रीय: जिस 'ब्लैक लेडी' की चाहत में कलम से जादूगरी दिखाते रहे अनजान साहब, बेटे ने उनकी वो मुराद की थी पूरी

जिस ब्लैक लेडी की चाहत में कलम से जादूगरी दिखाते रहे अनजान साहब, बेटे ने उनकी वो मुराद की थी पूरी
यह कहानी है कलम के जादूगर और मशहूर गीतकार लालजी पांडेय यानी 'अनजान' साहब की। एक जमाने में अनजान साहब वे हस्ती हुआ करते थे, जिन्होंने अपनी कलम से लिखे गीतों से सबको दीवाना बनाया। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कोई नहीं था, जो उनके गानों से अंजान रहा हो। इतने मशहूर होने के बावजूद अनजान साहब को जिंदगी में जिसकी तलाश थी, वह थी 'ब्लैक लेडी'।

नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। यह कहानी है कलम के जादूगर और मशहूर गीतकार लालजी पांडेय यानी 'अनजान' साहब की। एक जमाने में अनजान साहब वे हस्ती हुआ करते थे, जिन्होंने अपनी कलम से लिखे गीतों से सबको दीवाना बनाया। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कोई नहीं था, जो उनके गानों से अंजान रहा हो। इतने मशहूर होने के बावजूद अनजान साहब को जिंदगी में जिसकी तलाश थी, वह थी 'ब्लैक लेडी'।

"ये जो 'ब्लैक लेडी' है, उससे बहुत मोहब्बत थी, मैं बहुत चाहता था कि मुझे मिले, मैं बहुत डिजर्विंग था, लेकिन कई बार होता है कि भाग्य साथ नहीं देता।" जिंदगी में यह अनजान साहब का दर्द था, जो चकाचौंध वाली फिल्मी दुनिया में शायद कहीं दब चुका था। एक समय पर, जब सामने फिल्मी सितारों की महफिल थी और उनके बीच खड़े होकर वे यह सब कुछ बयां कर रहे थे।

यह उस समय की बात थी, जब अनजान साहब अपने बेटे समीर अनजान को फिल्मफेयर अवॉर्ड देने पहुंचे थे। एक उम्र पर आकर भी अनजान साहब मंच पर बिना सहारे खड़े थे। बातों में उस 'ब्लैक लेडी' को हासिल न कर पाने का अफसोस था, लेकिन उससे ज्यादा चेहरे पर खुशी और गर्व से सीना चौड़ा था, क्योंकि बेटे को वह सम्मान मिल रहा था, जिनके लिए उन्होंने जिंदगी खपाई थी।

'ब्लैक लेडी' के विषय में उनकी कहानी और बातों को समीर अनजान ने एक इंटरव्यू में बयां किया था।

खैर, स्पष्ट करना जरूरी है कि वह 'ब्लैक लेडी' थी, फिल्मफेयर अवॉर्ड, जो भारतीय सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ सम्मान है। इस पर बनी मूर्ति एक महिला को दर्शाती है, जिसकी बाहें एक नृत्य शैली में ऊपर उठी हुई हैं और उसकी उंगलियां एक-दूसरे को छू रही हैं। इसे ही आमतौर पर 'द ब्लैक लेडी' कहा जाता है।

फिल्मों में तमाम हिट गाने देने के बावजूद अनजान साहब को यह अवॉर्ड नहीं मिला था।

अगर करियर की बात करें तो फिल्मों में अनजान साहब की शुरुआत इस तरह थी कि वे लगातार व्यस्त रहे। फिल्म 'गोदान', जिसमें राजकुमार ने अभिनय किया था, उनकी जिंदगी में अहमियत लेकर आई, क्योंकि यहां से उन्हें गुरुदत्त की फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' में मौका मिला था। उन्होंने ऐसे गाने लिखे थे, जो अनजान साहब को अमर कर गए।

वह वक्त भी आया, जब उनकी दोस्ती संगीतकार कल्याणजी और आनंद जी के साथ बढ़ी। फिर फिल्म 'दो अंजाने' में उनके गाने जज्बात लिए सबके दिलों में घर कर गए। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन थे। इसके बाद अमिताभ और अनजान साहब की जोड़ी ऐसी जमी कि 'खून पसीना', 'मुकद्दर का सिकंदर' और 'डॉन' जैसी फिल्मों के सभी गाने जबरदस्त हिट हुए।

इनसे अनजान साहब को वो मुकाम मिला, जिसकी तलाश में वे निकले थे। 1990 के दशक में आई फिल्म 'शोला और शबनम' के गाने भी हिट थे।

मगर, 13 सितंबर 1997, यह दिन फिल्मी जगत के लिए वह घड़ी लेकर आया था, जब गीतों के 'अनजान' को सबसे दूर कर गया था। हालांकि, भारतीय सिनेमा जगत में अनजान साहब का नाम आज भी गर्व से लिया जाता है।

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Created On :   12 Sept 2025 8:49 PM IST

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