जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों में “चिड़िदाग” नामक रूढ़िवादी परंपरा के तहत कई बच्चों को गर्म सीकों से दागा

जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों में “चिड़िदाग” नामक रूढ़िवादी परंपरा के तहत कई बच्चों को गर्म सीकों से दागा
जमशेदपुर, 16 जनवरी (आईएएनएस)। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के आदिवासी बहुल ग्रामीण इलाकों में मकर संक्रांति के अगले दिन “चिड़िदाग” नामक रूढ़िवादी परंपरा के तहत कई बच्चों को लोहे की गर्म सीकों से दागा गया।

जमशेदपुर, 16 जनवरी (आईएएनएस)। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के आदिवासी बहुल ग्रामीण इलाकों में मकर संक्रांति के अगले दिन “चिड़िदाग” नामक रूढ़िवादी परंपरा के तहत कई बच्चों को लोहे की गर्म सीकों से दागा गया।

नौनिहालों को भविष्य की बीमारियों से कथित तौर पर बचाने के नाम पर दर्द, जलन और तकलीफ देने वाली यह विचित्र रूढ़िवादी परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।

आदिवासी समाज की मान्यता है कि “चिड़िदाग” करवाने से बच्चों को पेट सहित अन्य प्रकार की शारीरिक बीमारियों से आजीवन सुरक्षा मिलती है। इसे लोग अखंड जात्रा के नाम से भी जानते हैं।

प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अगले दिन लोग अपने बच्चों को लेकर गांव के पुरोहित के पास पहुंचते हैं। पुरोहित जमीन पर बैठकर लोहा या तांबे की सींक को लकड़ी की आग में गर्म करते हैं और इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ बच्चों की नाभी के पास चार बार दागा जाता है।

हैरानी की बात यह है कि बच्चों की चीख-चिल्लाहट के बावजूद लोग ऐसा करवाते हैं।

जमशेदपुर के पास स्थित करनडीह निवासी पुरोहित छोटू सरदार बताते हैं कि उनके दादा, परदारा चिड़ीदाग की परंपरा निभाते आ रहे हैं। 21 दिन से ऊपर की उम्र के बच्चों से लेकर किसी भी उम्र के व्यक्ति को “चिड़िदाग” दिया जा सकता है। कई लोगों को पैर, कमर दर्द से निजात के नाम पर भी “चिड़िदाग” दिया जाता है। हालांकि, शिक्षा के प्रसार के साथ अब कई लोग जागरूक हुए हैं और इस तकलीफदेह रूढ़ि से दूर हो रहे हैं।

--आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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Created On :   16 Jan 2024 6:13 PM IST

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