राष्ट्रीय: मानव परीक्षण से 100 रुपये की नई कैंसर-रोधी गोली की उपयोगिता का पता लगाना संभव डॉक्टर
नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। कैंसर के उपचार के लिए बनाई गई 100 रुपये की नई गोली की उपयोगिता और कुशलता को मानव परीक्षण के बाद ही समझा जा सकेगा।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर में शोधकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने कैंसर के उपचार के लिए एक दवा विकसित की है, जिसकी कीमत मात्र 100 रुपये है।
चूहों पर अध्ययन करने से इस गोली को विकसित किया गया है, जिसका नाम आरप्लस सी यू है, जिसमें रेस्वेराट्रोल और तांबे का प्रो-ऑक्सीडेंट संयोजन है, जो कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए पेट में ऑक्सीजन रेडिकल्स उत्पन्न करता है।
मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. श्याम अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया कि चूहों पर किया गया अध्ययन स्थापित उपचारों का विकल्प नहीं है। इससे कैंसर रोगी लगातार स्वस्थ्य हो रहे हैं।
एक्स पर एक पोस्ट में राष्ट्रीय आईएमए कोविड टास्क फोर्स के सह-अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने इसे "एक अतिरंजित दावा" कहा। शोध को दिलचस्प, प्रशंसनीय बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे "कैंसर के इलाज" के रूप में नहीं देखा जा सकता।
डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि शोध से पता चलता है कि सामान्य ऊतकों पर कोशिका-मुक्त क्रोमैटिन (कीमोथेरेपी के बाद कैंसर कोशिकाओं से निकलने वाले गुणसूत्रों के टुकड़े) का प्रभाव पड़ता है, जिससे सूजन होता है और इसके दुष्प्रभाव से म्यूकोसाइटिस जैसी बीमारी हो सकती है।
उन्होंने कहा, “तांबे और रेस्वेराट्रोल (एक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध न्यूट्रास्युटिकल) के संयोजन का उपयोग कोशिका-मुक्त क्रोमैटिन को ख़राब करने के लिए दिखाया गया है, जिससे कुछ मानव अध्ययनों में विषाक्तता में कमी आई है। अन्य मानव अध्ययन चल रहे हैं।"
अध्ययन में दावा किया गया है कि यह गोली कीमोथेरेपी से होने वाले दुष्प्रभावों को आधा कर सकती है। साथ ही कैंसर होने की संभावना को 30 प्रतिशत तक कम कर सकती है।
डॉ. राजीव जयदेवन ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा, "शोधकर्ताओं ने तांबे और रेसवेराट्रॉल (मूंगफली, कोको, अंगूर में पाया जाने वाला) के प्रो-ऑक्सीडेंट संयोजन का इस्तेमाल किया, जो ऑक्सीजन रेडिकल्स उत्पन्न करके डीएनए को नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है।"
उन्होंने कहा, "क्या यह कैंसर (चूहों से परे) वाले लोगों के लिए वास्तविक दुनिया के परिणामों में तब्दील होगा। इसके प्रो-ऑक्सीडेंट, डीएनए-हानिकारक प्रभाव से क्या विषाक्तता हो सकती है। यह अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है।"
हालांकि, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट गुरुग्राम के प्रधान निदेशक और प्रमुख बीएमटी डॉ. राहुल भार्गव ने इसे “चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता” कहा। भारतीय शोधकर्ता इतिहास रच रहे हैं। अगर दवा काम करती है तो यह कैंसर रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होगी।
उन्होंने आईएएनएस को बताया, "टैबलेट आशाजनक है और असरदार होने की क्षमता रखता है, लेकिन मानव परीक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है। इसमें लगभग पांच साल लग सकते हैं।"
टैबलेट को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) से मंजूरी का इंतजार है और जून-जुलाई तक बाजार में उपलब्ध होने की उम्मीद है।
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Created On :   7 March 2024 2:53 PM IST