द फायर ऑफ़ सिंदूर ने जगाई राष्ट्रीय चेतना: ऑपरेशन सिंदूर पर केंद्रित किताब पर चर्चा

ऑपरेशन सिंदूर पर केंद्रित किताब पर चर्चा
प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश ने कहा, “समय की मांग थी यह पुस्तक”; मुर्तज़ा अली ख़ान ने दी प्रस्तुति

ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील और अब तक अज्ञात पहलुओं को उजागर करने वाली पुस्तक 'द फायर ऑफ़ सिंदूर' ने राष्ट्रीय विमर्श में एक नई ऊर्जा भर दी है। यह पुस्तक, जिसे लेखक रोशन भोंडेकर और निलॉय चट्टराज ने लिखा है, हाल ही में प्रख्यात पत्रकार एवं शिक्षाविद् प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश को भारतीय फिल्म समीक्षक मुर्तज़ा अली ख़ान द्वारा नई दिल्ली में प्रस्तुत की गई।

प्रो. सुरेश, जो वर्तमान में इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक हैं और पूर्व में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति रह चुके हैं, ने इस अवसर पर कहा, “यह किताब समय की मांग थी। यह केवल एक ऑपरेशन की कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय समाज, सैन्य बलों और मानवीय संवेदनाओं के बीच के जटिल रिश्तों को समझने का एक प्रयास है।”

किताब का केंद्र: ऑपरेशन सिंदूर

'द फायर ऑफ़ सिंदूर' एक नॉन-फिक्शन कृति है, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक एक संवेदनशील सैन्य अभियान पर केंद्रित है। यह अभियान उन परिस्थितियों को सामने लाता है, जिनमें भारतीय सुरक्षा बलों ने देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया।

हालांकि, किताब केवल सैन्य रणनीति या तथ्यों तक सीमित नहीं है। यह उन लोगों की आवाज़ों को भी सामने लाती है जो इस ऑपरेशन से सीधे या परोक्ष रूप से प्रभावित हुए, फौजी अफसरों से लेकर आम नागरिकों तक।

इसमें पीड़ा, साहस, असमंजस और उम्मीद—चारों ही भावनाओं को संतुलित रूप में दर्शाया गया है।

लेखकों ने इसका उद्देश्य स्पष्ट किया है,सच्चाई को बिना किसी राजनीतिक चश्मे से दिखाना और पाठकों को स्वयं सोचने का अवसर देना। इस दृष्टिकोण ने पुस्तक को न केवल पढ़ने योग्य बल्कि विमर्श का विषय भी बना दिया है।

मीडिया और साहित्य की भूमिका

मुर्तज़ा अली ख़ान, जो न्यूयॉर्क और भारत स्थित Café Dissensus के फ़िल्म संपादक हैं और एक अनुभवी पत्रकार के रूप में टीवी डिबेट्स में नियमित रूप से शामिल होते हैं, ने इस पुस्तक की प्रस्तुति को एक ज़िम्मेदारी के रूप में निभाया।

उनका मानना है कि, “सिनेमा और पत्रकारिता के बीच की खाई को ऐसे प्रयास ही पाट सकते हैं। जब मीडिया, साहित्य और सामाजिक विमर्श एक साथ आते हैं, तभी राष्ट्रीय चेतना का सही विकास होता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे विषयों को जनमानस तक पहुंचाना केवल समाचार संस्थानों की ही नहीं, बल्कि रचनात्मक माध्यमों की भी ज़िम्मेदारी है। इस दिशा में 'द फायर ऑफ़ सिंदूर' एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश की प्रतिक्रिया

प्रो. सुरेश, जो भारतीय संचार परिषद (Indian Communication Congress) के उपाध्यक्ष और वैश्विक मीडिया शिक्षा परिषद (Global Media Education Council) के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं, ने मीडिया शिक्षा और सामाजिक संवाद को लेकर अपनी बात रखी।

उन्होंने कहा, “सिर्फ़ घटनाओं को बताना पत्रकारिता नहीं है। उनके पीछे की कहानी को समझना, समाज पर पड़ने वाले असर को जानना और पाठकों को सोचने पर मजबूर करना असली संवाद है। यह पुस्तक इस दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।”

उनका यह भी कहना था कि मीडिया शिक्षण संस्थानों को ऐसी पुस्तकों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने पर विचार करना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी केवल तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि संवेदनशील दृष्टिकोण भी विकसित कर सके।

https://x.com/kg_suresh/status/1945544140726702248

प्रकाशन और परिप्रेक्ष्य

इस पुस्तक को अहमदाबाद स्थित Write India प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है, जो पारंपरिक किताबों के प्रकाशन में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।

प्रकाशक ने बताया कि इस पुस्तक की तैयारी में काफी शोध, साक्षात्कार और फील्ड रिपोर्टिंग शामिल रही है।

लेखकों ने न केवल दस्तावेज़ों पर निर्भर किया, बल्कि ऑपरेशन से जुड़े वास्तविक लोगों से मिलकर उनके अनुभवों को समझने और दर्ज करने का प्रयास किया।

यह किताब एक ऐसे समय में आई है, जब भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवीय अधिकारों के बीच संतुलन को लेकर गंभीर बहस चल रही है। ऐसे में The Fire of Sindoor पाठकों के लिए महज़ एक कथा नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

The Fire of Sindoor ने एक जरूरी और संवेदनशील विषय को गहराई से उजागर किया है। यह न केवल पत्रकारिता, साहित्य और शिक्षा के क्षेत्रों में विचार का विषय बन गई है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में संवाद की नई लहर भी पैदा कर रही है।

प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश की इस पर स्पष्ट प्रतिक्रिया और मुर्तज़ा अली ख़ान जैसे मीडिया व्यक्तित्व की भागीदारी यह दिखाती है कि यह पुस्तक अपने उद्देश्य में केवल सफल नहीं, बल्कि आवश्यक साबित हो रही है।

Created On :   30 July 2025 12:53 PM IST

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