धर्म: सिक्किम बोधगया मंदिर अधिनियम निरस्तीकरण की मांग को लेकर गंगटोक में बौद्धों का जोरदार प्रदर्शन

सिक्किम बोधगया मंदिर अधिनियम निरस्तीकरण की मांग को लेकर गंगटोक में बौद्धों का जोरदार प्रदर्शन
बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (बीटी अधिनियम) को निरस्त करने की मांग को लेकर चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के तहत रविवार को सिक्किम की राजधानी गंगटोक में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। अखिल भारतीय बौद्ध मंच (एआईबीएफ) के नेतृत्व में आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों बौद्ध भिक्षु, स्थानीय निवासी और संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

गंगटोक, 21 सितंबर (आईएएनएस)। बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (बीटी अधिनियम) को निरस्त करने की मांग को लेकर चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के तहत रविवार को सिक्किम की राजधानी गंगटोक में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। अखिल भारतीय बौद्ध मंच (एआईबीएफ) के नेतृत्व में आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों बौद्ध भिक्षु, स्थानीय निवासी और संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

यह आंदोलन बोधगया स्थित महाबोधि महाविहार, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, के पूर्ण प्रबंधन अधिकारों को बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग कर रहा है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल होने के बावजूद, इस पवित्र स्थल का प्रबंधन 1949 के अधिनियम के तहत एक समिति के हाथों में है, जो बौद्धों को अल्पमत में रखता है।

1949 में बिहार में बौद्ध आबादी कम होने के कारण बनाए गए इस अधिनियम के तहत आठ सदस्यीय प्रबंधन समिति का गठन किया गया है, जिसमें चार बौद्ध और चार गैर-बौद्ध सदस्य होते हैं। जिला मजिस्ट्रेट, जो हमेशा गैर-बौद्ध होता है, इसका अध्यक्ष होता है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह संरचना बौद्धों को उनके सबसे पवित्र धर्म स्थल पर वैध नियंत्रण से वंचित करती है और संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करती है।

इतिहासकारों के अनुसार, 13वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद बौद्ध धर्म का पतन हुआ और 1590 में एक हिंदू महंत ने मठ की स्थापना कर प्रबंधन पर कब्जा कर लिया। स्वतंत्रता के बाद 1949 का अधिनियम हिंदू-बौद्ध विवादों को सुलझाने के लिए लाया गया, लेकिन अब यह अप्रासंगिक माना जा रहा है।

एआईबीएफ के महासचिव आकाश लामा ने रैली को संबोधित करते हुए इस मुद्दे को राष्ट्रीय बताया। उन्होंने कहा, "बोधगया दुनिया भर के बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थल है। फिर भी, 1949 का अधिनियम बौद्धों को प्रबंधन में अल्पसंख्यक बनाए रखता है। हम तीन साल से भूख हड़ताल, हस्ताक्षर अभियान और कानूनी याचिकाओं के जरिए शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं। 12 फरवरी 2025 से बोधगया और पूरे भारत में भूख हड़ताल शुरू हुई। 10 अगस्त को नागपुर से राष्ट्रव्यापी मशाल यात्रा निकाली गई। अब तक एक लाख से ज्यादा हस्ताक्षर इकट्ठे हो चुके हैं और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं लंबित हैं, जिनकी अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी।" लामा ने बताया कि जून 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका को खारिज कर हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया था, लेकिन आंदोलन तेज जारी है।

सिक्किम में यह रैली राज्य की बौद्ध विरासत के कारण विशेष महत्वपूर्ण है। सिक्किम दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विधानसभा में बौद्धों के लिए एक सीट आरक्षित है, जो समुदाय को संवैधानिक मान्यता देता है। सिक्किम भूटिया लेप्चा सर्वोच्च समिति (एसआईबीएलएसी) के सलाहकार एसडी शेरिंग लेप्चा ने रैली में कहा, "सिक्किम में बौद्ध आबादी बहुत बड़ी है। इस मांग का समर्थन करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है। हजारों सिक्किमी तीर्थयात्री हर साल बोधगया जाते हैं। बौद्धों को अपने पवित्र स्थल का प्रबंधन खुद करने का अधिकार मिलना चाहिए।"

बता दें कि यह प्रदर्शन बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, झारखंड, पश्चिम बंगाल और लद्दाख में फैले राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   21 Sept 2025 5:45 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story