रक्षा: 1965 का भारत-पाक युद्ध स्वतंत्रता के बाद का निर्णायक सैन्य संघर्ष

1965 का भारत-पाक युद्ध स्वतंत्रता के बाद का निर्णायक सैन्य संघर्ष
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति बदलने के प्रयास में घुसपैठ और सैन्य आक्रमण का रास्ता अपनाया।

नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस) भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ 1965 का युद्ध स्वतंत्रता के बाद भारत के सैन्य इतिहास का एक निर्णायक संघर्ष था। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति बदलने के प्रयास में घुसपैठ और सैन्य आक्रमण का रास्ता अपनाया।

अप्रैल 1965 में रण कच्छ से शुरू हुई झड़पें सितंबर तक बढ़कर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पूर्ण युद्ध का रूप ले चुकी थीं। इस युद्ध ने भारतीय सशस्त्र बलों के साहस, धैर्य और क्षमता को प्रमाणित किया, जिन्होंने न केवल दुश्मन के हमले को विफल किया बल्कि उसे उसकी ही भूमि पर जवाब भी दिया। 1965 भारत-पाक युद्ध की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में शुक्रवार को युद्ध वीरों के साथ रक्षा मंत्रालय द्वारा एक विशेष संवाद आयोजित किया जाएगा।

इस अवसर पर युद्ध के दिग्गज अपने रणनीतिक विचार और अनुभव साझा करेंगे। कार्यक्रम में रक्षा मंत्री, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तथा थल सेनाध्यक्ष उपस्थित रहेंगे। सैन्य अधिकारी बताते हैं कि 1965 युद्ध का पहला चरण रण कच्छ के वीरान इलाके में हुआ, जहां पाकिस्तानी सेना ने भारत की प्रतिक्रिया परखने के लिए कार्रवाई की।

इसके बाद पाकिस्तान ने अगस्त में ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया, जिसके तहत हजारों घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर भेजकर विद्रोह भड़काने की कोशिश की गई। भारतीय सेना ने तुरंत कार्रवाई करते हुए स्थिति पर काबू पाया और 28 अगस्त को हाजी पीर दर्रा पर कब्जा कर लिया, जिससे घुसपैठ के अहम रास्ते बंद हो गए। जिब्राल्टर की विफलता के बाद पाकिस्तान ने सितंबर की शुरुआत में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम चलाया, जिसका लक्ष्य अखनूर पर कब्जा कर कश्मीर घाटी से भारत का संपर्क काटना था।

साथ ही, पाक सेना ने पंजाब के खेमकरण क्षेत्र में टैंक आक्रमण कर अमृतसर तक पहुंचने की कोशिश की। लेकिन भारतीय सेना ने इस लड़ाई में दुश्मन की टैंक ब्रिगेड को भारी नुकसान पहुंचाया और 100 से अधिक पैटन टैंकों को नष्ट या उन पर कब्जा कर लिया। इस जीत ने खेमकरण को पैटन का कब्रिस्तान बना दिया। 6 सितम्बर 1965 को भारत ने जवाबी आक्रमण करते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की और लाहौर तथा सियालकोट की दिशा में तेजी से बढ़ा। डोगराई, फिल्लौरा और चविंडा की लड़ाइयों में भारतीय सैनिकों ने अद्वितीय वीरता दिखाई। डोगराई में भारतीय सेना लाहौर के बाहरी हिस्सों तक पहुंच गई।

राजस्थान मोर्चे पर भी भारतीय सैनिकों ने गहरा प्रवेश कर मुनाबाव और गदरा रोड जैसे क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिए। ये लड़ाई लड़ने वाले कई योद्धा शुक्रवार को अपने अनुभव साझा करेंगे। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक 1965 के युद्ध में तीनों मोर्चों—पंजाब, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान, पर भारतीय सेना ने बहादुरी से लड़ते हुए दुश्मन के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया। 23 सितम्बर 1965 को संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर युद्धविराम लागू हुआ। पाकिस्तान की घुसपैठ और आक्रामक कार्रवाइयों को निर्णायक रूप से नाकाम कर दिया गया।

भारत ने अपनी सेनाओं की क्षमता पर नया विश्वास हासिल किया और दुनिया के सामने उनके शौर्य को सिद्ध किया। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने न केवल पाकिस्तान के हमलों को विफल किया, बल्कि हाजी पीर जैसे रणनीतिक क्षेत्र पर कब्जा किया, पाकिस्तानी टैंकों का अभिमान तोड़ा और लाहौर-सियालकोट तक अपनी पहुंच दिखाकर आक्रामक क्षमता साबित की। हाजी पीर, डोगराई और फिल्लौरा की लड़ाइयां आज भी भारतीय सेना के बलिदान और साहस की प्रतीक हैं।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 1965 का युद्ध सिर्फ सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प की परीक्षा था। भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और बलिदान से देश की संप्रभुता की रक्षा की और इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा।

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Created On :   18 Sept 2025 9:45 PM IST

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